सोमवार, 12 दिसंबर 2022

गाय का दूध बढ़ानेके उपाय

गायका दूध बढ़ानेके उपाय

१. प्रतिदिन हरी ताजी घास पेटभर खिलाना।

२. दूध दुहकर उसीको पिला देना।

३. गुड़ एक भाग और जी तीन भाग एक साथ पकाकर रोज खिलाना। ४. गोभी और पत्ता गोभीको पत्तियाँ खिलाना।

५. पपीते के कच्चे फल और पपीतेको पत्ती पोसकर गुड़ मिलाकर खिलाना। खिलाना।

६. सनके फूल, महुआके फूल, पास और गुड़ जलमें उबालकर
 ७. ऊखकी गंदेरी या ऊखका रस निकाल लेनेपर बचा हुआ कूचा खिलाना।

८. तोसीकी खल और उबाला हुआ मटर खिलाना। 
९. किसारीकी दालके साथ गेहूँ उबालकर खिलाना।

१०. गुबार खूब पकाकर या रातभर जलमें भिगोकर खिलाना। 
११. गुड और काँजी मिलाकर खिलाना।

१२. घी, मैदा और गुड़ मिलाकर पकाकर खिलाना। इससे खूब दूध बढ़ता है। 
१३. बोजवाले केलेको चावलके साथ उबालकर खिलाना।

१४. पके या कच्चे बेलको उबालकर खिलाना।

१५. पलास और सेमलके फूल खिलाना।

१६. प्रसवके तीसरे दिन उड़दका दलिया आधा सेर, नमक एक सटीक, हल्दी आधी छटाँक और पीपलका चूर्ण एक छटाँक इन सब चीजोंको मिलाकर पानी में पका लेना चाहिये और फिर उसमें पावभर गुड़ मिलाकर कुछ गरम-गरम ही संध्याके समय गायको खिलाना चाहिये।
इससे दूध बहुत बढ़ता है। 
१७. गिलोयको पत्ती और उसको बेल खिलानेसे भी दूध बढ़ता है।

१८. जीरा १० भाग, नमक १० भाग, सौफ १० भाग, लौंग ५ भाग, सफेद चन्दन २ भाग, फिटकिरी

१ भाग और नाइट्रेट आफ पोटाशियम १ भाग-इन सब चीजोंकी कूटकर रखे और सुबह- शाम दोनों वक्त एक-एक मुट्ठी गायके दानेके साथ मिला दे तो खूब दूध बढ़ता है।

 १९. बाँसकी पत्ती आधी छटाँक उबालकर उसमें थोड़ी-सी अजवाइन और गुड़ मिलाकर खिलाने से दूध बढ़ता है।

२०. प्रसवके बाद दूध बंद होकर यदि धन कड़ा हो जाय तो रेड़ोंके पत्तोंसे सेक करना चाहिये।

२१. गायके दूध बढ़नेका सर्वोत्तम तरीका यह है कि गायको उसी साँसे बया जाय जिसको माँ बहुत ज्यादा दूध देनेवाली रही हो।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

गाय का दूध आश्चर्यजनक क्यों है !!!

गाय का दूध आश्चर्यजनक क्यों है !!!

गाय का दूध अच्छा होता है यह तो सभी जानते है लेकिन गाय के दूध में ऐसा क्या है जो उसे इतना लाभदायक और आश्चर्यजनक बनाता है। आइये जानें इसके बारे में –

गाय के दूध के अलावा भैस का दूध , बकरी का दूध और ऊंट का दूध सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले दूध हैं ।  इनमे से गाय और भैंस का दूध सबसे ज्यादा काम में लिया जाता है। ( इसे पढ़ें : दूध कब कैसे और कितना पीना चाहिए )

गाय का दूध विलक्षण क्यों 

गाय का दूध आयुर्वेद के अनुसार

आयुर्वेद के अनुसार गाय का दूध पाचन के लिए इतना अनुकूल होता है कि उसे अमृत कहा जाता है। यहाँ तक कि नवजात शिशु को माँ का दूध उपलब्ध ना हो तो उसे गाय का दूध दिया जा सकता है।

आयुर्वेद में गाय के दूध को रसायन की संज्ञा दी गई है। रसायन उस दवा या खाद्य पदार्थ को कहते हैं जो शरीर के लिए समान रूप से लाभकारी होता है जैसे च्यवनप्राश एक रसायन है। आयुर्वेद की कई दवा बनाने में गाय के ही दूध का उपयोग होता है जैसे – क्षीरबला तेल , पञ्चगव्य घृत , अमृतप्राश घृत आदि।

गाय का दूध वात दोष तथा पित्त दोष को मिटाता है। वात दोष के कारण दिमाग और नर्वस सिस्टम की कार्य क्षमता प्रभावित हो सकती है। गाय का दूध सप्त धातु की पुष्टि करके ओजस्व यानि कांति को बढ़ाने वाला माना जाता है।

गाय के दूध से फायदे

गाय का दूध प्रोटीन , कैल्शियम , पोटेशियम , फास्फोरस और तथा विटामिन D से भरपूर होता है। इसके अलावा इसमें अन्य कई खनिज , विटामिन और एंटी ऑक्सीडेंट भी होते हैं। गाय के दूध में फैट तथा कैलोरी कम होते हैं।

