मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

भारत में कानूनी व्यवस्था-गौ वंशीय पशु पर अत्याचार का कानून


भारत में परंपरा से गाय व गौ धन को पशु होने पर भी अधिक सुख व लाभ देने वाली प्राणी होने से पवित्र मानकर पूजा की जाती रही है। भगवान कृष्ण ने इसकी रक्षार्थ गौ-वर्धन पर्वत उठा लिया था अनेक लोगों ने विभिन्न आराधना व तप त्याग किया है। कामधेनु को प्राप्त करने के लिए गुणी ऋषियों व मुनियों से ऋषि वशिष्ठ जी को अनेक कष्ट झेलने पड़े थे। गाय की महिमा अपरमपार है हिंदू समाज की श्रद्घा उसके प्रति अपरिमित है। व्यवसायिक व व्यवहारिक साधना, भावनात्मक लगाव बनकर धर्म बन जाती है एतद गौ पूजा, गौ सेवा सर्वत्र प्रारंभ होना स्वाभाविक ही था।
आज के संदर्भ में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि आज देश में कानून की स्थिति सामान्यतया क्या है? जिससे गौ वंश एवं गौ धन की रक्षा हो सके अथवा गाय को नुकसान पहुंचाने वाले, गौ हत्या करने वालों को दण्ड की क्या व्यवस्था है? भारतीय सार्वभोम गणराज्य (आजाद भारत बनने के बाद) बनते ही देश की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को (26 जनवरी 1950 से लागू) भारत का संविधान बनाया जो आज लागू है तथा आवश्यकतानुसार संशोधन कर दिये गये हैं। हमारे संविधान के भाग 4 में दिशा निदेशक तत्व (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी) राज्यों को अधिकार के अनुच्छेद 48 में कृषि एवं पशुपालन संगठन (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड एनीमल हजबेंड्री) में यह दर्शाया है कि प्रत्येक राज्य आधुनिक तथा वैज्ञानिक आधार पर गाय तथा बछड़े तथा अन्य दुधारू पशुओं के नश्ल सुधार तथा उनको सुरक्षित रखने के लिए उपाय करेगी (बाद में 3 जनवरी 1977 को लागू 42वें संशोधन द्वारा इसी अनुच्छेद के साथ 48ए जोड़ा गया है जो पर्यावरण की सुरक्षा तथा जंगली जीवों को सुरक्षण प्रदान करने तथा इसमें सुधार करने का निर्देश भी है।)इसके पश्चात (सन 1960 में दि प्रिवेंसन ऑफ क्रुअल्टी टू एनिमल्स एक्ट) पशुओं पर अत्याचार रोक अधिनियम 1960 देश में लागू हुआ, जिसमें सरकार ने पशु कल्याण बोर्ड स्थापित करने का अधिकार प्राप्त किया, जो बोर्ड विद्यमान है। इस अधिनियम की धारा 11 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति जानवर के साथ मारपीट अधिक बोझा ढोना, उत्पीडऩ अथवा अन्य दुख देगा तो प्रथम अपराध पर 50 रूपये का दण्ड विधान है (धारा 11 ओ) तथा दुाबारा याा बारबार करने पर 100 रूपये तक अर्थदण्ड अथवा तीन माह तक सजा अथवा दोनों सजा का प्रावधान रखा गया है। धारा 12 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति दुधारू पशु अथवा गाय के साथ फूका (डूंमडेव) का उपयोग करेगा तो उस पर 100 रूपये का अर्थदण्ड अथवा दो वर्ष तक सजा अथवा दोनों का प्रावधान रखा गया है। (फूका या डूमडेव का अर्थ है कि दुधारू गाय या पशु के फिमेल ओर्गन में हवा भरना या ऐसा यंत्र लगाना जिससे दूध को खींचा जा सके-रीसा जा सके) साथ ही धारा 13 में यह भी प्रावधान है कि ऐसे दुख देखने वाले पशु को उसके स्वामी के खर्च पर तुरंत नष्ट कर दिया जाए। कितना कष्टकार कार्य और कितनी साधारण सजा तथा अर्थदण्ड दुधारू पशु अथवा गाय के स्वामी को दिया जाना उल्लेखित है, इस पर हमें अवश्य मनन करना चाहिए। अलग अलग राज्य सरकारों ने जिसमें कुछ ही राज्य सरकारे पूरे देश में हैं जिन्होंने गौ हत्या (काउस्टलोटर) पर प्रभावी कानून बनाये हैं और पालना तो अक्षरश: कहीं परभी नही हो रही है यह अत्यंत ही दुख की अवस्था है जिसका मूल कारण प्रशासन में भ्रष्टाचार तथा अकर्मण्यता प्रमुख है। पशु डॉक्टर तथा प्रशासनिक अधिकारी निरीक्षण सही नही करते हैं और न ही स्थानीय निगम/परिषद /पंचायत अथवा अन्य चुने हुए प्रतिनिधि अपना कर्तव्यपालन अथवा निरीक्षण आदि करके करते हैं। राजस्थान प्रांत में राजस्थान गौवंशीय पशु (वध का प्रतिषेधा और अस्थाई प्रवजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम 1995 जो 25 अगस्त 1995 से लागू है, इसकी धारा 3के अनुसार गौ वंशीय पशु के वध का प्रतिषेध है, धारा 4 के अनुसार गौ मांस तथा गौ मांस के उत्पादों के कब्जे, विक्रय या परिवहन का प्रतिषेध है धारा 5 के अनुसार वध के प्रयोजन हेतु गौ वंशीय पशु के निर्यात का प्रतिषेध है तथा अन्य प्रायोजनों के लिए अस्थाई प्रवजन या निर्यात का विनियमन निषेधा है। इस अधिनियम की धारा 3 का उल्लंघन करने पर 1 वर्ष का कठोर कारावास जो 10 वर्ष तक हो सकता है और जुर्माना जो 10 हजार रूपये तक हो सकेगा (यानि एक वर्ष का कारावा कम से कम तथा एक रूपया दण्ड भी हो सकता है) परंतु 4 व 5 का उल्लंघन करने पर 6 माह का कठोर कारावास जो 5 वर्ष तक हो सकता है तथा पांच हजार रूपये तक अर्थ दण्ड हो सकता है।

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