मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015

10 पञ्चगव्य चिकित्सा

पञ्चगव्य चिकित्सा 
१ - आक की छाल तथा आक की कोंपले या छोटी-छोटी कोमल पत्तियाँ ५०-५०ग्राम इन दोनों को २००ग्राम आक के दूध में पीसकर गोला बनाकर मिट्टी के पात्र में मुँह बंद करके गाय के गोबर से बने कण्डो की आँच मे फूँक कर भस्म बना ले । ठंडा होने पर भस्म को निकालकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर एक दो गोली पानी के साथ लेने से भगन्दर व नासूर दूर होते है । 

२ - छुवारों के अन्दर की गुठली निकालकर उसमें आक का दूध भर दें ,फिर इनके उपर आटा लपेटकर पकावें ,उपर का आटा जब जल जाये तब उसमें से छुवारे निकाल कर उन्हें पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर रात्रि मे१-२ गोली खाकर तथा गाय का दूध पीने से स्तम्भन होता है ( वीर्य देर से झड़ता है ) । 

३ - आक का दूध व असली मधु और गाय का घी ,सम्भाग चार पाँच घण्टे खरल कर शीशी में भरकर रख ले ,इन्द्री सीवन और सुपारी को बचाकर इसकी धीरे- धीरे मालिश करें और ऊपर से खाने का पान और एरण्ड का पत्ता बाँध दें ,इस प्रकार सात दिन मालिश करें ।फिर १५ दिन छोड़कर पुनः मालिश करने से शिश्न के समस्त रोगों में लाभ होता है । 

४ - आक की जड़ छाया में सुखाकर चूर्ण बना ले ,२० ग्राम चूर्ण आधा किलो दूध में उबालकर इसकी दही जमा दें, और घी तैयार कर लें , इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है । 

५ - बाँझपन:- सफ़ेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीसकर १-२ ग्राम की मात्रा में २५० ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करावें ।शीतल पदार्थों का पथ्य देवें ।इससे बन्द ट्युब व नाड़ियाँ खुलती है व मासिक धर्म व गर्भाशय की गाँठों में भी लाभ होता है । 

६ - आक के २-४ पत्तों को कूटकर पोटली बना, घी लगाकर तवें पर गर्म कर सेंक करें ।सेंकने के पश्चात् आक के पत्तों पर घी चुपड़कर गरम कर बांध दें । 

७ - आक के दूध में सम्भाग शहद मिलाकर लगाने से दाद शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । 

८ - आक की जड़ २ ग्राम चूर्ण को २ चम्मच दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है । 

९ - आक के ताज़े पत्तों का रस १ कि० ग्राम गाय का दूध २ कि० ग्राम सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन ,हल्दी ,सोंठ और सफ़ेद ज़ीरा ६-६ ग्राम इनका कल्क कर १ कि० ग्राम घी में पकावें ,घी मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें ।मालिश करने से खुजली - खाज आदि में लाभ होता है । 

१० - आक का दूध ताज़ा ,व सुखाया हुआ १ भाग १०० बार जल से धोया हुआ गाय का मक्खन ख़ूब खरल करके मालिश करें व २ घंटे तक शीत जल व शीत वायु से रोगी को बचाये रखें । 

9 पञ्चगव्य चिकित्सा

.............पञ्चगव्य चिकित्सा................ 

१. आक के भली प्रकार पीले पड़े पत्तों को थोड़ा सा गाय का घी चुपड़ कर आग पर रख दें ।जब वे झुलसने लगे ,झटपट निकाल कर निचोंड लें ।इस रस को गर्म अवस्था में ही कान में डालने से तीव्र तथा बहुविधि वेदनायुक्त कर्णशूल शीघ्र नष्ट हो जाता है । 

२. आँख का फुला जाला-- आंक के दूध में पुरानी रूई को तीन बार तर कर सुखा लें फिर गाय के घी में तर कर बड़ी सी बत्ती बनाकर जला लें । बत्ती जलकर सफ़ेद नहीं होनी चाहिए ,इसे थोड़ी मात्रा मे सलाई से रात्रि के समय आँखों में लगाने से २-३ दिन में लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है । 

