गुरुवार, 30 जनवरी 2014

अगर बचाना है भारत को, गऊ को आज बचाएं हम, गो-वंश की रक्षा कर के, निज कर्तव्य निभाएं हम..

अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम, 
गो-वंश की रक्षा कर के, 
निज कर्तव्य निभाएं हम.. 

कितनी हिंसा प्यारी हमको, इसका ही कुछ भान नहीं, 
आदिमयुग से निकले हैं हम, 
क्या इसका भी ज्ञान नहीं? 
सभ्य अगर हम कहलाते हैं, 
कुछ सबूत दिखलाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

एक जीव है इस दुनिया में, 
जो पवित्र कहलाता है, 'पंचगव्य' हर गौ माता का, 
हमको स्वस्थ बनाता है. दूध-मलाई,मिष्ठानों का, 
कुछ तो मूल्य चुकाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

जिस तन में सब देव 
विराजें, 
उस गायों को करें नमन, 
भूले से वो कट ना पाए, 
मिलजुल कर हम करें जतन. 
वक्त पड़े तो माँ
के हित में, 
अपनी जान लुटाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

एक गाय भी अगर पले तो, 
हमको करती है खुशहाल, 
गो-धन बढ़े निरंतर हम सब, 
होते जाते मालामाल. 
गाय हमारी पूँजी इसको, 
कभी नहीं बिसराएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

माँस हमारा प्रिय भोजन क्यों, 
ऐसी क्या लाचारी है, 
सोचे ठन्डे दिल से भाई, 
घर-घर हिंसा जारी है. 
करुणा, प्यार-मोहब्बत वाला अपना देश
बनाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम... 

उठो-उठो सब भारतवासी, 
सुनो गाय की करुण-पुकार, 
कटता है गो-वंश कहीं तो बढ़ कर रोकें अत्याचार. स्वाद और धन
लोभी-जन को, गो-महिमा बतलाएं हम. 
अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम... 

भटक रही भूखी माँ दर-दर, पालीथिन, कचरा खाए, 
कैसे हैं गो सेवक उनको, 
लज्जा तनिक नहीं आए. 
मुक्ति मिलेगी, इन गायों को पहले
मुक्ति दिलाएँ हम. 
अगर बचाना है भारत को, 
गऊ को आज बचाएं हम... 

गैया, गंगा, धरती मैया, 
सब पर संकट भारी है, 
हम ही अपने माँ के 
शोषक, 
बुद्धि की बलिहारी है. 
माँ 
बिन कैसे हम जीएंगे, 
पुत्रों को समझाएँ हम... 
अगर बचाना है भारत को गऊ को आज बचाएं हम, 
गो वंश की रक्षा कर के, 
निज कर्तव्य निभाएं हम.

मैं एक सनातनी हूँ और गौसेवा एवं गौरक्षा मेरा धर्म तथा जन्मसिद्ध अधिकार है ।

मैं एक सनातनी हूँ और
गौसेवा एवं गौरक्षा मेरा धर्म तथा जन्मसिद्ध अधिकार
है । जो कोई भी गौहत्या करता है अथवा गौहत्या में
सहयोग करता है, मेरी दृष्टि में वह राक्षस है और ऋषि-
मुनियों की इस पवित्र धरा पर उसको रहने का कोई
अधिकार नहीं है । गौमाता वास्तव में माँ समान है ।
इनकी रक्षा करना हम सबका दायित्व है । आइये प्रण लें
कि हम भारत की धरा पर किसी गौ की हत्या होते
नहीं देखेंगे और न किसी को करने देंगे । जय गौ माता

आप का 
गोवत्स राधेश्याम  रावोरिया 

गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ)

जय गौ माता------------- जीवनदान-----------(लेखक - वैध पंचानन के० के० श्रीनिवासाचार्य) -----------
गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ
स० १९९१ का आषाढ़ मास था | नोहर (बीकानेर) से लगभग ढेड मील डालूराम महर्षि का जोहंड (तालाब) है | पन्द्रह दिन पहले कुछ वर्षा हुई थी, जिसक कुछ कीचड अवशेष था | एक प्यासी गौ जल की इच्छा से जोहंड में घुसी, परन्तु कीचड़ में घुटनों तक डूब गयी | गौ वृद्धा तो थी ही, निकलने के प्रयास से बेहद थक ही गयी | खड़ा रहना दूभर हो गया | बैठकर कीचड में धसँ गयी | 