गाय का दूध पीने वाले व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है और उसे पेट की गड़बड़ी होने की संभावना कम होती है। यह दिमाग , त्वचा , आँखें , ह्रदय और रक्त आदि के लिए टोनिक का काम करता है। गाय का दूध और गाय का घी दिमाग के लिए सर्वश्रेष्ठ टोनिक साबित हो सकते हैं।

गाय का दूध मेधा शक्ति तथा स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।  गाय का दूध नियमित पीने वाले बच्चे परीक्षा में अच्छी सफलता पाते हैं।

गाय का दूध देसी नस्ल या विदेशी नस्ल

यहाँ उल्लेखनीय है कि आयुर्वेद में गाय का मतलब देसी नस्ल की गाय से है ना कि विदेशी नस्ल की गाय से। देसी गाय यहाँ के वातावरण के अनुसार ढली हुई होती है इसलिए बीमार कम होती हैं और इनकी प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इसके अलावा देसी गाय की गाय दूध कम भले ही दे परन्तु इनके दूध में लाभदायक पोषक तत्व अधिक होते हैं।

इन दिनों गाय का दूध अधिकतर विदेशी नस्ल की गायों जैसे जर्सी या होल्स्टीन आदि का उपलब्ध होता है क्योंकि ये अधिक दूध देती हैं लेकिन अधिक उत्पादन के कारण दूध की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

विदेशी गायों के लिए यहाँ का मौसम अनूकुल नहीं होता है। इसलिए यहाँ की जलवायु में बचा कर रखने के लिए उन्हें कई प्रकार के हार्मोन तथा एंटी बायोटिक के टीके आदि लगाने पड़ते हैं जिसका असर दूध पर पड़ता है।
 
वर्तमान में A1 तथा A2 वाले दूध पर भी बहस जारी है। जर्सी तथा होलिस्टिन जैसी विदेशी गाय के दूध में A1 अधिक पाया जाया है। जब A1 नामक यह प्रोटीन पेट में जाकर पचता है तो BCM 7 ( bitacalso morfin  7 ) नामक तत्व बनाता है। यह तत्व टाइप 1 डायबिटीज , कोरोनरी हार्ट डिजीज , धमनियों में खून जमना , साइजोफ्रेनिया , ऑटिज्म आदि बीमारियों का कारण बन सकता है।

देसी गाय के दूध में A2 नामक प्रोटीन अधिक होता है जो लाभदायक होता है इसके अतिरिक्त CLA कोंजुगेटेड लिओनिक एसिड तथा ओमेगा 3 फैटी एसिड जैसे लाभदायक तत्व पाए जाते हैं।

गाय का दूध विलक्षण क्यों ?

देसी गाय में गुजरात की गीर गाय , राजस्थान की थारपारकर तथा आंध्रप्रदेश की ओंगोल नस्ल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके अलावा कांकरेज तथा साहिवाल आदि भी अच्छी नस्ल की भारतीय गाय हैं। इन गायों के विकास  पर अब वैज्ञानिक अधिक ध्यान दे रहे हैं। इसमें सरकार भी पूरा सहयोग कर रही है।

गाय के दूध की आश्चर्यजनक विशेषता

गाय में लगभग तीस हजार जींस पाए जाते हैं जो कि ऐसे एंजाइम का निर्माण करते हैं जो साधारण घास को पचा कर विलक्षण दूध का निर्माण करते हैं। इस पाचन प्रक्रिया में गाय के पेट में स्थित आमाशय के चारों हिस्से मदद करते हैं।

इसके अलावा ताजा वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गाय के मस्तिष्क में क्लेथरिन नामक प्रोटीन पाया जाता है जो सूरज की किरणों से वर्तमान में बनाये जाने वाले सोलर सेल से 10 गुना अधिक ऊर्जा पैदा कर सकता है।

गाय का मष्तिष्क और उसका पेट ( Ryuman ) एक नाड़ी मंडल से जुड़ा होता है जिसे सूर्य नाड़ी मंडल कहते हैं। इस सूर्य नाड़ी मंडल से गाय के दूध में एक अलग ही प्रभाव उत्पन्न होता है तथा इसके कारण ही गाय के दूध में विटामिन D भी पाया जाता है।

इसके अलावा गाय के पेट में पाया जाने वाला रूमन फ्लूड माइक्रोब रिच फ्लूड होता है। वैज्ञानिकों ने इस फ्लूड को एक सेल के लिए कन्वेंशनल हाइड्रोजन बेस्ड फ्लूड की जगह उपयोग किया , तो पाया कि यह उससे आठ गुना अधिक शक्तिशाली होता है।

इस प्रकार गाय खुद अपने आप में एक विलक्षण और अनूठा प्राणी है तो गाय का दूध तो विलक्षण होगा ही। अतः संभव हो तो शुद्ध देसी गाय के दूध का सेवन करके प्रकृति की इस अनमोल उपहार का लाभ अवश्य लेना चाहिए।

