हम सबका अब एक ही संकल्प होना चाहिये कि देश की एक भी 'गाय' पोलीथीन खाकर न मरे तथा कसाई खानों में जाकर न कटे।
हम सभी अगर सोच ले कि हम ही बदलाव ला सकते हैं तो बदलाव निश्चित है...
इसकी शुरूआत हमे स्वयं अपने घरो से करनी होगी।
आखिर जब हम गाय को माता मानते हैं
तो उसका ध्यान क्यों नहीं रखते ?
क्या माँ को बुढापे में सडकों पर कचरा, पॉलीथीन और डंडे खाने के लिए छोड़ देना चाहिए ?
कितने समय से हम सभी को बताया जा रहा है कि पॉलीथीन की थैलियाँ हमारे पर्यावरण ओर गौमाता के लिए बहुत घातक हैं।
परन्तु कोई भी अपनी इस जरा सी सुविधा को त्यागने को तैयार नहीं है।
सभी को सामान पॉलीथीन में ही चाहिए।
हमारे माता पिता भी तो कपड़े के थैलों में समान लाते थे।
क्या अपने साथ कपड़े की थैली ले जाना इतना कठिन हो गया है ?
आज गाय जिसे गाय माता कहते है कचरा खाने को मजबूर है।
कचरे के साथ हमारी गौ माताएँ पॉलीथीन भी खा लेती हैं।
इससे उनके पेट में इस पॉलीथीन की मात्रा बढ़ती जाती है तो उन्हें कष्ट होता है।
ओर ये पॉलीथीन एक दिन उनकी जान ले लेता है।
सैकड़ों लोगों के सामने पशु चिकित्सक गायों का औपरेशन करके ये पॉलीथीन
की थैलियाँ निकाल रहे हैं।
हाल में ही एक गाय के पेट में से ३५ किलो तो दूसरी के पेट से ८० किलो पॉलीथीन व प्लास्टिक निकाला गया।
अब हम सबको मिलकर लोगों में जन जागरण फैलाना होगा कि पॉलीथीन व प्लास्टिक हमारे पर्यावरण व हमारी गायों के लिए कितना हानिकारक है।
बहुत से लोग यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते है की यह काम सरकार का है हमारा नहीं।
ऐसे लोगो से सिर्फ इतना ही कहूँगी की सरकार भी आप और हम मिलकर ही बनाते है।
सरकार कुछ नही कर रही ऐसा कहकर हमे अपने कर्तव्य से पल्ला नही झाड़ना चाहिये।
अब घरो मे बैठकर जय गौमाता के नारे लगाने से गौरक्षा नही होगी हम सबको मिलकर गौमाता के प्रति अपना कर्तव्य निभाना होगा।
अब यदि गाय के प्रति श्रद्धा के कारण ही लोग पॉलीथीन का उपयोग कम कर दें तो यह धर्म व धार्मिक भावनाओं का एक सकारात्मक उपयोग होगा।
पॉलीथीन के खिलाफ प्रचार से हमारी गायों के साथ साथ हमारी धरती की भी रक्षा हो जाए तो मैं आप सभी की आभारी रहूँगी।
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