३. आक के दूध में रूई भिगोकर ,गाय के घी में मलकर दाढ़ में रखने से दाढ़ की पीड़ा मिटती है । 

४. जगंल में घूमती फिरती गाय जब गोबर करती है और वह गोबर सूख जाता है तो इन्हें जगंली कण्डे या आरने कहते है ।जगंली कण्डो की राख को आंक के दूध में तर कर के छाया में सुखा लेना चाहिए । इसमें से १२५ ग्राम सुँघाने से छींक आकर सिर का दर्द , आधा शीशी , ज़ुकाम ,बेहोशी इत्यादि रोगों में लाभ होता है ।गर्भवती स्त्री व बालक इसका प्रयोग ना करें । 

५. आक की कोमल शाखा और फूलों को पीसकर २-३ ग्राम की मात्रा में गाय के घी में सेंक ले ।फिर फिर इसमें गुड मिला ,पाक बना नित्य प्रात: सेवन करने से पुरानी खाँसी जिसमें हरा पीला दुर्गन्ध युक्त चिपचिपा कफ निकलता हो ,शीघ्र दूर होता है । 

६. अाक के पुष्पों की लौंग निकाल कर उसमें सम्भाग सैंधा नमक और पीपल मिलाकर ख़ुद महीन पीस लें ।और मटर जैसी गोली बना कर दो से चार गोली बड़ों और १-२ गोली बच्चों को गाय के दूध साथ देने से बच्चों की खाँसी दूर होती है । 

७. आक के एक पत्ते पर जल के साथ महीन पीसा हुआ कत्था और चूना लगाकर दूसरे पत्ते पर गाय का घी चुपड़कर दोनों पत्तों को परस्पर जोड़ ले ,इस प्रकार पत्तों को तैयार कर मटकी में रखकर जला लें । यह कष्ट दायक श्वास में अति उपयोगी है । छानकर काँच की शीशी में रख लें । १०-३० ग्राम तक गाय का घी ,गेंहू की रोटी या चावल में डालकर खाने से कफ प्रकृति के पुरूषों मे मैथुनशक्ति को पैदा करता है ।तथा कफजन्य व्याधियों को और आंत्रकृमि को नष्ट करता है । 

८. आंक के ताज़े फूलों का दो किलो रस निकाल लें । इसमें आंक का दूध २५० ग्राम और गाय का घी डेढ़ किलो मिलाकर मंद अग्नि पर पकायें । घी मात्र शेष रहने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें । इस घी को १ से २ ग्राम की मात्रा में गाय के २५० ग्राम पकायें हुए दूध में मिला कर सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा बवासीर में भी लाभ होता है । शरीर में व्याप्त किसी तरह का विष का प्रभाव हो तो इससे लाभ होता है ,परन्तु यह प्रयोग कोमल प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए । 

९. आंक के ताज़े हरे पत्ते २५० ग्राम और हल्दी २० ग्राम दोनों को महीन पीसकर उड़द के आकार की गोलियाँ बना लें । पहले ताज़े जल के साथ ४ गोली , फिर दूसरे दिन ५ और ६ गोली तक बढ़ाकर घटायें यदि लाभ हो तो पुन उसी प्रकार घटाते बढ़ाते है ,अवश्य लाभ होता है । पथ्य में दूध ,साबूदाना ,जौ का यक्ष देवें । 

१०. आंक के कोमल पत्रों के सम्भाग पाँचों नमक लेकर ,उसमें सबके वज़न से चौथाई तिल का तेल और इतना ही नींबू रस मिला पात्र के मुख को कपड़ मिट्टी से बंद कर आग पर चढ़ा दें । जब पत्र जल जाये तो सब चीज़ों को निकाल पीसकर रख लें । ५०० मिली ग्राम से ३ ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल ,काँजी ,छाछ ,या शराब के साथ लेने से बादी बवासीर नष्ट होती है । 