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

गोपाष्टमी

"गोपाष्टमी"

          गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।
          हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।
          गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो-संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ-रक्षा व गौ-संवर्धन का संकल्प करते हैं।
          शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
          एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण जी ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।
         इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण-स्पर्श किये जाते हैं। सुबह  गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गो-माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली, हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं। गायों को सजाया जाता है, प्रातःकाल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ-माता की पूजा की जाती है, और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ-माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। कहते हैं ऎसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता है। कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है।

                                "विशेष"

1. इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएँ।
2. जिनके घरों में गाय नहीं है वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करें।
3. गंगा जल, फूल चढाये, दिया जलाकर गुड़ खिलाये।
4. गाय को तिलक लगायें, भजन करें, गोपाल (कृष्ण) की पूजा भी करें, कुछ लोग गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते हैं।

                       "जय जय श्री राधे"


सोमवार, 31 अक्टूबर 2022

गोपाअष्टमी क्यों मनाई जाती है......?

जय हो गायों के गोपाल की.....
गोपअष्टमी क्यों मनाई जाती है......??????
आज ही के दिन भगवान श्री कृष्ण ने और उनके सखा गोप बालको ने पहली बार गौ माता को प्रातः उठकर चराना आरंभ किया था .... .....उनकी इस लीला के प्रथम दिवस को गोपष्टमी के रुप में मनाया जाता है........
शायद ही सभी को पता हो भगवान श्री कृष्ण जब तक ब्रज में रहे उन्होने कभी भी अपने चरणों मे पादुका अर्थात चप्पल नही धारण की........ पता है क्यों ????? ???? क्योकी ......
जब गौ को चराने के लिये ले जाते समय मैया यशोदा जी अपने नन्हे से लाला के चरणों में पादुका धारण करवाने लगी तो प्यारे से श्याम सुंदर ने मैया से कहा- " मैया मै अपनी गौ माता से बहोत प्रेम करता हुँ और मैया जब वो चप्पल नहीं धारण करती है तो मैं पादुका कैसे धारण कर लु...." मैया ने प्यारे लाला को बहोत समझना ने का प्रयास किया.... पंरतु प्यारे श्यामसुंदर अपनी ही बात से तनीक भी न हिले उन्होने ब्रज में कभी भी पादुका धारण नही की.... उनके गौ प्रेम के कारण ही उनका एक नाम गोपाल पडा.......
जय हो गायों के गोपाल की जय हो

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

क्या होती है लम्पी स्किन डिजीज

क्या होती है लम्पी स्किन डिजीज

लम्पी स्किन डिजीज एक विषाणु जनित रोग है जो मच्छर, किलनी या पिस्सू के काटने से और एक ही बाल्टी से एक गाय या दूसरे पशु से दूसरे पशु को पानी पिलाने से भी फैलता है. लम्पी त्वचा रोग या एल एस डी का वायरस भेड़-बकरी में होने वाले पॉक्स वायरस के जैसा ही होता है, जिसमें गाय या अन्ये पशु की त्वचा पर छोटी-छोटी गांठे हो जाती हैं. यह बीमारी अफ्रीका, दक्षिण एशिया, यूरोप एवं मध्य एशिया के देशों में पायी जाती है.



किन-किन पशुओं में होती है लम्पी स्किन डिजीज

ज्यादातर यह बीमारी गाय,  बैल,  भैंस जैसे बड़े जानवर में तेजी से फ़ैल रही है .

कैसे फैलती है लम्पी स्किन डिजीज

यह मच्छरों, मक्खियों और जूँ के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से फैलता है.

लम्पी स्किन डिज़ीज के लक्षण

बुखार, लार, आंखों और नाक से स्रवण, वजन घटना, दूध उत्पादन में गिरावट, पूरे शरीर पर कुछ या कई कठोर और दर्दनाक नोड्यूल दिखाई देते हैं. त्वचा के घाव कई दिनों या महीनों तक बने रह सकते हैं. क्षेत्रीय लिम्फ नोड्स सूज जाते हैं और कभी-कभी एडिमा उदर और ब्रिस्केट क्षेत्रों के आसपास विकसित हो सकती है. कुछ मामलों में यह नर और मादा में लंगड़ापन, निमोनिया, गर्भपात और बाँझपन का कारण बन सकता है.



सोमवार, 25 जुलाई 2022

कसाई के हाथ गाय बेचने से सर्वनाश

।। श्रीहरिः।।
कसाई के हाथ गाय बेचने से सर्वनाश

*एक गाँवमें एक धनी वैश्य-घराना था। घर धन-धान्यसे सम्पन्न था और कुटुम्बमें ७०-७५ आदमी थे। उनके घरमें गोएँ भी थीं। उनमें एक ऐसी गाय थी जो चरनेको खोलनेके समय और दूहनेको उठाते समय बहुत तंग करती थी। घरके लोगोंने उसे कसाईके हाथ बेच देनेका निश्चय किया।* 

*एक दिन गाँवमें कसाई आया और उन लोगोंने उसके हाथ गाय बेच दी। कसाई जब गायको खोलने गया, तब रस्सी खोलते ही वह खड़ी हो गयी और कसाईके आगे-आगे चल दी।*

