!! गौ कथा शास्त्रों में !!
वेदों
- शास्त्रों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौमहिमा, गौपालन गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी
महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत
की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह
दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि
का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है।भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही
गोधन को मुख्य धन मानते थे, और
सभी प्रकार से गौरक्षा और गौसेवा, गौपालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौमहिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक
मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी
रूप में उल्लेख मिलता है। गाय का जहाँ
धार्मिक आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण धनों में से एक है।
घर घर में गोपालन हो ।अपने हाथ से गोसेवा करने का सौभाग्य हर परिवार को प्राप्त हो
। प्रत्यक्ष जिनके भाग्य में यह गोसेवा नहीं वे रोज गोमाता का दर्शन तो करें । मन
ही मन पूजन, प्रार्थना करें व प्रतिदिन अपनी आय का
कुछ भाग इस हेतु दान करें । किसी ना किसी रूप में गाय हमारे प्रतिदिन के चिंतन, मनन व कार्य का हिस्सा बनें । यही
मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय है यही वेद - शास्त्रों का सार भी है ।गायों की
यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन
भारत में मुख्यत: सहिवाल (पंजाब,हरियाणा,दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गीर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी
नस्लों की अपेक्षा भारतीय गाय छोटी होती है,जबकि विदेशी गाय जर्सी आदि का शरीर
थोड़ा भारी होता है।भारत में गौ पालन कर्म नहीं धर्म है। और शास्त्र
कहता है धर्मेण शासिते राष्ट्रे न च वाधा प्रवर्तते
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