गौ सुखी तो राष्ट्र सुखी
वेदों में गाय को माता एवं पूजनीय कहा गया है। यह आदर उन विशेषताओं पर आधारित है जो भगवान ने एकमात्र इस जीव को प्रदान की हैं। गायों से भगवत् प्राप्ति होती है।
गव्य पदार्थों को ही धार्मिक अनुष्ठानों और आयुर्वेदिक उपचारों में स्वीकृत किया गया है। हमारा कोई धार्मिक कृत्य गोपूजन, गोदान और पंच-गव्य के बिना सम्पन्न नहीं हो सकता। गव्य पदार्थों- दुग्ध, दही, घी, मूत्र, गोबर- में रोगों के कीटाणुओं को दूर करने की अद्भुत शक्ति है। गाय का पंच गव्य एक महान औषधि है।
गाय का दूध अनेक असाध्य रोगों की अचूक औषधि है। गाय का दूध दुर्बलता और मोटापे को दूर करता है। गोदुग्ध बलिष्ठ बनाता है और टी.बी. बीमारी के कीटाणुओं को दूर करने की शक्ति रखता है। इसका ‘सेरीब्रोसाइड्स’ तत्व बौद्धिक क्षमता बढ़ाता है।
शिशु को अपनी माता के दूध न मिलने पर, गोदुग्ध ही उसका सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। जले-कटे घाव, फोड़े-फुंसी, दाद-खाज के लिए गाय का घी चुपड़ना एक घरेलू उपचार माना जाता रहा है। यज्ञादि में गौ-घृत का प्रयोग उत्तम माना गया है। इससे प्रदूषण नष्ट करने में सहायता मिलती है।
आयुर्वेद का कथन है, ‘रात्रि को शयन से पूर्व गोदुग्ध, प्रातः काल उठकर जल और भोजन के बाद छाछ (मट्ठा) पीने से जीवन में डाॅक्टर की आवश्यकता नहीं पड़ती।
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