गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम, गो-वंश की रक्षा कर के, निज कर्तव्य निभाएं हम..

अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम, 
गो-वंश की रक्षा कर के, 
निज कर्तव्य निभाएं हम.. 

कितनी हिंसा प्यारी हमको, इसका ही कुछ भान नहीं, 
आदिमयुग से निकले हैं हम, 
क्या इसका भी ज्ञान नहीं? 
सभ्य अगर हम कहलाते हैं, 
कुछ सबूत दिखलाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

एक जीव है इस दुनिया में, 
जो पवित्र कहलाता है, 'पंचगव्य' हर गौ माता का, 
हमको स्वस्थ बनाता है. दूध-मलाई,मिष्ठानों का, 
कुछ तो मूल्य चुकाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

जिस तन में सब देव 
विराजें, 
उस गायों को करें नमन, 
भूले से वो कट ना पाए, 
मिलजुल कर हम करें जतन. 
वक्त पड़े तो माँ
के हित में, 
अपनी जान लुटाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

एक गाय भी अगर पले तो, 
हमको करती है खुशहाल, 
गो-धन बढ़े निरंतर हम सब, 
होते जाते मालामाल. 
गाय हमारी पूँजी इसको, 
कभी नहीं बिसराएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

माँस हमारा प्रिय भोजन क्यों, 
ऐसी क्या लाचारी है, 
सोचे ठन्डे दिल से भाई, 
घर-घर हिंसा जारी है. 
करुणा, प्यार-मोहब्बत वाला अपना देश
बनाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

उठो-उठो सब भारतवासी, 
सुनो गाय की करुण-पुकार, 
कटता है गो-वंश कहीं तो बढ़ कर रोकें अत्याचार. स्वाद और धन
लोभी-जन को, गो-महिमा बतलाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम... 

भटक रही भूखी माँ दर-दर, पालीथिन, कचरा खाए, 
कैसे हैं गो सेवक उनको, 
लज्जा तनिक नहीं आए. 
मुक्ति मिलेगी, इन गायों को पहले
मुक्ति दिलाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम... 

गैया, गंगा, धरती मैया, 
सब पर संकट भारी है, 
हम ही अपने माँ के 
शोषक, 
बुद्धि की बलिहारी है. 
माँ 
बिन कैसे हम जीएंगे, 
पुत्रों को समझाएँ हम... 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम, 
गो वंश की रक्षा कर के, 
निज कर्तव्य निभाएं हम.

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