8 पञ्चगव्य चिकित्सा

.................पञ्चगव्य चिकित्सा .................... १. आक की छाल तथा आक की कोंपले या छोटी-छोटी कोमल पत्तियाँ ५०-५० ग्राम इन दोनों को २०० ग्राम आक के दूध में पीसकर गोला बनाकर मिट्टी के पात्र मे मूंह बन्दकर रखकर ५ कि. ग्राम गाय के गोबर से बने कण्डों की आग में फूँक कर भस्म बनालें । फिर निकालकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर एक दो गोली पानी के साथ लेने से भगन्दर व नासूर में लाभ होता है । 

२. नपुंसकता और ध्वजभंग मे छुवारों के अन्दर की गुठली निकालकर उनमें आक का दूध भर दें ,फिर इनकें उपर आटा लपेटकर पकावें, उप्र का आटा जल जाने पर छुवारों को पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बना लें ,रात्रि के समय एक दो गोली खा कर गाय का दूध पीने से स्तम्भन होता है । 

३. आक की छाया शुष्क जड़ के २० ग्राम चूर्ण को आधा किलो गाय के दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें , इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है । 

४. आक का दूध और असली मधु और गाय का घी , सम्भाग ४-५ घण्टे खरल कर शीशी में भरकर रख लें इन्द्री की सीवन और सुपारी को बचाकर इसकी धीरे - धीरे मालिश करें और उपर से खाने का पान और अरण्ड कापत्ता बाँध दें ,इस प्रकार सात दिन मालिश करें । फिर १५ दिन छोड़कर पुनः मालिश करने से शिशन के समस्त रोगों में लाभ होता है । 

५. बांझपन -सफ़ेद आक की छाया में सूखी जड़ को महीन पीस , १-२ ग्राम की मात्रा से २५० ग्राम गाय के दूध के साथ सेवन करायें शीतल पदार्थ का पथ्य देवें । इससें बन्द ट्युब व नाड़ियाँ खुलती है व मासिकधर्म व गर्भाशय की गाँठों में लाभ होता है। 

६. आक के २-४ पत्तों को कूटकर पोटली बना , तवें पर गाय का घी लगाकर गर्म करके सेंक लें ।सेंकने के पश्चात् आक के पत्तों पर गाय का घी चुपड़कर गरम करकें बाँध दें । 

७. आक की जड़ २ ग्राम चूर्ण को २ चम्मच गाय के दूध की दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है । 

८. आक के ताज़े पत्तों का रस १ किलोग्राम , गाय का दूध २ किलोग्राम सफ़ेद चन्दन लाल चन्दन ,हल्दी , सोंठ , और सफ़ेद ज़ीरा ६-६ ग्राम इनका कल्क कर १ किलोग्राम गाय के घी में पकायें ।घी मात्र शेष रहने पर छान कर रख लें । मालिश करने से खुजली - खाज आदि में लाभ होता है । 

९. आक का दूध ताज़ा , व सुखाया हुआ १ भाग १०० बार जल से धोया हुआ गाय का मक्खन ख़ूब खरल करके मालिश करें व २ घंटे तक शीत जल व वायु से रोगी को बचाये रखें । 

१०. अर्कमूल की छाल १० ग्राम , त्रिफला चूर्ण १० ग्राम , एकसाथ आधा क़िलों जल मे अष्टमांस क्वाथ सिद्ध कर प्रतिदिन प्रात: उसमें एक ग्राम मधु और ३ ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करावें और साथ ही अर्कमूल को गाय की छाछ में पीसकर श्लीपद पर लेंप करे । ४० दिन में पूर्ण लाभ होगा । 

7 पञ्चगव्य चिकित्सा

............पञ्चगव्य चिकित्सा ................. 