सूर्य छिप चला था, जलशून्य जलाशय के पास भला कौन आता | कीच में धँसी गौ मृत्युक्षण की प्रतीक्षा में थी | अर्धरात्रि में एक हलकी सी वृष्टि से वह क्षुद्र जलाशय भर गया | गौ की दशा अत्यंत 
दयनीय हो चुकी थी | जल के बाहर उसका सीर्फ सींग और ऊध्रवमुख आधे कान दिखायी पड़ते थे | प्रात: रुघा सुनार से खेत से लौटकर यह समाचार डूँगरमल तिवाड़ी से कहा | बस ! कहने भर के देर थी 
वह युवक फ़ौरन तैयार हो गया और तुड़ी, रस्सी, बाँस और कुछ आदमी लेकर शीघ्र ही घटनास्थल पर पंहुँचा | नालों के द्वारा अब भी जोहड़ में जल आ रहा था - साथ ही गौ की दशा भी गिर रही थी |
गौ-प्रेमी इसे देख न सका, फ़ौरन ही कपडे उतार अपने साथियों सहित कूद पढ़ा और बात-की-बात में बांसों पर गौ को बहार निकल लाया | गौ खड़ी रहने एवं चलने फिरने में सर्वथा असमर्थ थी | 
तुड़ी दी गयी | फिर छकड़े में डाल कर उसे स्थानीय गौशाला में भिजवाया गया | १५ दिन तक बराबर उसकी निगरानी राखी गयी | गौ चंगी हो गयी | पर दो मास बाद वह पशु सम्बन्धी रोग से मर गयी |

इसी वर्ष फा० शु० ९ को डूंगरमल सरदारशहर के पास देवातसर गया और लौटते वक्त अपने मामा हेतराम के पास चुरू उतर गया | १२ को उसे १०५ ज्वर हो गया, साथ में वायु का प्रचण्ड कोप भी था |
उसने अपने मामा से घरवालों को सूचना देने के लिए भी कहा था, पर उन्होंने परवा न की | इधर उनके बड़े भाई के मन में खलबली मची के देवतासर से लौटने का समाचार तो मिल चूका; फिर 
क्या कारण की डूँगर अभी तक नहीं पंहुँचा | 

हितैषी चित बहुधा अशुभचिन्तक होता है, आखिर भ्रातृ-प्रेम में व्याकुल होकर गाड़ी में चल पड़े | रस्ते में चुरू इसलिए उतर गए की मामा से शायद डूँगर का पता मिल जाय | डूंगर वहाँ रोगशय्या पर मिला | वैध विद्याधर मांडावेवाले को दीखलाया गया, भयंकर सन्निपात और डबल निमोनिया कायम किया | बड़ी तत्परता से चिकत्सा आरम्भ हुई | सेवा-शुश्रुषा में कोर-कसर न थी, परन्तु रोगी की दशा प्रतिपल गिरती जा रही थी | चै० कृ० ६ को वैधजी ने खुले शब्दों में कह दिया - आज की रात खतरनाक है, सचेष्ट रहकर दवा देते रहना |

रोगी के भाई बद्रीनारायण के धैर्य का पूल टूट चूका था | रोगी की दशा स्पष्ट थी - शरीर बर्फ के समान शीतल था, ह्रदय में थोड़ी धडकन शेष थी, काम ख़तम सा था | बेचारा बद्रीनारायण परिवारशून्य धर्मशाला की कोठरी में म्रियमांण भाई के गले लग-लगकर बेहाल हो रहा था | दो-तीन दिन से कुछ खाया नहीं था | आँखे फूल गयी थी, गला छिल गया था, शरीर टूट रहा था ; कहीं चैन न था | डूंगरमल तो बेचारा अनन्त शयन की तरफ बढ़ रहा था ; उसे क्या पता की उसका भाई बिलख-बिलखकर करुण विलाप कर रहा है |

