गौ - आस्था का प्रतीक
गोवंश का सम्बन्ध किसी भी धर्म से जोड़ना गलत है। गाय सबकी है और सबके लिए है। इस्लाम में कहीं इस बात का उल्लेख नहीं है कि मुसलमानों को गोमाँस खाना जरूरी है। कुरान-मशीद में कहा गया है कि गौ का दूध अमृत है, जबकि गौ का माँस बेशुमार बीमारियों का जन्मदाता है। मुसलमानों के अनेक धार्मिक संस्थानों द्वारा भी अनेक बार देश के मुसलमानों को यह निर्देश दिया जा चुका है कि वह ईद के अवसर पर गोवंश की कुर्बानी न दें। दुर्भाग्य यह है कि जिन राज्यों में गोवंश की हत्या निषेध है, वहाँ भी कानून में अनेक त्रुटियों का लाभ उठाकर माँस के व्यापारी अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं, सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है।
1995 में महाराष्ट्र सरकार ने दोनों सदनों से सर्वसम्मति से पूर्ण गोहत्या निषेध कानून को पारित कर राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया था, दुर्भाग्यवश यह बिल 19 वर्ष तक यूँ ही लटका रहा। वर्तमान देवेन्द्र फडनवीस सरकार ने इस शुभ कार्य को आगे बढ़ाया और राष्ट्रपति जी ने भी मोहर लगाने में देर नहीं की। भारत के राष्ट्रपति और महाराष्ट्र की सरकार इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
एक बात समझ नहीं आती, जब देश का बहुसंख्यक गाय के प्रति इतनी आस्था रखता है तो क्यों नहीं शेष भारतवासी भी गाय को सम्मान दें। ऐसा करने से आपसी भाईचारे और धार्मिक सौहार्द में भी वृद्धि होगी।
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