श्री शिव जी वृषभध्ज और पशुपति कैसे बने
एक समय सुरभी का बछड़ा माँ का दूध पी रहा थाउसके मुख से दूध का झाग उड़कर समीप ही बैठे हुए श्री शंकर जी के मस्तक पर जा गिरा
इससे शिव जी को क्रोध हो गया तब प्रजापति ने उनसे कहा कि प्रभु; आपके मस्तक पर यह अमृत का छींटा पड़ा है
बछड़ों के पीने से गाय का दूध झूठा नहीं होता, जैसे अमृत का संग्रह करके चन्द्रमा उसे बरसा देता है वैसे ही रोहिणी गौएँ भी अमृत से उत्पन्न दूध को बरसाती हैं
ये गौएँ अपने दूध और घी से समस्त जगत का पोषण करेंगी सभी लोग इन गोओं के अमृतमय पवित्र दूध रूपी ऐश्वर्य की इच्छा करते हैं
इतना कहकर प्रजापति ने श्री महादेव जी को कई गौएँ और एक वृषभ दिया
तब शिवजी ने भी प्रसन्न होकर वृषभ को अपना वाहन बनाया और अपनी ध्वजा को उसी वृषभ के चिन्ह से सुशोभित किया इसीसे उनका नाम वृषभध्वज पड़ा\
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