१. गौदूग्ध मे शहद मिलाकर पीने से पेट के कीड़े बाहर आते है । 

२. सुन्दरता हेतु एक कप पानी में दो चम्मच दूध डालकर चेहरे पर मलें और अंगराग पावडर में भिगोकर लेप लगाये ।१० मिनट बाद स्नान कर लें । 

३. बल और वीर्य वृद्धि के लिए गर्म दूध में गौघृत और शक्कर मिलाकर पीएँ और गौमूत्र अर्क सुबह -शाम दो चम्मच पानी के साथ लें । 

४. सिरदर्द में गाय के दूध में सोंठ घीसकर सिर लेप लगाये । और ब्राह्मीघृत पाँच से १० मिली लीटर दिन में दो बार सेवन करें ।गौदूग्ध में एक इलायची उबालकर वह दूध पीयें लाभ होगा ही । 

५. अपस्मार ( epilepsy ) बचचूर्ण १ ग्राम मधु के साथ सेवन करें । तत्पश्चात् गौदूग्ध का सेवन करे ।

६. मूत्रकृच्छ ( Dysurea ) -गौदूग्ध और चूने का पानी का सेवन करने से ठीक होता है । 

७. शराब विष शान्ति हेतु -गौदूग्ध और फिटकरी घोलकर पीला देना चाहिए ,उल्टियाँ होकर ठीक हो जायेगा । 
८. मल विबन्ध (constipation ) एक कप गौदूग्ध मे २० मिली लीटर एरण्डतेल मिलाकर सेवन करें ।साधारण क़ब्ज़ मे १० मुन्नकाे को गौदूग्ध में पकाकर दूध सहित सेवन करें । 

९. धतुराविष शान्ति हेतु गौदूग्ध में मिश्री मिलाकर सेवन करने विष शान्त होता है । 

१०. गठिया रोग मे ५ ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण समान मात्रा मे गुड मिलाकर ,गर्म गौदूग्ध के साथ सेवन करने से ठीक होगा । 

११. बवासीर मे नागकेशर गौदूग्ध में मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है । 

१२. कर्णरोग -में कच्चा या पके हुए फल को गौमूत्र के साथ उबालने से कर्ण रोग के लिये चमत्कारी दवा तैयार होती है ।गौमूत्र आधा रह जाय इतना उबालना चाहिए । कि उबले अंश को छानकर कान में डालें। 

१३. गाय के कान के मैल को निकालकर उसकी चने के दाने के बराबर गोली बनाकर इस गोली को बच्चे की नाभि में रखकर उपर रूई रखकर टेप लगा दें ,और सुबह टेप हटाकर देखेंगे तो गोली ग़ायब हो जाती है और बालक का निमोनिया ठीक हो जायेगा । 

१४. गाय के खूर के नीचे की मिट्टी का तिलक करने से भूतबाधा भाग जाती है रोगी ठीक होता है ? 

१५. गाय के गलकम्बल में हाथ फिराने से नामर्द व्यक्ति के स्पर्म जीवित हो जाते है ।और धारोष्णदूध को पीने से अम्लपित ( एसीडिटी ) तुरन्त शान्त होती है ,और पेशाब की जलन में तो चमत्कारी लाभ होता है । 

१२. मलेरिया - में किशमिश और मुन्नका के ५-५ दाने गौदूग्ध मे औटाकर प्रात: खिलाऐ ।फिर दूध पिलाऐ । मलेरिया पुराना हो तो उसमें १० ग्राम सोंठ का चूर्ण मिला दे । लाभ होगा । 

6 पञ्चगव्य चिकित्सा.

...............पञ्चगव्य चिकित्सा.................. 

