सोमवार, 18 अगस्त 2014

~~अर्थ व्यवस्था की रीढ़~~

अर्थ व्यवस्था की रीढ़- 
  धर्म और संस्कृति का प्रतीक होने के साथ-साथ गाय भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था की भी रीढ़ है
देश में सदैव से ही गोधन को ही धन माना जाता है प्राचीन काल में तो किसी भी वस्तु का मूल्याङ्कन गो के द्वारा ही होता था 
हमारे यहाँ गोपालन पश्चिमी देशों की भांति केवल दूध और मांस के लिए नहीं होता
अमृततुल्य दूध के अतिरिक्त खेत जोतने एवं भार ढोने के लिए बैल तथा भूमि की उर्वरता बनाये रखने के लिए उत्तम खाद भी हमें गाय से ही प्राप्त होती है, जिसके अभाव में हमारे राष्ट्र की अर्थ व्यवस्था का शकट किसी प्रकार चल नहीं सकता
भारतीय कृषि की यह अनिवार्य अपेक्षा है की देश में पर्याप्त संख्या में उत्तम बैल उपलब्ध हों, इस समय देश में उनकी जो स्थिति है वह उत्कृष्टता और संख्या दोनों द्रष्टियों से असंतोषजनक है
भारत सरकार की मानव तथा पशु भोजन विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि- चूँकि बैलों की वर्तमान संख्या को कृषि के लिए बनाये रखना आवश्यक है और प्रजनन के द्वारा उनकी पूर्ति करना भी अनिवार्य है
अतः प्रजनन योग्य गोओं की संख्या कम करना हितकर नहीं हो सकता, भले ही उनमें से अधिकांश की दूध देने की क्षमता कितनी भी कम न हो!


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