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*गाँवके लोगोंने बहुत रोका—कहा कि ‘लालाजी! गोको वापस ले लो। यह साक्षात् लक्ष्मी है। इसे कसाईके साथ मत जाने दो।’ परन्तु उन लोगोंने बात नहीं मानी। गायको कसाई ले गया और वह काट डाली गयी।*

*रातको स्वप्नमें वैश्यने देखा मानो गोमाता शाप दे रही है—‘तूने मेरी वास्तविकता नहीं समझकर मुझे निर्दय कसाईके हाथों बेच दिया अतएव अब शीघ्र ही तेरा सर्वनाश हो जायगा।’*

*कहना न होगा कि इसके कुछ ही दिनों बाद बड़े जोरसे बाढ़ आयी और उसमें उनका तमाम अनाज बह गया। लोगोंके गिरवी रखे हुए जेवर और बर्तन खत्तीमें थे, वे सब-के-सब बह गये। इसके बाद ही प्लेगका प्रकोप हुआ और सात-आठ दिनोंमें ही स्त्री, पुरुष, बच्चे मिलाकर घरके ६० आदमी बेमौत मर गये।*

*इस तरह हरी-भरी धन-धान्य-सम्पन्न गृहस्थी गोमाताके शापसे कुछ ही दिनोंमें उजड़ गयी। जो अबतक भी नहीं सँभल सकी है। —(सच्ची घटना)*

(परम श्रद्धेय श्रीभाईजी द्वारा संपादित गो सेवा के चमत्कार पुस्तक से)

इंसान वास्तविकता में कितना असभ्य और खोखला

अपने आपको सभ्य कहने वाला इंसान वास्तविकता में कितना असभ्य और खोखला हैं। अपने घर को साफ सुथरा रखने मात्र से कोई समाज सभ्य नहीं हो जाता, पूरा देश साफ रखने से मनुष्य सभ्य कहलायेगा। क्या आपने कभी सोचा हैं कि हमारे द्वारा फैलाया कचरा आखिर जाता कहां हैं, कभी किसी ने सोचा हैं? हम अपने घर से बाहर डाल देते हैं, नगरपालिका के सफाई कर्मचारी उसे उठाकर शहर से बाहर किसी एक स्थान पर डाल देते हैं। इस कचरे के ढेर पर भूखी गोमताएं और नंदी हरदम खड़े मिल जाते हैं। उनकी मजबूरी हैं कि पेट भरने के लिए कुछ तो खाना पड़ेगा, क्योंकि समाज ने ही उनको निराश्रित कर दिया। भूख प्राणी से कुछ भी करवा सकती हैं। यह कचरा खाकर गोवंश गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं और तड़प तड़प कर असमय प्राणों को त्यागते हैं। हमारी सभी की इस पाप और अपराध से बचने की जिम्मेदारी हैं। हमको अपने जीने के तरीके में बदलाव करना हैं कि कचरा बने ही नहीं या न्यूनतम बने। जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमको यह भी देखना चाहिए कि हमारे गांव या शहर का कचरा नगरपालिका कहां डाल रही हैं? उसका उचित प्रबंध होना चाहिए कि इस पर सीधा गोवंश पहुंच नहीं सके। इस कचरे में गंदगी, जानवरों और मनुष्य के शरीरों के अवशेष, हॉस्पिटल का कचरा, सुइयों, इंजेक्शन, दवाइयों, जहर, लोहा, अन्य धातुएं, प्लास्टिक, कपड़े, धागे, बाल आदि कुछ भी हो सकते हैं और ये सब गोमाता के पेट में जाता हैं। सोचो, हम कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं। क्या ऐसा समाज सभ्य की श्रेणी में आता है?

बुधवार, 8 जून 2022

कसाई के हाथ गाय बेचने से सर्वनाश

।। श्रीहरिः।।
कसाई के हाथ गाय बेचने से सर्वनाश

*एक गाँवमें एक धनी वैश्य-घराना था। घर धन-धान्यसे सम्पन्न था और कुटुम्बमें ७०-७५ आदमी थे। उनके घरमें गोएँ भी थीं। उनमें एक ऐसी गाय थी जो चरनेको खोलनेके समय और दूहनेको उठाते समय बहुत तंग करती थी। घरके लोगोंने उसे कसाईके हाथ बेच देनेका निश्चय किया।* 

*एक दिन गाँवमें कसाई आया और उन लोगोंने उसके हाथ गाय बेच दी। कसाई जब गायको खोलने गया, तब रस्सी खोलते ही वह खड़ी हो गयी और कसाईके आगे-आगे चल दी।*

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*गाँवके लोगोंने बहुत रोका—कहा कि ‘लालाजी! गोको वापस ले लो। यह साक्षात् लक्ष्मी है। इसे कसाईके साथ मत जाने दो।’ परन्तु उन लोगोंने बात नहीं मानी। गायको कसाई ले गया और वह काट डाली गयी।*

