भारतीय संस्कृति में गाय का महत्व, गायत्री गंगा और गीता से भी बढ़कर है, क्योंकि गायत्री की साधना में कठिन तपस्या अपेक्षित हैं, गंगा के सेवन के लिये भी कुछ त्याग करना ही पड़ता है और गीता को जितनी बार पढ़ोगे उसमें हर बार कुछ न कुछ नया मिलता है, जिसका रहस्य समझना कठिन है, लेकिन गौ का लाभ तो घर बैठे ही मिल जाता है। वेदों का कथन है कि यदि किसी को इस माया राज्य में सब प्रकार का वैभव प्राप्त करना है तो गौ माता की प्रमुख रूप से सेवा करें। यहाँ प्रश्न पैदा होता है कि गौ की महिमा का शास्त्रों में जो वर्णन है, क्या उसे सत्य माना जा सकता है ?
इस प्रश्न का समाधान है कि शास्त्र कभी झूठ नहीं बोलते। निश्चय ही गाय से सब प्रकार के वैभव प्राप्त होते हैं। जो एक गाय न्यून से न्यून दो सेर दूध देती हैं और दूसरी बीस सेर तो प्रत्येक गाय के ग्यारह सेर दूध होने में कोई शंका नहीं। इस हिसाब से एक मास में सवा आठ मन दूध होता है। एक गाय कम से कम छह महीने और दूसरी गाय अधिक से अधिक 18 महीने तक दूध देती है, तो दोनों का मध्य भाग प्रत्येक गाय का दूध देने में बारह महीने होते हैं। इस हिसाब से 12 महीनों का दूध 99 मन होता है। इतने दूध को औटकर प्रति सेर में एक छटाँक चावल और डेढ़ छटाँक चीनी डालकर खीर बनाकर खाये तो प्रत्येक पुरुष के लिये दो सेर दूध की खीर पुष्कल होती है, क्योंकि यह भी एक मध्य भाग की गिनती होती है। अर्थात् कोई भी 2 सेर दूध की खीर से अधिक खाये और कोई न्यून। इस हिसाब से एक प्रसूता गाय के दूध से एक हजार 980 मनुष्य एक बार तृप्त हो सकते हैं। गाय न्यून से न्यून आठ और अधिक से अधिक 18 बार ब्याती है, इसका मध्य भाग 13 बार आया तो 25740 मनुष्य एक गाय के जन्म भर के दूध मात्र के एक बार तृप्त हो सकते हैं। इस गाय की छ: पीढ़ी में छ: बछिया और सात बछड़े हुए इनमें से एक की मृत्यु रोगादि से होना संभव है तो भी बारह रहे। उन छह बछियों के दूध मात्र से उक्त प्रकार एक लाख चौवन हजार 440 मनुष्यों का पालन हो सकता है। अब रहे छ: बैल, उनमें से एक जोड़ी दोनों साख में 200 मन अन्न उत्पन्न कर सकती हैं। इस प्रकार तीन जोड़ी बैलों की 600 मन अन्न उत्पन्न कर सकती हैं और उनके कार्य का मध्य भाग आठ वर्ष है। इस हिसाब से 4800 मन अन्न उत्पन्न करने की शक्ति एक जन्म में तीनों की है। इतने (4800 मन) अन्न से प्रत्येक मनुष्य को 3 पाव अन्न भोजन मिले तो 2,56,000 मनुष्यों का एक बार का भोजन होता है। दूध और अन्न को मिलाकर देखने से निश्चय है कि 4,10,440 मनुष्यों का पालन एक बार के भोजन से होता है। अब छ: गाय की पीढ़ी-दर-पीढ़ियों का हिसाब लगाकर देखा जाये तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है
अर्थ व्यवस्था में गाय की भूमिका
indian-currency हमारे ८०% लोग कृषि पर निर्भर है । इनमें से ९५% पशु आधारित खेती पर निर्भर हैं ।
भारत में सर्वाधिक दूध होता है ।
बैलगाड़ियों द्वारा ढोया जाने वाले सामान रेलगाड़ियों से ४-५ गुणा अधिक होता है । इससे विदेशी मुद्रा की उल्लेखनीय बचत होती है । उदाहरणार्थ वर्ष २००५ में ५०,००० करोड़ रू. का परिवहन बैलगाड़ियों द्वारा हुआ ।
गो आधारित उद्योगों के विस्तार से हमारी अर्थ व्यवस्था में गाय की महत्वपूर्ण भूमिका हो जायेगी । यह दुःख का विषय है कि इसका पहले से ही महत्वपूर्ण स्थान हमारे लोग नहीं पहचानते ।
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