साँड का गोधन वृद्धि में महत्व
हिन्दुस्थान की वर्तमान दयनीय स्थिति में तभी सुधार हो सकता है, जब गोधन का अपव्यय रोका जाए। गोधन का विकास साँड के विकास पर निर्भर है। गाय की अपेक्षा साँड का महत्व सौ गुणा है- ऐसा गोविज्ञान-विशारद एक स्वर से कह रहे हैं।
धर्मग्रंथों में साँड का दान सौ गाय के दान के समान श्रेष्ठ और उद्धार करने वाला बतलाया गया है। आज प्रश्न केवल गाय की रक्षा का ही नहीं, बल्कि गाय के उद्धार व सेवा का है। गली-गली भटकने वाले, भूखे और निर्बल साँडों से काम लेने के कारण ही आज गायों का ह्रास हो रहा है और बैल निर्बल पैदा हो रहे हैं। बलवान, वीर्यवान और बढि़या साँड बढ़ें, तभी हिन्दुस्थान का विकास हो सकता है। अमेरिका, जापान आदि उन्नत देशों में लाखों की कीमत के साँड पशु सृष्टि में युग परिवर्तन कर रहे हैं।
बढि़या साँड पर किया गया खर्च और मेहनत कई गुणा होकर बाहर आती है। वास्तव में, किसी भी कृषि प्रधान देश में साँड ही सच्चा धन है। इसलिए हमारे देश में गोधन की बढ़ोतरी के लिए गाँव-गाँव नन्दी का दान करने की सुन्दर प्रथा चली आ रही है।
कहने को तो हमारे देश में साँडों की कोई कमी नहीं है, किंतु उनमें ऐसे साँड बहुत थोड़े हैं, जिन्हें हम वास्तविक साँड कह सकें। उनमें से अधिकांश नपुंसक व भटकू हैं। एक सर्वोत्तम साँड 50 गायों का यूथपति हो सकता है, तो उसको न्यायोचित खान-पान भी मिलना चाहिए, परन्तु उसे मुश्किल से एक सामान्य जीव जितना खाना भी नहीं मिलता।
इस समय युगधर्म पुकार रहा है कि गाय का दान ना करके बढि़या-से-बढि़या साँड का दान करना चाहिए, जिससे उत्तम गोधन प्राप्त हो सके। जिससे गायों में अधिक दूध देने की शक्ति, स्नेह और लावण्य उत्पन्न होगा। संक्षेप में, साँड का विकास- राष्ट्र का विकास है।
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