*रातको स्वप्नमें वैश्यने देखा मानो गोमाता शाप दे रही है—‘तूने मेरी वास्तविकता नहीं समझकर मुझे निर्दय कसाईके हाथों बेच दिया अतएव अब शीघ्र ही तेरा सर्वनाश हो जायगा।’*

*कहना न होगा कि इसके कुछ ही दिनों बाद बड़े जोरसे बाढ़ आयी और उसमें उनका तमाम अनाज बह गया। लोगोंके गिरवी रखे हुए जेवर और बर्तन खत्तीमें थे, वे सब-के-सब बह गये। इसके बाद ही प्लेगका प्रकोप हुआ और सात-आठ दिनोंमें ही स्त्री, पुरुष, बच्चे मिलाकर घरके ६० आदमी बेमौत मर गये।*

*इस तरह हरी-भरी धन-धान्य-सम्पन्न गृहस्थी गोमाताके शापसे कुछ ही दिनोंमें उजड़ गयी। जो अबतक भी नहीं सँभल सकी है। —(सच्ची घटना)*

(परम श्रद्धेय श्रीभाईजी द्वारा संपादित गो सेवा के चमत्कार पुस्तक से)

सोमवार, 2 मई 2022

वेदलक्षणा गाय हमारे लिए ईश्वर का वरदान है


वेदलक्षणा गाय हमारे लिए ईश्वर का वरदान है.......

वेदों मे वर्णित परम पिता परमेश्वर ने हम मानवजाति पर बडा ही कृपा और करुणायुक्त उपकार करके परोपकारार्थ इन स्वदेशी ममतामयी करुणामुर्ति गौमाताओं को यह पृथ्वी ग्रह पर उत्पन्न किया है !

हमारे भौतिक-आध्यात्मिक अभ्युदय, उत्थान, प्रगति और विकास हेतु स्वदेशी गौवंश रुपी अमुल्य, बहुमूल्य वरदान सृष्टि कर्ता सर्वेश्वर ने हमारे लिए जबसे यह सृष्टि का शुभारंभ हुआ तबसे ही हमें बड़े ही बृहद उपकारों, उपहारों  के रुप मे प्रीति पुर्वक प्रदान कर दिया है !!

लेकिन हम मनुष्य धीरे-धीरे प्रति दिन,महिने बरसों से इतने धूर्त एवं मूर्ख सिद्ध होते जा रहे हैं कि हमें आज अभी तक ईश्वरीय दो तरह के अमुल्य वरदान वेद और वेदलक्षणा गौमाताओं के मौजूदा अस्तित्व से हमारे सम्यक् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी पुरुषार्थ चातुष्टय कि सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वोत्थानित उन्नतियों कि अमुल्य आनंददायक सिद्धियों का लाभ कैसे लिया जाय .. !? यह पता ही नहीं है  !!! 

अब हमारी यह घोर अज्ञानतावश परिणाम यह देखा जा रहा है कि, -->  जैसे कोई कीमती हीरे मोती को धूल-मिट्टी मे धूमिल कर दिया हो,ढकेल दिया हो ! ऐसे हालात इन ईश्वरीय वरदान का कर दिया है हमने .. !!

जब जड़ या चेतन वस्तु या पदार्थों कि हमारी  जड़्यता-अज्ञानता वश पहचान या महिमा मालुम न हों तो तब .. हम मूर्ख व्यक्तित बनकर क्या पागलपन करते है उनका सटीक उदाहरण  चाणक्य पंडित ने अपने  नीतिश्लोक मे पेश किया है कि, -- जंगल के उम्रवान हाथियों के गंडस्थल से गजमौक्तिक्य नामक बहुमूल्य रत्न जमीन पर गिरते रहते हैं! अब जंगल मे रहने और घूमने वाली भीलनी स्त्रियों इन गजमौक्तिक्यों को निरर्थक, साधारण या वृथा मानते हुये कुतूहल वश हाथों में लेकर कूछ काल पर्यन्त खिलवाड़ कर के फेंक देती है! और गुंझा ( चणकबाबा,चणोठी) नामक लता के लाल,काले,सफ़ेद बीजों को धागे मे पिरोकर उनका हार बनाके शृंगार के रुप मे गले में पहनती है .. !! 

चाणक्य पंडित कहते हैं कि, -- "  गजे गजे न मौक्तिक्यम् " || अब हर हाथी के गंडस्थल मे से मोती नहीं नीचे गिरते  ! वो तो दुर्लभ हाथी ही होते हैं।  

बिलकुल वैसे ही हमारे स्वदेशी भारतीय गौवंश जैसी वात्सल्यमयी, ममतामयी गौवंश नश्लें पाश्चात्य यवनम्लेच्छयहूदियों के मुल्कों मे उत्पन्न नहीं होती!

अब हमारे फ़िलहाल हालात वो जंगल कि भीलनी जैसे है। 

हमारे विविध स्वदेशी गौवंश रुपी बहुमूल्य-अमुल्य रत्नों का हमे ख़ुद महिमा-मूल्य ही मालुम्मात नहीं है कि ,--> उनके भरपूर सात्विक अस्तित्व का उपयुक्त उपयोग कैसे किया जाय  .. !?  उनके द्वारा प्राप्त पंचगव्यामृतों का.......

