आज मैं प्रत्येक निष्ठावान् हिन्दू से एक प्रश्न पूछने जा रहा हूं - ये क्या प्रत्येक हिन्दू के लिये बेहद शर्मनाक नहीं कि आज विश्व में सबसे ज्यादा कटने वाली गाय गुजरात की कंकरेज व गीर नस्ल का आन्ध्र प्रदेश की ओंगोले नस्ल के साथ संमिश्रण कर तैयार की गयी वह नस्ल है, जिसे आज विश्व में Brahman (ब्रह्मन् या ब्राह्मण) के नाम से जाना जाता है? केवल इतना ही नहीं कि विश्व के अधिकतर गोमांसभक्षियों का पेट भरने वाली गाय शुद्ध भारतीय नस्ल की है, बल्कि उसका नाम तक Brahman रखा गया जो वैदिक सनातन धर्म के ग्रन्थों में परमेश्वर का सर्वोत्कृष्ट नाम है। क्या ये हिन्दुओं के चेहरे पर एक करारा थप्पड़ माना जाये या और कुछ? अब क्या कर लोगे, बोलो? एक ओर आस्ट्रेलिया आदि विदेशों में रहने वाले कुछ ऐसे धूर्त हिन्दू हैं जो निःसंकोच यह कह कर गोमांस भक्षण करते हैं कि "हमने तो भारतीय गाय को माता माना है, आस्ट्रेलियन गाय को थोड़ी", जबकि उनकी धूर्तता और मूर्खता की पराकाष्ठा का इस बात से ही पता चल जाता है कि आस्ट्रेलिया आदि देशों में कटने वाली सबसे ज्यादा गायें यही भारतीय नस्लों की मिश्रित नस्ल Brahman की गायें हैं। और अपने यहां के इन मूर्ख हिन्दुओं को देखो, जो सबसे अधिक पुष्ट भारतीय नस्ल की गायों को छोड़ कर जरसी नस्ल की गाय का दूध-घी और गोमूत्र पी-पी कर और उसी से अपने मन्दिरों में पूजा-अर्चना करके अपने को कृतकृत्य मान रहे हैं। बता दूं कि जरसी इंग्लैण्ड के एक छोटे से द्वीप का नाम है। अब जब तक प्रत्येक मन्दिर व आश्रम अपनी आय के कुछ अंश से शुद्ध भारतीय नस्ल की गौओं की सेवा करने का बीड़ा न उठायेगा, तब तक हिन्दूओं के माथे पर लगा यह भयानक कलंक मिटने का कोई और मार्ग मुझे तो नहीं दिखता। वैसे कौओं की तरह जजमानों की ओर झपटने वाले इन कुछ स्वार्थी लुटेरे पण्डों, भारत के चार धामों में से एक बदरीनाथ के प्रधान अर्चक रावल द्वारा मद्यपान करके एक गर्भवती परनारी के साथ बलात्कार करने का प्रयास और भारतीय गोमाता के विश्व में हो रहे इस भयावह विनाश की बात को अपने मन में लाने के बाद मुझे भारत की वे सभी मन्दिर समितियां, आश्रम, पुजारी-पुरोहित और धर्माचार्य निरे पाखण्डी, धर्मध्वजी, धर्मद्रोही और आज के आधुनिक काल में वैदिक सनातन धर्म के सबसे बड़े विरोधी लगने लगे हैं, जो वेद-वेदान्त के प्रचार और गोमाता की सेवा के लिये कुछ न करके केवल भगवान् के श्रीविग्रह से भीख मंगवा रहे हैं। क्षमा करना भाईयों, वैसे ब्राह्मणदेव की चरण रज को मैंने सदैव अपने माथे पर रखा है, लेकिन ब्राह्मणदेव हो तो सही। जो मूर्ख संस्कृत का एक मन्त्र शुद्ध न बोल सके और फिर भी ब्राह्मण होने का दम्भ भरता हो, उसको...। मेरा प्रत्येक निष्ठावान हिन्दू से निवेदन है कि क्या हमें इस दिशा में अब जागृत न हो जाना चाहिये? क्या हम अपनी ४ माताओं को भूल गये हैं? - गायत्री, गीता, गंगा और गौ? क्या हमारे लिये पंच गव्यों से संपादित होने वाली प्रत्येक हिन्दू पूजा एवं वैदिक कर्मकाण्ड अर्थहीन कर्मकाण्डमात्र रह गये हैं? क्या प्रत्येक मन्दिर में गोघृत से जलने वाले अखण्ड दीपक हमारे लिये व्यर्थ हो गये हैं? मैं तो इस जानकारी से अन्दर तक हिल गया हूं, आप? कुछ तो सोचो... वैसे विश्व में सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक देश बनने का महान् गौरव तो भारत को प्राप्त हो ही चुका है, अब देखिये आगे-आगे होता है क्या??? विनम्र निवेदन
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया
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