ब्राह्ममुहूर्त है | स्वप्न नहीं, जंजाल नहीं | डूंगरमॉल को प्रत्यक्ष दिखायी दिया की वही गौ, जिसको नव मास पूर्व उसने जोहड़ के कीच से निकाला था, खड़ी कह रही है - 'डूंगर ! एक दिन तुमने 
मुझको उबारा था, आज मैं तुम्हे उबार रही हूँ | अब तुम्हारा रोग समाप्त हो गया है - तुम्हारे शरीर को कोई खतरा नहीं है |' गौ अदृश्य हो गयी | डूंगर को भी ज्ञान-संचार हो गया | मुझे मालूम हुआ 
की उसका भाई उसके लिए बेहाल हो रहा है | परन्तु इन्द्रियां जड हो गयी थीं | ज्ञानेन्द्रियों अथवा कर्मेन्द्रियों से किसी भी तरह अपने भाई को सांत्वना देबे में वह असमर्थ था | 

कुछ देर बाद उसने आँखे खोली और इशारों से समझना शुरू किया | यथाकिंचित अपना मनोगत भाव कह डाला | प्रात: वैध जी आ गए | अपने रोगी के इस अवस्था में मिलने की उन्हें बिलकुल आशा नहीं थी 
| रात्रि का वृतान्त उनसे भी कही ! वे आस्तिक विचार के मनुष्य थे, बात जच गयी | रोगी का रोग तो रात को ही नष्ट हो चूका था, पथ्य-प्रदान में दो-तीन दिन लगे; फिर दोनों नोहर लौट गए |



गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक - हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर

सभी गौभक्तों का इस पेज में हार्दिक अभिनंदन है

||राम - राम ||
सभी गौभक्तों का इस पेज में हार्दिक अभिनंदन है । इस पेज का एकमात्र उद्देश्य गौमाता के दूध-दही, घी, मक्खन एवं गौमूत्र तथा गौमय आदि से निर्मित उत्पादों का हमारे दैनिक जीवन में महत्व बताते हुए गौमाता की रक्षा करने हेतु प्रत्येक सनातनी के मन में गौ माता के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं गौरक्षा हेतु वैचारिक क्रांति का प्रतिपादन करना है । गौमाता के होने से ही हम सभी स्वस्थ, निरोगी एवं दीर्धायु जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।
आज गौमाता पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है । केवल भारतवर्ष में ही कत्ल्खानों में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में गौहत्याएं हो रही हैं । यहाँ तक सुनने में आता है कि कुछ कत्लखानों में तो गौमाता पर पहले खौलता हुआ गर्म पानी छिड़का जाता है ताकि उनका चमड़ा नर्म हो जाए । तत्पश्चात उनके जीते जी ही शरीर से चमड़ा उतारा जाता है ताकि वह अधिक चमड़ा नर्म हो और अधिक से अधिक दाम में बिके । चमड़ा उतारने के बाद उन्हें बहुत निर्दयता से काटा जाता है । आज गौवंश समाप्त होने की स्थिति में आ गया है ।
एक सच्चे सनातनी होने के नाते गौ माता की रक्षा हेतु कम से कम इतना संकल्प तो ले ही सकते हैं :-
१॰ किसी भी प्रकार के चमड़े की वस्तु प्रयोग में नहीं लाएँगे ।
२. प्रतिदिन भोजन ग्रहण करने से पूर्व गौ माता के लिए कम से कम १ रोटी निकलेंगे ।
३. केवल गौ माता का दूध और गौ माता के दूध से निर्मित उत्पाद ही प्रयोग में लाएँगे ।
४. प्लास्टिक की थैलियों को कभी भी कूड़ेदान में नहीं डालेंगे क्योंकि पर्याप्त भोजन के अभाव में कुछ गौ माता भोजन की तलाश में कूड़ेदान की ओर चली जाती हैं और वहाँ खाद्य-वस्तुओं के साथ-साथ उनके पेट में प्लास्टिक चला जाता है जिससे कि उनको अत्यधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती है ।
५. अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएंगे ताकि वातावरण भी शुद्ध हो और साथ ही साथ गौ माता के लिए पर्याप्त चारा सुगमता से उपलब्ध हो सके ।
आप सबके सहयोग से ही गौरक्षा का दैवी कार्य संभव है । अतः आप स्वयं भी इस कार्य में तन-मन-धन से लगें तथा अपने सभी मित्र-संबंधियों को भी प्रेरित करें ।
आपका 
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया 