गाय से जुड़े रहने के लिए......

मलाई अगर आप खा जायेगें तो बिल्ली मौसी (डेयरी कम्पनी) क्या करेगी..


मलाई अगर आप खा जायेगें तो बिल्ली मौसी (डेयरी कम्पनी) क्या करेगी..........

आप ये मत समझ लेना कि दूध डेयरी कम्पनी वाले आप को मलाईदार दूध देते होगें। अरे भाई जो खुद मलाई खाने को डेयरी कम्पनी बनाई है भला वो आपको क्यूँ मलाई खिलायेगें।

जो लोग बड़ी बड़ी दूध डेयरी कम्पनियों का दूध इस लिए पीते हैं कि इनका दूध मलाई दार आता है। लेकिन आप इस भ्रम में मत रहना क्योंकि अधिकतर दूध डेयरी कम्पनियां वाले दूध में मलामाईन पाउडर मिलाते हैं अगर आप को मेरी बात पर यकीन नहीं तो स्वयं ही गूगल पर सर्च कर देख लेवे । 
वैसे भी आप को मलाई दे देगें तो घी कहा से बनायेंगे......

अब बात करते हैं गाढ़ा दूध की, तो आप को होमोनाईज करके बिना फैट का दूध गाढ़ा करके पिलाया जा रहा है।  होमोनाईज दूध की चाय भी गाढ़ी ही बनती है, मतलब साफ है कि आप को सफेद पानी गाढ़ा करके पिलाया जा रहा है वो भी 38 रूपये से 44 रूपये तक, अब निर्णय आप को करना है कि आप को मलामाईन पाउडर या सफेद पानी, पीना है या भारतीय वेदलक्षणा गौमाता का दूध....

बीमारियों को गले लगाना है तो मलाईदार और गाढ़ा दूध पियो और अगर नहीं तो भारतीय वेदलक्षणा गाय का दूध पियो।



अब मुझे नहीं लगता कि गौशाला वाले भी गायों को बचा पायेगे।

अब मुझे नहीं लगता कि गौशाला वाले भी गायों को बचा पायेगे।

कारण साफ है, सरकारे भी नहीं चाहती कि गाय बचें। क्योंकि गाय बचने में, सरकार को कहीं लाभ नजर नहीं आता......

किसान कम दूध के चक्कर में देशी गाय पालता नहीं। अब बेचारी गाय जाये तो जाये कहा?

अपनी सामर्थ्य अनुसार गौशाला वालों ने कुछ देशी गोवंश बचा रखा है लेकिन सरकारों की गलत नीतियों के कारण गोचरभूमि को भी बेचा जा रहा है। 
गौशाला वाले बिना गोचरभूमि के गायों को पालें भी तो पालें कैसे?

सच तो ये है कि सरकार की तरह से जो अनुदान दिया जाता है उसमे तो एक वर्ष की बछिया का भी पेट ना भरें फिर गाय का कैसे भरेगा।

आम लोगों को कोई गायों से लेना देना नहीं अगर किसी गौशाला में गाय भूख से मरे, तो आम लोग बाते और बनाने लग जाते हैं। कि गौशाला में दान तो खूब आता है फिर गाय भूख से क्यों मर रही हैं।
कुल मिलाकर सबको अपनी दाल रोटी की चिंता है। गाय अगर बचाये तो गौशाला वाले क्योंकि उन्होंने तो पिछले जन्म में इस जनता के काले चने जो चाबे थे।
अरे भई ऐसे निर्दय मत बनो नींद से जागो गायों का चारा कुछ राक्षसी प्रवर्ति के लोगों के कारण डबल रेट हो गया है। गौशाला वालों की तो पहले ही स्थिति खराब थी अब और हो गई है।
आप लोगों से विनती है कि अपनी सामर्थ्य अनुसार गौशाला वालों का सहयोग करें। अन्यथा कोहिनूर जैसा गोवंश बचना मुस्किल हो जायेगा।

                  

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

मनुष्य को स्वयं को बचाने के लिए गाय को बचाना ही होगा...

मनुष्य को स्वयं को बचाने के लिए गाय को बचाना ही होगा........….

गाय पर संकटों की भरमार जिनका प्रत्यक्ष असर मानव, पर्यावरण व सम्पूर्ण जीव जगत पर हो रहा है। 

हमारे मुख मोड़ने से या ध्यान ना देने से या अन्य विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने से समाधान नहीं होगा।समय पर किया गया उपचार ही कारगर होता है और सरल भी होता है 

हम सब के स्वास्थय सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण में गाय की भूमिका 50% से अधिक है। 
लेकिन देशी गाय के संरक्षण व गाय की शक्तियों के सदुपयोग पर 1% भी काम नहीं हो रहा है। 

जो एक गाय अपने जीवन में पर्यावरण व मानव जीवन के लिए अरबों रुपए का योगदान करती है वो गाय भूख व अन्य अनेक मानवीय लापरवाही के कारणों से तड़प तड़प कर मर रही है। कत्ल खानो में कटती हुई गायों की संख्या से कई गुणा ज्यादा गोवंश हमारे आस पास बेमौत मर रहा है
धीरे धीरे हमारे अंदर असंवेदनशीलता बढ़ रही है।

