बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

देवी अहिल्याबाई द्वारा गौ माता को न्याय प्रेरक प्रसंग -



दोस्तों, एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी, तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे । मालोजीराव बचपन से ही बेहद शरारती व चंचल प्रवृत्ति के थे । राह चलते लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था । गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकल चुका था । रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया था ।

गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक मनाती रही । तत्पष्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पा जा पहुँची, जिसे अहिल्याबाई ने प्राचीन राजपरम्परा के अनुसार त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था, अर्थात्‌ जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस घन्टें को बजा देता था, जिसके बाद तुरन्त दरबार लगता था और तुरन्त न्याय मिलता।

घण्टे की आवाज सुनकर देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है । देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये। कुछ देर बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि '' आज तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है । जरूर तुम गौ माता को समय पर चारा पानी नही देते होगे। ''

उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा कि माते श्री ऐसी कोई बात नही है । गौ माता अन्याय की शिकार तो हुई है ,परन्तु उसका कारण मैं नही कोई ओर है, उनका नाम बताने में मुझे अपने प्राण का भय है ।''

देवी अहिल्या ने कहा कि अपराधी जो कोई भी है उसका नाम निडर होकर बताओं , तुम्हें हम अभय -दान देते हैं। '' तब उस व्यक्ति ने पूरी वस्तुस्थित कह सुनायी। अपने पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक भी विचलीत नही हुई और फिर गौ माता स्वयं उनके दरबार में न्याय की गुहार लगाने आयी थी। उन्होंने तुरन्त मालोजी की पत्नी मेनावाई को दरबार में बुलाया यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दे ,तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ?

मालो जी की पत्नी ने कहा कि - जिस प्रकार से हत्या हुई, उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड मिलना चाहिए। देवी अहिल्या ने तुरन्त मालोजी राव का प्राण- दण्ड सुनाते हुए उन्हें उसी स्थान पर हाथ -पैर बाँधकर उसी अवस्था में मार्ग पर डाल दिया गया। रथ के सारथी को देवी ने आदेश दिया ,पर सारथी ने हाथ जोड़कर कहा '' मातेश्री ,मालोजी राजकुल के एकमात्र कुल दीपक है। आप चाहें तो मुझे प्राण -दण्ड दे दे,किन्तु मैं उनके प्राण नहीं ले सकता ।''

तब देवी अहिल्याबाई स्वंय रथ पर सवार हुई और मालोजी की ओर रथ को तेजी से दौड़ाया, तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई। रथ निकट आते ही फरियादी गौ माता रथ के निकट आ कर खड़ी हो गयी । गौ माता को हटाकर देवी ने फिर एक बार रथ दौड़ाया , लेकिन फिर से गौ माता रथ के सामने आ खड़ी हो गयी। सारा जन समुदाय गौ माता और उनके ममत्व की जय जयकार कर उठा। देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह निकली। गौ माता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी उसके हत्यारे के प्राण ममता के वशीभूत होकर बचाये। जिस स्थान पर गौ माता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर में ( राजबाड़ा के पास) ''आड़ा बाजार'' के नाम से जाना जाता है।

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