१. पञ्चगव्य निर्माण की वेदों में इस प्रकार वर्णन मिलता है । एक वर्णन के अनुसार ,गौदूग्ध ,गौदधि ,और गौघृत ,को समान मात्रा में मिला लें इसमें गौमूत्र दूध की कुछ मात्रा का चौथाई और गोबर का रस गोमूत्र कुल मात्रा का आधा मिला दें । इस प्रकार पंचगव्य तैयार कर लिया जाता है । उदाहरण के लिए २००ग्राम दूध ,२०० ग्राम दही ,२०० घी ,में ५० ग्राम गौमूत्र अर्क तथा २५ ग्राम ताज़े गोबर का रस मिलाने से पञ्चगव्य तैयार होता है । 

२. स्वर्ण क्षार बनाने की विधि -- गौमूत्र को तेज़ आँच पर पका लें ,जो झाग उबलते निकले ,उसे किसी पात्र की सहायता से तब तक निकालते रहे जब तक झाग निकलना बंद न हो । फिर आँच से गौमूत्र उतारकर उसे ठण्डा कर ले इसमे तलछट के रूप में यूरिया नीचे बैठ जाता है और झाग के रूप में अमोनिया बाहर हो जाता है ।अब शेष शोधित गौमूत्र ही स्वर्ण क्षार कहा जाता है । 

३. गोमूत्र सेवन विधि -- देशी गाय गौमूत्र ही सेवन योग्य होता है ।प्रतिदिन जंगल में चरने वाली गाय का मूत्र अच्छा होता है गाय गर्भवती न हो अथवा रोगी न हो ।एक वर्ष की बछिया का सर्वोत्तम होता है । गोमूत्र का पान करना, मालिश,पट्टी रखना,एनिमा और गर्म करके सेंक करना प्रमुख है । पीने हेतु ताज़ा और मालिश हेतु दो से सात दिन पुराना गोमुत्र अच्छा रहता है । बच्चों को पाँच तथा बड़ों को रोग के अनुसार १० से ३० ग्राम तक दिन में दो बार देना आवश्यक है । सेवनकाल में मिर्च -मसाले ,गरिष्ठ भोजन ,तम्बाकू तथा मादक पदार्थों का त्याग करना आवश्यक है ।सेवन करने हेतु सफ़ेद सुती कपड़े की आठ परत में छानना चाहिए । 

४. पित्तविकार में गाय का घी सिर पर मलने से लाभ होता है । तथा हरड़ चूर्ण एक चम्मच भोजन के बाद पानी के साथ लेने से तुरन्त लाभ होता है । 

५. सर्पदंश में १० से १०० ग्राम घी पिलाकर उपर से गर्म पानी पिलाये उल्टी,दस्त होने पर विषदोष दूर हो जायेगा । और गौमूत्र अर्क ,गाय के ताज़े गोबर का पिलाने से लाभ होता है । 

६. क़ब्ज़ में पेट साफ़ करने के लिए गौमूत्र छानकर पिलाए । गौमूत्र जितना अधिक छानेंगे उतना अधिक रेचक बनेगा ,हरड़ चूर्ण एक चम्मच ,भोजन के बाद पानी के साथ लें ।और क़ब्ज़ दूर हो जायेगा । 

७. पेशाब के रूकने पर यवक्षार में दो तोला गौमूत्र डालकर पिलाये । पुनर्नवा अर्क सुबह - शाम दो चम्मच पानी के साथ लेने से लाभ होता है । 

८. सफ़ेद दाग बाबरी के बीज को गौघृत मे घीसकर शाम को दाग पर लगाये ,और सुबह गौमूत्र से धो दे ।और किसी भी प्रकार के चर्म रोग मे काली जीरी को गौमूत्र मे गूथँ कर शरीर पर लगाये । 

९. क्षयरोग में शतावरी खाने वाली गाय का दूध पीयें ,और बछिया के मूत्र को पीने से टीबी रोग जड़ से समाप्त होता है । 

१०. बालों को सुन्दर रखने के लिए बालों को नियमित रूप से धोने से बाल चमकदार सुन्दर दिखने लगते है और यदि गौमूत्र से बने शैम्पु से बालों को धोने से बाल झड़ना बंद होते है तथा बाल काले घने होते है और बालों का टूटना बंद हो जाता है ।और बालों का दो मूहाँ होना बंद हो जाता है । 

5 पञ्चगव्य चिकित्सा.

.................पञ्चगव्य चिकित्सा.................... 

