बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

गौमाता में हैं समस्त तीर्थ गौमाता का सर्वोपरि महत्व



गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधा हैं। इनमें मैं गौमाता को सर्वोपरि महत्व है। पूजनीय गौमाता हमारी ऐसी माँ है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।

जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।

गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है।

भविष्य पुराण में लिखा है गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं।

भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं- 'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।'

जिस प्रकार माता-पिता, भाई बंधु, मित्र गण होते हैं उसी प्रकार गोमाता भी हमारी परम हितैषी होती है। जो हमें स्नेहपूर्वक अमृतमय दूध और औषधियाँ प्रदान करती हैं।

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