श्रीकृष्ण ने हमें गाय का स्वरूप बताया
भगवान श्रीकृष्ण ने गाय तथा उसके बच्चों को अत्यन्त पवित्र भूमि पर खड़ा किया और सदा के लिए यह विधान कर दिया कि गाय से प्रेम करना, उस पर श्रद्धा रखना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य है क्योंकि गाय एक देवता है, जो पशु के रूप में पृथ्वी पर विचरती है। ऐसा करके भगवान श्रीकृष्ण ने गाय के ऊपर से पशुत्व का पर्दा हटा दिया, जिससे मनुष्य की माँ के रूप में गौ का रहस्यमय स्वरूप अपने दिव्य प्रकाश से प्रस्फुटित हो गया। जिन नेत्रों से गाय का वह वास्तविक रूप देखा जा सकता था, मनुष्य के उन नेत्रों पर अंधकार का जाल पड़ा हुआ था। श्रीकृष्ण ने इसी जाले को काटकर अलग कर दिया, तभी मनुष्य को गाय के प्रकाशमान रूप के दर्शन हुए। वास्तव में, श्रीकृष्ण ने गाय के उस आध्यात्मिक स्वरूप को प्रत्यक्ष कराने का कार्य किया।
मथुरा के निकट वृन्दावन के वनप्रदेश में प्रतिवर्ष इन्द्र के सम्मानार्थ बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता था। श्रीकृष्ण ने इस प्राचीन धार्मिक प्रथा के विरूद्ध अपनी आवाज ऊँची की। उन्होंने अपने पिता नन्द जी को, जो उस ग्रामीण प्रदेश के अधिपति तथा वृन्दावन के प्रधान व्यक्ति थे, अनुमति दी कि इन्द्र की नहीं, बल्कि गायों की पूजा की जाए, जो वन-पर्वतों की देवी हैं। इन्द्र इस व्यवहार से बड़े क्रोधित हुए और उनमें प्रतिशोध की भावना जाग्रत हुई। उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वृन्दावन के ऊपर भयंकर काली घटा बनकर छा जाओ, कड़को, गरजों, बिजली चमकाओ, प्रचण्ड पवन द्वारा पानी की तीक्ष्ण बौछार फेंको तथा भीषण उत्पात मचाकर श्रीकृष्ण के वृन्दावन को मनुष्य तथा पशुओं सहित नष्ट कर दो। इन्द्र के क्रोध से भगवान श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण वृन्दावन व वनप्रदेश की रक्षा की। लोगों ने देखा कि श्रीकृष्ण ने अपने एक हाथ से गोवर्धन पर्वत को उठाकर एक विशाल अभेद्य छाता बना लिया और उसके द्वारा पूरे सप्ताह भर उस भयानक तूफान को लोगों के निकट नहीं आने दिया।
वास्तव में, श्रीकृष्ण के विषय में इन्द्र बड़ी भूल में थे। अंत में, इन्द्र के ज्ञान नेत्र खुल गए। उन्होंने अपने स्वामी तथा सारी सृष्टि के स्वामी श्रीकृष्ण को पहचान लिया। इन्द्र अपनी सारी शक्तियों के साथ उनकी शरण में आ गए। भगवान श्रीकृष्ण का ‘गोविन्द’ नाम उस दिन नए अर्थ में प्रसिद्ध हुआ। अब से श्रीकृष्ण गाय को इन्द्र से भी अधिक सम्मान के योग्य समझेंगे।
जब इन्द्र का अहंकार नष्ट हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रभाव को जाना और भगवान के शरणागत हुए, तब उस समय कामधेनु गाय ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया, इसी कारण से यह दिन कार्तिक शुक्ल अष्टमी धूमधाम से ‘गोपाष्टमी’ पर्व के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गाय तथा उसके बच्चों को अत्यन्त पवित्र भूमि पर खड़ा किया और सदा के लिए यह विधान कर दिया कि गाय से प्रेम करना, उस पर श्रद्धा रखना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य है क्योंकि गाय एक देवता है, जो पशु के रूप में पृथ्वी पर विचरती है। ऐसा करके भगवान श्रीकृष्ण ने गाय के ऊपर से पशुत्व का पर्दा हटा दिया, जिससे मनुष्य की माँ के रूप में गौ का रहस्यमय स्वरूप अपने दिव्य प्रकाश से प्रस्फुटित हो गया। जिन नेत्रों से गाय का वह वास्तविक रूप देखा जा सकता था, मनुष्य के उन नेत्रों पर अंधकार का जाल पड़ा हुआ था। श्रीकृष्ण ने इसी जाले को काटकर अलग कर दिया, तभी मनुष्य को गाय के प्रकाशमान रूप के दर्शन हुए। वास्तव में, श्रीकृष्ण ने गाय के उस आध्यात्मिक स्वरूप को प्रत्यक्ष कराने का कार्य किया।
मथुरा के निकट वृन्दावन के वनप्रदेश में प्रतिवर्ष इन्द्र के सम्मानार्थ बड़ी धूमधाम से उत्सव मनाया जाता था। श्रीकृष्ण ने इस प्राचीन धार्मिक प्रथा के विरूद्ध अपनी आवाज ऊँची की। उन्होंने अपने पिता नन्द जी को, जो उस ग्रामीण प्रदेश के अधिपति तथा वृन्दावन के प्रधान व्यक्ति थे, अनुमति दी कि इन्द्र की नहीं, बल्कि गायों की पूजा की जाए, जो वन-पर्वतों की देवी हैं। इन्द्र इस व्यवहार से बड़े क्रोधित हुए और उनमें प्रतिशोध की भावना जाग्रत हुई। उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वृन्दावन के ऊपर भयंकर काली घटा बनकर छा जाओ, कड़को, गरजों, बिजली चमकाओ, प्रचण्ड पवन द्वारा पानी की तीक्ष्ण बौछार फेंको तथा भीषण उत्पात मचाकर श्रीकृष्ण के वृन्दावन को मनुष्य तथा पशुओं सहित नष्ट कर दो। इन्द्र के क्रोध से भगवान श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण वृन्दावन व वनप्रदेश की रक्षा की। लोगों ने देखा कि श्रीकृष्ण ने अपने एक हाथ से गोवर्धन पर्वत को उठाकर एक विशाल अभेद्य छाता बना लिया और उसके द्वारा पूरे सप्ताह भर उस भयानक तूफान को लोगों के निकट नहीं आने दिया।
वास्तव में, श्रीकृष्ण के विषय में इन्द्र बड़ी भूल में थे। अंत में, इन्द्र के ज्ञान नेत्र खुल गए। उन्होंने अपने स्वामी तथा सारी सृष्टि के स्वामी श्रीकृष्ण को पहचान लिया। इन्द्र अपनी सारी शक्तियों के साथ उनकी शरण में आ गए। भगवान श्रीकृष्ण का ‘गोविन्द’ नाम उस दिन नए अर्थ में प्रसिद्ध हुआ। अब से श्रीकृष्ण गाय को इन्द्र से भी अधिक सम्मान के योग्य समझेंगे।
जब इन्द्र का अहंकार नष्ट हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रभाव को जाना और भगवान के शरणागत हुए, तब उस समय कामधेनु गाय ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया, इसी कारण से यह दिन कार्तिक शुक्ल अष्टमी धूमधाम से ‘गोपाष्टमी’ पर्व के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है।
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