१. मोटापा शरीर के लिए अति कष्टदायक तथाबहुत से रोगों को आमन्त्रित करने वाला विकार है । स्थूलता से मुक्ति पाने के लिए आधा गिलास ताज़े पानी में चार चम्मच गौमूत्र दो चम्मच शहद तथा एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नित्य पीना चाहिए इससे शरीर की अतिरिक्त चर्बी कुछ ही दिनों में कम होने लगती है और धीरे-धीरे समाप्त होकर देह का सौन्दर्य बना रहता है । 

२. पेट में कीड़े होने पर आधा चम्मच अजवायन के चूर्ण के साथ चार चम्मच गौमूत्र का एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए ।बच्चों को इसकी आधी मात्रा पर्याप्त है । तथा गौमूत्र के साथ वायबिड़ग आधा चम्मच तीन बार देने हर प्रकार के कीड़े मरते है और घाव के कीड़े तथा सभी प्रकार की जूँओं का सर्वनाश होता है । 

३. चर्मरोग ,दाद,खाज,खुजली ,कुष्ठ ,आदि विभिन्न चर्म रोगों के निवारण हेतु गौमूत्र रामबाण आैषधि है ।नीम ,गिलोय क्वाथ के साथ दोनों समय गौमूत्र का सेवन करने से रक्तदोष जन्य चर्मरोग नष्ट हो जाता है ।जीके को महीन पीसकर गौमूत्र से संयुक्त कर लेप करने या गौमूत्र की माँलिश करने से चमड़ी सुवर्ण तथा रोगरहित हो जाती है । 

४. जोड़ों का दर्द ( सन्धिवात ) ,जोड़ो के नये पुराने दर्द में महारास्नादि क्वाथ के साथ गौमूत्र मिलाकर पीने से यह रोग नष्ट हो जाता है ।सर्दियों में सोंठ के १-१ ग्राम चूर्ण के सेवन से भी लाभ होता है ।तथा दर्द के स्थान पर गर्म गौमूत्र का सेंक करने से भी लाभ होता है । 

५. दाँत दर्द,पायरिया में गौमूत्र बहुत अच्छा कार्य करता है जब दर्द असहाय हो जाये तो गौमूत्र से कुल्ला करें ।गौमूत्र से प्रतिदिन कुल्ला करने से पायरिया नष्ट होता है । 

६. आँख के रोगों में गौमूत्र रामबाण का काम करता है ।इसके काली बछिया का गौमूत्र एकैत्र करके ताँबे के बर्तन में गर्म करें ।चौथाई भाग बचने पर उसे निथार कर पानी अलग कर लें ।नीचे जो लवण बचते है उन्हें फेंक दे उपर का स्वच्छ पानी किसी काँच की शीशी में भर ले नियमित रूप से सुबह-शाम आँख में डाले थोड़ा आँखों में लगता ज़रूर है पर आँखों की खुजली ,धुँधलापन ,रतौंधी ,तथा कमज़ोर नज़र वालों के लिए बहुत अच्छी औषधि सिद्ध हुई है और कुछ ही दिनों में चश्मा भी हट जायेगा नहीं तो नम्बर कम हो जायेगा । 

७. प्रसव पीड़ा के समय ५०मिली लीटर गौमूत्र को को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करकें पिलाने से प्रसव पीड़ा कम होकर प्रसव आसान हो जाता है । प्रसव के बाद गौमूत्र को घर में छिड़कने से जच्चा-बच्चा सुरक्षित रहते है तथा घर के वायरस मर जाते है । तथा डिलिवरी के तुरन्त बाद काँसें की थाली को बजाना चाहीए जिसकी ध्वनितरंगों से जच्चा -बच्चा के आस-पास के वायरस कीटाणु तुरन्त मर जाते है क्योंकि जच्चा की बहुत अधिक सफ़ाई नहीं हो पाती है इसलिए बच्चा पैदा होने के बाद थाली बजाने का विधान है । 