गौ माता का वैज्ञानिक महत्व

गौ माता का वैज्ञानिक महत्व
गाय धरती पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जो आक्सीजन ग्रहण करता है. साथ ही आक्सीजन ही छोड़ता है.
गाय के मूत्र में पोटाशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया एवं यूरिक असिड होता है.
दूध देते समय गाय में मूत्र में लाक्टोसे की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है.
गौ माता का दूध फेट रहित परन्तु शक्तिशाली होता है. उसे कितना भी पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग में भी लाभदायक होता है.
गौ माता के गोबर के उपले जलने से मक्खी मछर आदि कीटाणु नहीं होते तथा दुर्गन्ध का भी नाश होता है.
गौ-मूत्र सुबह खाली पेट पीने से कैंसर ठीक हो जाता है. गौ माता के सींगो से उन्हें प्राकर्तिक उर्जा मिलती है. जो गौ माता की रक्षा कवच है.
गौमाता के गोबर में विटामिन बी-12 बहुत मात्रा में है. यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है.
गौ-माता के शारीर पर प्रतिदिन 15-20 मिनट हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी एकदम ठीक हो जाती है.
गौ-माता के शरीर से निकलने वाली सात्विक तरंगे आस-पास के वायुमंडल को प्रदूषणरहित बनती है.
गौ-माता के शारीर से प्राकर्तिक रूप से गूगल की गंध निकलती है.
गौ या उसके बछड़े के रंभाने से निकलने वाली आवाज़ मंदिक विकृतियों तथा रोगों को नष्ट करती है.
इन सभी तथ्यों की जर्मन के कृषि वैज्ञानिक डॉ. जुलिशुस एवं डॉ. बुक ने भी पुष्टि की है.
अमरीकन वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन के अनुसार गाय का गोबर एवं खमीर को समुद्र के पानी के साथ मिला कर ऐसा केमिकल बनाया जो बंजर भूमि को हरा-भरा कर देता है. सूखे तेल के कुए में फिर से तेल आ जाता है.

जब मालवीय जी ने त्रिवेणी का जल लेकर गोरक्षा की प्रतिज्ञा की

*****जब मालवीय जी ने त्रिवेणी का जल लेकर गोरक्षा की प्रतिज्ञा की*** 

महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय महाराज गौसेवाकी साकार प्रतिमा थे | जनवरी १९२८ में प्रयागमें त्रिवेणीके पावन तट 'अखिल भारतवर्षीय सनातन धर्मसभा' का अधिवेशन था | व्याख्यान-वाचस्पति पंडित दीनदयालजी शर्मा शास्त्री भी अधिवेशनमें महामनाके साथ उपस्थित थे |

महान गोभक्त हासानन्दजी वर्मा गौहत्या के विरोध में कला कपडे पहने तथा मुहँपर कालिख पोते हुए अधिवेशनमें उपस्थित हुए |

मालवीयजी महाराज को सम्बोधित कर गोभक्त हासानन्दजी ने कहा - 'गऊ माता भारत तथा हिंदुत्व का मूल है | आप 'गौ-हत्या बन्दी' के लिए कोई ठोस योजना बनाईये |

इस पर महामना बोल उठे - 'हासानन्द ! तुम मुहमें कालिख लगाकर फिर मेरे सामने आ गए | अरे गोहत्या के कारण केवल तुम्हारा मुहँ ही काला नहीं हो रहा है, हम सब भारतवासियों के मुख पर कालिख है | आओं, गौ-रक्षा के लिए भीम ! गंगाजलसे तुम्हारे मुख की कालिमा को धों दूँ |' महामना ने त्रिवेणी के पावन जलसे गौभक्त हासानन्दजी के मुख की कालिमा धो डाली तथा उसी समय त्रिवेणी का पावन गंगाजल हाथ में लेकर प्रतिज्ञा की 'हम जीवनभर गौरक्षा तथा गौ-सेवा के लिए प्रयासरत रहेंगे |'

इसी समय पण्डित दीनदयाल ने 'गौ-सप्ताह' मानाने का प्रस्ताव रखा तथा 'अखिल भारतीय गौ-रक्षा-कोष' की स्थापना की घोषणा की गयी |

महामना मालवीयजी महाराज ने सन १९२८ में कलकत्ता में हुए कांग्रेसके अधिवेशन में स्पष्ट कहा था - "गौ-माता भारतवर्षका प्राण है | उसकी हत्या धर्मप्राण भारतमें सहन नहीं की जानी चाहिए |'

गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक - हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत

गौ धन की सेवा सबके भाग्य में नहीं होती......