यदि हमने गाय जैसी संपदा या सबसे लाभकारी उद्योग को समय रहते नहीं संभाला तो हमारा सब कुछ लुटने वाला है धन,सुख चैन वैभव,रूप,स्वास्थयआदि

गाय को वास्तविक रूप से बचाने में लगे अनेक लोगों में लगातार निराशा, थकावट व उदासीनता आ रही है जो बहुत अधिक चिंताजनक है।

अभी भी बहुत से लोग व्यापक रूप से विचार कर देशी गाय को बचाने में लगे हैं हमें ऐसे लोगों की मौन तपस्या से जुड़ने की जरूरत है।

वर्तमान में समाज में पैसा खर्च करने का एक ही आधार है प्रशंसा पाना।

गाय की छाछ में ऐसा क्या था जो भगवान श्रीकृष्ण उसे पाने की लिए ऐसी ऐसी लीला किया करते थे।


गाय की छाछ में ऐसा क्या था जो भगवान कृष्ण उसे पाने की लिए ऐसी ऐसी लीला किया करते थे। और हम मुर्ख समझना ही नहीं चाहते.... 

सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं

जिस कृष्ण के गुणों का

 शेषनाग, गणेश, शिव, सूर्य, इंद्र निरंतर स्मरण करते हैं। वेद जिसके स्वरूप का निश्चित ज्ञान प्राप्त न करके उसे अनादि, अनंत, अखंड अछेद्य आदि विशेषणों से युक्त करते हैं। नारद, शुकदेव और व्यास जैसे प्रकांड पंडित भी अपनी पूरी कोशिश करके जिसके स्वरूप का पता न लगा सके और हार मानकर बैठ गए, उन्हीं कृष्ण को अहीर की लड़कियाँ छाछिया-भर छाछ के लिए नाच नचाती हैं।

आज हम में इतनी वर्णशकरता आ गई है कि ना तो कृष्ण को मानते हैं और ना ही कृष्ण की गईया को.......
हा जानते जरूर है लेकिन मानते नहीं।

मै ज्यादा तो नहीं कहुंगा हा अगर वास्तव में ही आप कृष्ण की गईया की छाछ वैदिक पद्धति से बनीं सुबह निराहार नियम से पी ले तो  पेट की गर्मी, कब्ज, बवासीर जैसी बीमारी छू मन्तर ना हो जाए तो कहना।

बस छाछ 100प्रतिशत वेदलक्षणा गाय की होनी चाहिए और वैदिक पद्धति से बनीं होनी चाहिए। ना कि दूध डेयरी कम्पनियों की क्योंकि वो चाहे भी तो भी वैदिक पद्धति से छाछ नहीं बना सकते...... 


देशी गाय की छाछ जहर को भी समाप्त करने की क्षमता रखती है।


देशी गाय की छाछ जहर को भी समाप्त करने की क्षमता रखती है।

देशी गाय की छाछ के बारे में तो ऐसा बताते हैं कि अगर समुद्र मंथन के समय छाछ की उत्पत्ति हो गई होती तो भगवान शंकर का नाम नीलकंठ नहीं होता। इतनी शक्ति है देशी गाय की वैदिक पद्धति से बनाई गई छाछ में, वैदिक विधि से बनाई गई छाछ जहर को भी समाप्त कर देती है।

देशी गाय के दुध से बना दही जिस दही में चार गुना जल मिलाकर मथा जाये उसे छाछ (तक्र) कहते है ।

तक्र का गुण :- 

  आयुर्वेद मे छाँछ को पृथ्वी का अमृत कहा हैं । देशी गाय के दुध का जमाया हुआ दही मथकर जो छाँछ बनाया जाता हैं उसे ' तक्र ' कहते है । यह खट्टा होने से शीध्र ही वातरोग नष्ट करता हैं , मीठा होने से पित्तविकार नष्ट करता है । और कसैल होने से कफ नष्ट करता हैं , अर्थात तीनो दोषों का शमन करनेवाला होता हैं । छाँछ भोजन मे रुचि तथा भुख दोनों बढाता हैं । खाने की इच्छा न होतो छाँछ के साथ भोजन करने से खाने की इच्छा होती हैं । 

                छाँछ मेधा ( वुद्धि ) बढाता हैं । बवासीर मे भी उपयुक्त हैं ।ग्रहणी नामक व्याधि ( पतले , दुर्गधियुक्त दस्त ) मे छाँछ का सेवन अत्यंत उपयुक्त हैं ।
खुन की कमी , मोटापा  , पेट की बीमारियँ , प्यास तथा पेट मे किड़े होना ( कृमी ) मे छाँछ उपयुक्त हैं 
 
   भावप्रकाश मे तो यहाँ तक कहा हैं कि नित्य तक्र का सेवन करनेवाला व्यक्ति कभी भी बीमार नहीं पड़ता हैं और तक्र के प्रभाल से नष्ट हुये रोग पुनः कभी उत्तपन्न नही हो सकते । अतः इसे पृथ्वीतल का अमृत कहा गया हैं ।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