८. गौमूत्र को प्रतिदिन सूती कपडेंकी आठ तह बनाकर ताज़ा मूत्र उसमें छानकर प्रात: ख़ाली पेट पीने के एक घण्टा बाद तक कुछ न खाये पीएँ इसके नियमित प्रयोग से पाइल्स ,लकवा ,पथरी ,दमा ,सफ़ेद दाग ,टाँसिल्स ,हार्ट अटैक ,कोलेस्ट्राल ,श्वेत प्रदर ,अनियमित महावारी ,गठिया ,मधुमेह ,किडनी के के रोग रक्तचाप ,सिरदर्द ,टीबी कैंसर आदि रोग ठीक होते है । 

९. बवासीर रोग में ५०मिली.औरआधा ग्राम हरड़ ( एरण्डतेल में भूनी हुई ) रात्रि में गौदूग्ध से यह रोग नष्ट होता है । 

१०. यकृत प्लीहा की सूजन में पाँच तौला गौमूत्र में समान भाग गौमूत्र मिलाकर नियमित पीने से यकृत व प्लीहा की सूजन उतर जाती है । 

4 पंञ्चगव्य चिकित्सा

पंञ्चगव्य चिकित्सा 
१. बालज्वर--निम्ब के सूखे पत्तों के साथ घी मिलाकर धूप देने से बच्चों का बू खार भाग जाता है । 

२. स्मरणशक्तिवर्धक -- १-२ बचचूर्ण,गौघृत एक चम्मच और एक गिलास गर्मगौदूग्ध के साथ सेवन करने वाले मनुष्य की कुछ ही दिनों में बुद्धि एंव स्मरणशक्ति अत्यन्त बढ़ जाती है । 

३. कास-- पीपल चूर्ण घी में भूनकर उसमें समान मात्रा में सेंधानमक मिलाकर ,एक चम्मच प्रतिदिन लेने से खाँसी ठीक होती है । 

४. दाद खाज खुजली -- तीन कालीमिर्च का चूर्ण,गौघृत एक चम्मच के साथ लेने से कुछ ही दिनों में सभी प्रकार की खुजली व विष का प्रभाव दूर होता है । 

५. बिच्छु के काटने पर -- ज़ीरा को पीस कर ,बराबर मात्रा में सेंधानमक और गौघृत आवश्यकतानुसार मिलाकर गर्म - गर्म लेप करें तुरन्त आराम आता है । 

६. कब्ज , पेट ,फूलना , खट्टी डकार आना-- आदि की समस्या उत्पन्न हो जाने पर ३ तोला स्वच्छ व ताज़ा गौमूत्र स्वच्छ कपड़े । में से छान कर उसमें आधा ग्राम सादा नमक मिलाकर पीना चाहिए,थोड़ी देर बाद ही पेट साफ़ हो जायेगा । 

७. पेट गैस-- जिन लोगों को उदर में अधिक गैस बनने की सिकायत है ।प्रात: काल आधा कप गौमूत्र में काला नमक तथा नींबू का रस मिलाकर पीने से रोग से कूछ ही दिनों में छुटकारा मिल जाता है । 

८. गौमूत्र का खोवा निकालकर उससे बनी ४ गोलियाँ या आधा चम्मच गौमूत्रक्षार के साथ एक चम्मच गौघृत मिलाकर भोजन से पूर्व लेने पर पेट में वायु नहीं बनती है । 

९. पुराना ज़ुकाम , श्वासरोग ,दमारोग ,उच्चरक्तचाप -- विजातीय तत्त्वों के प्रति असहिष्णुता से बार- बार ज़ुकाम होता है । नासारन्ध्रों में सूजन स्थायी हो जाने से पीनस बन जाता है ,नाक बहना बार - बार छींक आना नाक बंद हो जाना बाद में बाल गिरना या असमय सफ़ेद होना आदि लक्ष्ण भी उत्पन्न हो जाते है । इस अवस्था में गौमूत्र को मुख द्वारा सेवन तथा नस्य (नाक से )लेने से चमत्कारिक लाभ होता है ।रोगी को चौथाई प्याली साफ़ ,शुद्ध गौमूत्र लेकर उसमें एक-चौथाई चम्मच फिटकरी फुला मिलाकर सेवन करना चाहिए । 

