गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

गोवत्स द्वादशी की हार्दिक शुभकामनाये

HAPPY GOVATSA DWADASHI इस दिन प्रिय
गौमाता का पूजन तथा गौसेवा कि जाती हैँ।
गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष
की द्वादशी को मनाया जाता है.इस दिन गायों तथा उनके
बछडो की सेवा की जाती है.
सुबह नित्यकर्म से निवृतहोकर गाय तथा बछडे का पूजन
किया जाता है.
यदि घर के आसपास भी गाय और बछडा नहीं मिले तब
गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे को बनाए और
उनकी पूजा कि जाती है.
इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग
वर्जित होता है.
गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं. गौ पृथ्वी का प्रतीक है,
गौमाता में सभी देवताओं के तत्त्व निहित होते हैं. इसीलिए
कहा जाता है कि, गौ में समस्त देवी-देवता वास करते हैं.
इनसे प्राप्त होने वाले पदार्थों जैसे दूध, घी, में सभी देवताओं के
तत्त्व संग्रहित रहते हैं जिन्हें पूजन व हवन इत्यादि में उपयोग
किया जाता है.
पंचगव्य मिश्रण पूजाविधिमें शुद्धिकरण हेतु महत्त्वपूर्ण
माना गया है. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पृथ्वी पर
शयन करना चाहिए.
शुद्ध मन से प्रभु विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए.
इस व्रत के प्रभाव से साधक को सभी सुखों की प्राप्ती होती है.
गोवत्स द्वादशी पूजन....
(Govatsa Dwadashi Pujan)
गोवत्स द्वादशी के दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर
अथवा घर पर ही विधिपूर्वक स्नान आदि से निवृतहोकर स्वच्छ
वस्त्र धारण किए जाते हैं. व्रत का संकल्प किया जाता है.
इस दिन व्रत में एक समय ही भोजन किया जाने का विधान
होता है. इस दिन गाय को बछडे सहित स्नान कराते हैं.
फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढाया जाता है. दोनों के गले में
फूलों की माला पहनाते हैं.
दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं. तांबे के पात्र में सुगंध,
अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र
का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए.
मंत्र है -
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते!
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:!!
इस विधि को करने के बाद गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ
खिलाने चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए. पूजन करने के बाद
गोवत्स की कथा सुनी जाती है.
सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव
तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण
किया जाता है.
गोवत्स द्वादशी महत्व...
(Significance of Govatsa Dwadashi)
गोवत्स द्वादशी के विषय में कई पौराणिक आख्यान मौजूद है एक
कथा अनुसार राजा उत्तानपाद ने पृथ्वी पर इस व्रत को आरंभ
किया उनकी पत्नी सुनीति ने इस व्रत को किया और उन्हें इस
व्रत के प्रभव से बालक ध्रुव की प्राप्ति हुई.
अत: निसंतान दम्पतियों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए.
संतान सुख की कामना रखने वालों के लिए यह व्रत शुभ फल
दायक होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन किए जाने वाले कर्मों में
सात्त्विक गुणों का होना अनिवार्य है.
इस दिन गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु
गौका पूजन किया जाता है. गौ पूजन करने वाले भक्त श्री विष्णु
का आशिर्वाद प्राप्त होता है.
आप सभी गौभक्त मित्रोँ को गोवत्स द्वादशी कि बहुत बहुत
शुभकामनाऐँ...
.जय गौमाता जय गोपाल राधे राधे.""
""
आपका
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

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