आपका परम सौभाग्य है की आपको भगवान की सच्ची सेवा का अवसर प्राप्त होता है …..मार्कंडेय पुराण में लिखा है की जिस भोमि पर गौ वंश सुख से श्वास छोडता है वह तीर्थ के सामान हो जाती है …और जहां गौवंश कष्ट पाता है या उसका रक्त बहता है वहाँ किये गए सभी अनुष्ठान .यग्य पूजाएं निष्फल सिद्ध होती हैं भारत में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं, लेकिन किसी में भी कोई ख़ास कामयाबी हासिल नहीं हो सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें जनांदोलन का रूप नहीं दिया गया. यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि ज़्यादातर आंदोलन स़िर्फ अपनी सियासत चमकाने सीमित रहे. जगज़ाहिर है, गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है. इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर पाबंदी लगाने से गुरेज़ करती है. वरना क्या वजह है कि जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो, वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है. हैरत की बात यह है कि गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है. इसके बावजूद अभी तक इस पर कोई विशेष अमल नहीं किया गया,

"गौ भक्ति का चमत्कार "

"गौ भक्ति का चमत्कार "
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वर्तमानकाल में भौतिकता की और प्रवृत मानव यदपि गो-सेवा की महिमा को नहीं समझते, तथापि इधर जो अनुभव हुए है, उनके आधार पर गौके शरीर में सभी देवताओं का निवास 
मानना पड़ता है |

आयुर्वेदप्रवीण वैधराज लक्ष्मणसिंह जी की धर्मपत्नी श्रीमती गंगाकौर का देहावसान ५ अक्टूबर १९६० को हुआ | देहावसान के छ: मास पूर्व इन्होने वैधराज को बता दिया की यदपि शारीरिक रूप 
से मैं पूर्ण स्वास्थ्य हूँ, तथापि मेरा अंतिम समय निकट है | वैसे तो वैधराज परम धार्मिक हैं, परन्तु पत्नी की इस बात पर वे पूर्ण विश्वाश नहीं कर पाये |

मृत्यु के दो मास पूर्व श्रीमति गंगाकौर ने पुन: अपनी मृत्यु-तिथि बतलाई और स्वयं पूर्णत: हरिभक्त और गौ-सेवा में लग गयी | २३ सितम्बर ६० को किसी बात के प्रसन्ग में यही बात फिर दोहराई
गयी | मृत्यु के दो दिन पूर्व ही ॐ का पाठ चलता रहा |

निश्चित समय पर श्रीमती गंगाकौर चेतनाशून्य हो गयी | वैध जी ने कस्तुरी आदि औषधियों की सहायता से उन्हें पुन: चैतन्य-अवस्था में लाकर पुछा - 'देवी ! योगी यतियों के लिए भी दुर्बोध 
मृत्यु के आगमन का पूर्वभास तुम्हे कैसे हुआ ?'

श्रीमति गंगाकौर ने ने उत्तर दिया -'यह सब गौ-सेवा का प्रताप है | मुझे ऐसा आभास हो रहा है की मैं सीढ़ियों पर जा रही हूँ | कुते और कुत्तों जैसे प्राणी मुझ पर झपट रहे है और गौ-समुदाय 
घेरा बना कर मेरी रक्षा कर रहा है | एक प्राणी मुझे कह रहा है की गाय तेरी रक्षा कर रही है, इसलिए तू जा और तेरे पतिकी शंका-निवारण कर आ |'

ऐसा कह कर उन्होंने आथणी (दही ज़माने की हांडी) मंगवायी और सारा दही गौ-पुत्री (वत्सा) को खिलाने का आदेश दिया | फिर उन्होंने कहाँ की मेरी माताजी आयेंगी और विकल होकर रोयेंगी |
आप उन्हें रोने-कलपने से मना कर दीजिये और कहिये की वे 'राम' या 'ॐ' का नाम का पाठ करे |

गाय का दही खाते-खाते वे चिर-निंद्रा में लीं हो गयी |



गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक - हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत

------------गौ माता की कृपा -----------

------------गौ माता की कृपा -----------
घटना हमारे यहाँ श्रीरामपूर मील की है | पांच साल पूर्व हमने श्रीरामपूर (अहमदनगर) में श्रीलक्ष्मी इंडसट्रीज के नाम से श्रीरघुनाथदास धूतकम्पनी की भागीदारी में आयल मील शुरू की | प्रारम्भ में दो सालतक कभी मशीनिरी टूट गयी, कभी कुछ नुकसान हो गया - बड़ी तकलीफ रही | लाख कोशिश 