गाय और भैंस में अचंभित करने वाला अंतर


गाय और भैंस में अचंभित करने वाला अंतर
जिसकी जानकारी बेहद कम लोगो को हैं।

आवाज एक पहल
भैंस को गन्दगी पसन्द है, कीचड़ में लथपथ रहेगी,, 

पर गाय अपने गोबर पर भी नहीं बैठेगी उसे स्वच्छता प्रिय है।
भैंस को घर से 2-4 किमी दूर तालाब में छोड़कर आ जाओ वह घर नहीं आ सकती उसकी याददास्त जीरो है। 

गाय को घर से 5 किमी दूर छोड़ दो। 
वह घर का रास्ता जानती है,आ जायेगी। 
गाय के दूध में #स्मृति तेज है।
दस भैंसों को बाँधकर 20 फुट दूर से उनके बच्चों को छोड़ दो, एक भी बच्चा सीधे अपनी माँ को नहीं पहचान सकता, 

जबकि गौशालाओं में दिन भर गाय व बछड़े अलग-अलग शैड में रखते हैं, सायंकाल जब सबका माता से मिलन होता है तो सभी बच्चे (हजारों की स॔ख्या में) अपनी अपनी माँ को पहचान कर दूध पीते हैं, ये है गाय दूध की याददास्त।
जब भैंस का दूध निकालते हैं तो भैंस सारा दूध दे देती है, 

परन्तु  गाय थोड़ा-सा दूध ऊपर चढ़ा लेती है, और जब उसके बच्चे को छोड़ेंगे तो उस चढ़ाये दूध को उतार देती है। 
ये गुण माँ के हैं जो भैंस मे नहीं हैं।
गली में बच्चे खेल रहे हों और भैंस भागती आ जाये तो बच्चों पर पैर अवश्य रखेगी...

लेकिन गाय आ जाये तो कभी भी बच्चों पर पैर नही रखेगी।
भैंस धूप और गर्मी सहन नहीं कर सकती...

जबकि गाय मई जून में भी धूप में बैठ सकती है।
भैंस का दूध तामसिक होता है.... 
जबकि गाय का सात्विक। 
भैंस का दूध आलस्य भरा होता है, उसका बच्चा दिन भर ऐसे पड़ा रहेगा जैसेे भाँग खाकर पड़ा हो। 
जब दूध निकालने का समय होगा तो मालिक उसे उठायेगा...

परन्तु गाय का बछड़ा इतना उछलेगा कि आप रस्सा खोल नहीं पायेंगे।
फिर भी लोग भैंस खरीदने में लाखों रुपए खर्च करते हैं.... 
जबकि गौमाता का दूध अमृत समान होता है।।

गोमाता को मत भूलना, वरना राम भी साथ नहीं देंगे


गोमाता को मत भूलना, वरना राम भी साथ नहीं देंगे,,, राम और श्याम को पहचानो,,, जो गाय को अपना इष्ट मानते थे, वे राम और श्याम थे,,, गाय से मुंह मोड़ लिया तो राम रूठ जायेंगे।
बिना गोभक्त हुए कोई राम का नहीं हो सकता,,, मन का छलावा है,,, सावधान हो जाओ केवल राम के भक्तों,,, राम के गुरु की नंदिनी को नहीं बचा पाए तो राम तुम्हारे लिए खाली नहीं बैठे हैं,,,
गो के साथ द्रोह से कोई नहीं बच पायेगा,,, वसुंधरा ने गो को हथपूर्वक इग्नोर किया,,, सत्ता से बाहर होना पड़ा,,, अगर उस कार्यकाल में गौसेवा कर देती तो आने वाली सरकार उनकी थी,,, थोड़े अंतर से हराया,,, आभास कराने के लिए,,, अभी भी हिंदूवादी पार्टियों गौसेवा से विमुख रही तो राम सामने नहीं देखेंगे। जो गाय का है, वही राम का हैं।
अपने आकाओं को समझाओ, गो का श्राप मत लो,,, क्यों देश को बर्बाद कर रहे हो। गौहत्या का पाप राजा और प्रजा सबको लील जायेगा,,, हे नेताओं! क्यों तुमसे गो की रक्षा और सेवा नहीं होती? माना कि किन्हीं कारणों से आप अभी तक केंद्र में सत्तारूढ़ होकर भी गौहत्या का कलंक भारत के माथे से मिटा नहीं सके, पर गोमाता को चारा देने से किसने रोका है,,, इसके तो कोई तरीके हो सकते हैं। अशोक जी गहलोत ने कैसे 6 माह का अनुदान दिया? आपके मन में ऐसे गौसेवा के भाव क्यों नहीं हैं? यह हम सब हिंदुओं के लिए दुःख की बात है।  क्या आप गोमाता की सेवा का कोई रास्ता नहीं जानते? सब जानते हो, लेकिन गाय को गिनते नहीं हो, गाय को कुछ नहीं समझते हो। इससे हम गोभक्तो की आत्मा रोती हैं। किसको कहें? अपने रूठ गए अब गैरों के टुकड़ों पर पलते हैं!