श्री कृष्ण लीला के उपकरणों में गाय
राम-श्याम प्रणय-कलह में बड़े ही चतुर हैं,बड़े ही चतुर हैं, उस झंकार की ओट में एक लालसा छिपी है- कभी श्यामसुन्दर मुझे खिझाते, मैं रोष करती, ये झगड़ते ; ऐसे प्रलय-कलह का सौभाग्य मुझे भी मिलता नीलमणि ग्वालिन का यही मनोरथ तो पूर्ण करने आये थे, वे चुपचाप गोद से उठ खड़े हुए
ग्वालिन प्रस्तर-मूर्ति की तरह निश्चल बैठी थी, श्यामसुन्दर अपने सुकोमलतम करपललवों से धीरे-धीरे ताली बजाने लगे
ताली बजी कि गोपमण्डली के सहित दाऊ भीतर आ गए, नीलमणिने माखन ग्रह की और संकेत कर दिया
वे सब चुपचाप बिना किसी शब्द के भीतर जा पहुंचे
इधर स्वयं नीलमणि गाय की गर्दन को सहलाने लगे, गाय ने गर्दन फैला दी
गोशाला की तरफ चल पड़े , गोशाला में बहुत-से बछड़े बंधे थे, गाय रम्भा रही थीं, आज अभी तक दूही नही गयी थीं - दुहता कौन=
ग्वालिन तो आधी रात से भावविष्ट थीं तबसे दधि-भांड में मथानी डालकर बिलो रही थी, दो-चार बार मथानी घुमाती, फिर ठहरकर गीत गाती, फिर कुछ देर मथती, फिर गाने लगती उसे यह ज्ञान ही नहीं था की कब प्रभात हुआ!
राम-श्याम प्रणय-कलह में बड़े ही चतुर हैं,बड़े ही चतुर हैं, उस झंकार की ओट में एक लालसा छिपी है- कभी श्यामसुन्दर मुझे खिझाते, मैं रोष करती, ये झगड़ते ; ऐसे प्रलय-कलह का सौभाग्य मुझे भी मिलता नीलमणि ग्वालिन का यही मनोरथ तो पूर्ण करने आये थे, वे चुपचाप गोद से उठ खड़े हुए
ग्वालिन प्रस्तर-मूर्ति की तरह निश्चल बैठी थी, श्यामसुन्दर अपने सुकोमलतम करपललवों से धीरे-धीरे ताली बजाने लगे
ताली बजी कि गोपमण्डली के सहित दाऊ भीतर आ गए, नीलमणिने माखन ग्रह की और संकेत कर दिया
वे सब चुपचाप बिना किसी शब्द के भीतर जा पहुंचे
इधर स्वयं नीलमणि गाय की गर्दन को सहलाने लगे, गाय ने गर्दन फैला दी
गोशाला की तरफ चल पड़े , गोशाला में बहुत-से बछड़े बंधे थे, गाय रम्भा रही थीं, आज अभी तक दूही नही गयी थीं - दुहता कौन=
ग्वालिन तो आधी रात से भावविष्ट थीं तबसे दधि-भांड में मथानी डालकर बिलो रही थी, दो-चार बार मथानी घुमाती, फिर ठहरकर गीत गाती, फिर कुछ देर मथती, फिर गाने लगती उसे यह ज्ञान ही नहीं था की कब प्रभात हुआ!
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