करने पर भी हम सम्भाल नहीं सके |
एक दिन देखा गया - मिल के दरवाजे के सामने एक गाय पड़ी हुई है | कसाई उसे ले जाने के लिए बहुत प्रयत्न कर रहा है - मारपीट 

कर रहा है, तब भी गाय जरा भी नहीं 
हिलती | देखने वालों की आँखों में आसूँ आ गए | मिल के मजदूरों ने उपर्युक्त घटना देखकर मेनेजर को सूचना दी | मेनेजर ने आकर 

कसाई के द्वारा छ्तीश रूपये में लायी हुई 
हष्ट-पुष्ट गौ को पांच रूपये मुनाफा - (कूल इकतालीस रूपये) देकर छुड़ा लिया | जो गौ कसाई के प्रयत्न करने पर भी जरा भी नहीं 
हिलती थी | कसाई के छोडते ही कह सीधे मील में चली गयी |

तबसे वह गौ मील में ही पाली-पोसी जाने लगी | उस गौ के मील में आने के बाद से हीमील की हालत दिनोंदिन सुधरती गयी | जिस 

मील के चलने में बराबर अड़चन आ रही थी, आज वह मील गौ-माता की कृपा से बहुत अच्छी चल रही है | वह तीन अच्छी नस्ल के बछड़े दे चुकी है और प्रतिदिन पांच लीटर दूध देती है | 

छोटा बच्चा भी उसके पास चला जाता है 
तो वह उसे जरा भी नहीं छूती | पर किसी दुसरे जानवर को कभी पास नहीं आने देती | भगवान ऐसी कल्याणमयी गोमाता को मिल 

के दरवाजे पर पहुचायां, इसके लिए हम उनके बड़े कृतज्ञ हैं | 

गोसेवा के चमत्कार (सच्ची घटनाएँ), संपादक -श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार, पुस्तक कोड ६५१, गीताप्रेस गोरखपुर, भारत 

गऊ ह्त्या बंद करो


गऊ ह्त्या बंद करो

गऊ ह्त्या बंद करो (पथिक भजनादर्श)
जागा भारत सारा अब जागा भारत सारा !
समझा और विचारा अब जागा भारत सारा !

दूध गऊ का अमृत जैसा
कोई करे उपकार ना ऐसा !
सब का बने सहारा ! अब जागा भारत सारा .....

गऊ ह्त्या का दाग मिटाओ !
गऊ माता का वंश बचाओ !
सब ने यही पुकारा ! अब जागा भारत सारा .....
गऊ हत्या करवाने वालो !
इस अबला के प्राण बचा लो !
होवे भला तुम्हारा ! अब जागा भारत सारा .....गऊ हत्या करवाने वालो !
इस अबला के प्राण बचा लो !
होवे भला तुम्हारा ! अब जागा भारत सारा .....
लाख मुसीबत सर पे सहेंगे !
गौवध बंद करवा के रहेंगे !
गूँज ऊठा यह नारा ! अब जागा भारत सारा .....
गऊ माता के कष्ट हरेंगे !
मरना पड़ा तो हस के मरेंगे !
यह है फ़र्ज़ हमारा ! अब जागा भारत सारा.....
आज “पथिक” हर आँख है रोई !
चलता देख सके ना कोई !
माँ के सर पर आरा ! अब जागा भारत सारा .....
जागो गऊ भक्त श्री कृष्ण की सन्तानों , गऊ माता को बचालो ... गऊ माँ बचेगी तभी देश बचेगा ..
लाख मुसीबत सर पे सहेंगे !
गौवध बंद करवा के रहेंगे !
गूँज ऊठा यह नारा ! अब जागा भारत सारा .....
गऊ माता के कष्ट हरेंगे !
मरना पड़ा तो हस के मरेंगे !
यह है फ़र्ज़ हमारा ! अब जागा भारत सारा.....
आज “पथिक” हर आँख है रोई !
चलता देख सके ना कोई !
माँ के सर पर आरा ! अब जागा भारत सारा .....
जागो गऊ भक्त श्री कृष्ण की सन्तानों , गऊ माता को बचालो ... गऊ माँ बचेगी तभी देश बचेगा .

