!! भारती गोवंश या विदेश काव !!
गौमाता
एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा
(अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती
है), विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं
उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा
अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि
विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है| तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो
कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही
नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है| चौथा
अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि
विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है| भारतीय गौ माता (कंधे वाली गाय )के चरण
की धुल चमत्कारी होती हे :
१.
अगर कोई भाई गौ चरण धूलि का रोज तिलक करे उसकी पद पद पर विजय होती हे।
२.
अगर कोई विवाहित माता गौ चरण धूलि को अपनी मांग मैं भरे तो वो अखंड सौभाग्यवती हो
जाती हैं , उसके पति का उसके प्रति प्रेम धीरे
धीरे बढ़ता हैं।
गौ
माता को घर मैं लाओ या नजदीक की गौ शाला मैं अपने नाम की घंटी बांध के उसका खर्च
तो तुम उठा ही सकते हो। उस गौ माता की चरण धूलि का ऊपर के उपाय करे और फिर देखे।
आप ये सोच रहे होंगे की गाय की धुल मैं क्या चमत्कार हो सकता हैं ? तो श्रीमद भागवत महापुराण से ये गौ कथा
पढ़ लो :
एक
बार कृष्ण के सखा कृष्ण को पकडके यशोदा के पास ले कर आये की कृष्ण ने मिटटी खाई।
कृष्ण ने कहा मैंने मिटटी नहीं खाई। जब किसी मिटटी पर गाय का चरण पद जाता हैं तो
वो मिटटी नहीं रहती वो गौ चरण रज बन जाती हैं। यशोदा बोली तो दिखा उसका चमत्कार
खोल अपना मुह। कृष्ण ने अपना मुख खोल तो सारा ब्रह्माण्ड का दर्शन यशोदा ने कृष्ण
के मुख मैं किया। गौ रज सामान्य नहीं हैं वो जब किसीके माथे पर पद जाती हैं तो
उसका भाग्य बदल जाता हैं।
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