इंदिरा गांधी को एक संत ने श्राप दे दिया था |और वो सच हुआ था

........ध्यान दे,ध्यान दे,ध्यान दे...... इतफ़ाक समझे या सच । ===============================
इंदिरा गांधी को एक संत ने श्राप दे दिया था |और वो सच हुआ था ! 1966 के समय में एक़ संत थे क्रपात्री जी महाराज। इंद्रा गांधी के लिये उस वकत चुनाव जीतना बहुत मुश्किल था ।क्रपात्री जी महाराज के आशीर्वाद से इंद्रा गांधी चुनाव जीती । इंद्रा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्ल खाने बंद हो जायेगें ।जो अंग्रेजो के समय से चल रहे हैं ।
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और जैसा की आप जानते हैं । वादे से मुकरना नेहरु परिवार की खानदानी आदत है ।
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चुनाव जितने के बाद कृपात्री जी महाराज ने कहा और मेरा काम करो न गाय के सारे कत्ल खाने बंद करो । इंद्रा ग़ांधी ने धोखा दिया । कोई कत्लखाना बंद नहीं किया गया । (तब रोज कि 15000 गाय कत्ल की जाती थी.अब 50000 काटी जाती है . आज तो मनमोहन सिंह ने गाय का मास बेचने वाले देशो भारत को पुरी दुनिया में तीसरे नंबर पर ला दिया है ।)

खैर तो फ़िर किर्पत्री जी महाराज का धैर्य टूट गया ! क्रपात्री जी ने एक दिन लाखो भगतो के सथ संसद क़ा घिराव कर दिया |और कहा की गाय के कतलखाने बंद होगे इसके लिये बिल पास करो | बिल पास करना तो दूर इंद्रा गांधी ने उन पर भगतो के उपर गोलिया चलवा दी सैंकड़ो गौ सेवको मरे गए ! तब क्र्पात्री जे ने उन्हे श्राप दे दिया की जिस तरह तुमने गौ सेवको पर गोलिया चलवाई है उसी तरह तुम मारी जाओ गी. और (ये अजीब ही इत्फ़ाक हैं.)जिस दिन इंद्रा गांधी ने गोलिया चलवाई थी उस दिन गोपा अष्टमी थी. (गाय के पूजा का सब्से बड़ा दिन) और जिस दिन इंद्रा गांधी को गोली मरी गई उस दिन भी गोपा अष्टमी थी !

एक बार यहाँ जरूर जरूर click कर देखें

http://www.youtube.com/watch?v=8SkzYV9er5E

COWS ARE THE FOREMOST OF ALL CREATURES IN ALL THE WORLDS.

COWS ARE THE FOREMOST OF ALL CREATURES IN ALL THE WORLDS.
(Sharing is caring - So please share as much as you can to care for Krishna)


If you are having difficulty loving the cow or any other animal...........well it is very simple, start loving KRISHNA and your inherent love for other creatures would automatically manifest and what to speak of eating them, that too would disappear in no time.

Bulls, Cows and Calves are very special animals in Krishna Consciousness. They are the pets of the Supreme Lord Sri Krishna and He Himself is the best cowherd Boy.
Sri Krishna is manifested as the kamadhuk meaning kamadhenu the original wish fulfilling cows known as the surabhi cows. The surabhi cow descended from the spiritual worlds and manifested herself in the heavenly spheres from the aroma of celestial nectar for the benefit of all created beings. The direct descendants of the surabhi cows are the sacred cows from the continent India which are uniquely distinguished the same as the surabhi by the beautiful hump on their backs and the wonderfully soft folds of skin under their necks. Since all cows in existence in the world today are factual descendants of the sacred cows of India they are all holy as well and should always be lovingly cared for and protected with the highest esteem and greatest respect. One should never cause harm to cows in any way even in a dream and one should never ever even think of eating the flesh of cows as there is no action more sinful in all of creation then cow killing. 
Cows are the mothers of all creatures. Cows are verily the mothers of the 33 crores of demigods that administrate creation in the material existence throughout all the universes. Cows are the goddesses of the gods and the refuge of all auspiciousness. Cows bestow every kind of happiness and for these reason they always are worshipful. Cows are the support of all the worlds for by their milk they nourish terrestrials beings and by their ghee offered in sacrifice they nourish the denizen of the celestial realms. Nothing superior to cows.
Cows are the foremost of all creatures in all the worlds. It is from cows that the means for sustaining the worlds has established. Cows are auspicious and sacred and the bequeather of every blessing. Cows benefit humans with milk, yoghurt, cheese, butter and ghee. The Vedas have stated that the milk of a cow is equivalent to ambrosial nectar and that ghee derived from cows milk is the best of all libations poured onto the sacred fires of brahmins.
Cows are the great refuge of all creatures. Cows constitute the greatest source of blessings for all creatures. Cows are the past. Cows are the future. Cows are the source of evolution and eternal growth. Cows are the root of prosperity. Whatever is given to cows always produces good fortune and is never in vain. It is solely and exclusively from the ghee of cows that the sacred rituals prescribed and authorized in the Vedas are empowered and able to be performed. Without the presence of cows ghee there is no possibility of performing sacred rituals that will gratify the 33 million demigods who are responsible for universal management. Neither will the Supreme Personality of Godhead, Lord Krishna be pleased and satisfied. Ghee comes exclusively only from cows from whom flow offerings of milk and milk products. Thus cows verily establish the purity of all sacred rituals and constitute the very essence of performing all sacred activities being the very source of sacred activities.
Cows represent sacred acts themselves and without cows there can be no performance of any sacred act. This is the pure, sublime and supremely exalted position and pre-eminence of cows above all creatures in all the worlds. One who knows the pre-eminence of cows and the selfless service cows render to all creatures and does not protect them affectionately is a sinner and offender and their destination is certainly hell. Cows are equal to the rays of the sun that travel through the universe giving light, warmth and nourishment.
In previous yugas the Vedic injunction was given jiyaite pare yadi tabe mare prani veda-purane ache hena ajna vane that means in the Vedic scriptures known as Puranas there are injunctions declaring that one can take the life of a living being only if they are able to revive it back to life again by chanting Vedic mantras. But we find that this injunction has been terminated in this age of kali yuga by the Brahma-Vaivarta Purana where it is stated that in the present age of kali yuga it is forbidden to kill cows under any circumstances.
Cows are equivalent to our mothers for when the mothers milk has dried up the cow gives her milk unselfishly to nourish and strengthen us. How can one who has ever drunk cows milk justify the killing and eating of such a mother as the sacred cow. One should never even in one's mind do injury to a cow or ever think of harming cows as well as bulls. One should show all respect and compassion for cows and sincere reverence should be offered unto them all without reservation.
Those who fail to give cows reverence and protection and choose to foolishly oppose and whimsically ignore the injunctions of the Vedic scriptures by selling a cow for slaughter, by killing a cow, by eating cows flesh and by permittings the slaughter of cows will all rot in the darkest regions of hell for as many thousands of years as there are hairs on the body of each cow slain. There is no atonement for the killing of a cow.
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In Sri Caitanya Caritamrita adi lila, chapter 17 verse 166 Caitanya Mahaprabhu confirms: 
go-ange yata loma tata sahasra vatsara
go-vadhi raurava-madhye pace nirantar
Cow killers and cow eaters are condemned to rot in hell for as many 
thousands of years as there are for each hair on the body of every cow they eat from. 


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एक दर्द भरी चीत्कार चली गर्दन पर कट्टार,

एक दर्द भरी चीत्कार चली गर्दन पर कट्टार,
दिल न दहला मानवता का देख गौमाता पर वार,
जाने क्या हो गया है आज के इस इंसान को,
अपनी क्रूर कट्टार से धोखा दे रहे भगवान को,
हर तरफ हें रक्त रंजित धरती पर सिसकारियां,
भारत माँ चीत्कार रही इंसा की देख हैवानियाँ,
जिस देश में गौमाता को आदर से पूजा जाता है,
आज उसी भूमि पर उनको बेदर्दी से मारा जाता है,
न जाने इंसान में क्यों इतनी दानवता भर गई,
पशुओं से तुलना क्या करे सबकी मानवता मर गई,
मूक बेकसूर पशुओं पर कोई कट्टार चलाये ना
सबको हक़ है जीने का ये बात कोई भुलाये ना,
जियो और जीने दो के सिद्दांत को अपनाये हम,
अहिंसा को अपनाकर गौमाता को बचाए हम.