१०. दमारोग ,क्षयरोग (टी बी )-- दमा के रोगी छोटी बछडी का एक तोला मूत्र नियमित पीने से रोग 
समूल नष्ट होता है । 
११. अम्लपित ( एसीडिटी ) -- अम्लपित के रोगी को सुबह उठते ही गाय का प्रथम मूत्र दो घूट से शुरू करें तथा धीरे-धीरे दस पन्द्रह दिन में छह घूट तक बढ़ा ले । शुरू के दिनों में दिन में दो तीन बार शौच के लिए जाना पड़ सकता है जो १०-१५ दिन में स्वत: ही ठीक हो जायेगा ।दो माह तक सेवन करने से रोग जड़ से ही ख़त्म हो जायेगा । 

१२. यकृत तथा प्लीहा बढ़ना -- जिगर का बढ़ना , यकृत की सूजन तथा तिल्ली के रोगों में गौमूत्र का का सेवन अमौघ औषधि है ।इस बिमारी में पेट बढ़ जाता है और भूख कम लगने लगती है ।अपच , क़ब्ज़ , एसीडिटी ,अशक्त्ता आदि लक्ष्ण प्रदर्शित होने लगते है ।५ तोला गौमूत्र में एक चुटकी नमक मिलाकर लेवे या पुनर्नवा के क्वाथ में समान भाग गौमूत्र मिलाकर या गर्म ईंट पर गौमूत्र में कपड़ा भिगोकर लपेटें और हल्की-हल्की सिकाई प्रभावित स्थान पर करे । 

१३. मधुमेह ( शुगर ) -- शुगर के रोग में रोगी को बिना ब्याही बछिया का मूत्र प्रतिदिन १०-१५ ग्राम सेवन करें तो बहुत लाभ होगा । 

१४. गले का कैंसर-- कैंसर रोगी को गौमूत्र १०० मिली एक चम्मच गोमय ( गोबर रस ) लेकर निहार मुख लेने से ३-४ महीने में आराम आने लगता है । 

१५. जलोदर के रोगी को ५०-५० ग्राम गौमूत्र में २-२ ग्राम यवक्षार मिलाकर पीते रहने से कुछ सप्ताह में पेट का पानी कम होने लगता है ।जलोदर के रोगी को गौदूग्ध भी पीना चाहिए अधिक आराम मिलेगा । 

3 पंञ्गव्य-चिकित्सा

पंञ्गव्य-चिकित्सा 

१. गौदूग्ध को गरम करके रखने से थोड़ी देर बाद उस पर मलाई जमने लगती है ।मलाई का उपयोग त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है ,मलाई को रात्री में सोने से पहले नाभि में लगाने से होंठ फटने बंद होते है तथा फटे होंठो पर मलाई लगाने से वह तुरन्त ठीक होने लगते है तथा चेहरे पर लगाने से चेहरे पर ओज बढ़ता है तथा तेज बढ़ता है और कान्तिवान होता है । 

२. गाय का घी स्वास्थ्य के साथ बु्द्धि एंव स्मरणशक्ति को बढ़ाता है तथा आँखों के लिए हितकारी होता है ।गाय का घी जितना पुराना होता है ,उसी स्तर पर उसकी औषधिय उपचार -क्षमता में वृद्धि होती रहती है ।ज्वरजनित ताप में गाय के पुराने घी की माँलिश लाभदायक होती है 

३. हड्डी टूटने पर बाॅखडी का एक गिलास दूग्ध में स्वादानुसार खाण्ड मिलाकर गरम करें ।गरम होने पर उसमें एक चम्मच घी व दस ग्राम लाख का चूर्ण डालकर ठण्डा करके पिलाए, 
तो टूटी हुई हड्डी जूड़ जाती है । 

४. कफ (बलगम) होने पर गरम दूध में मिश्री और कालीमिर्च का चूर्ण डालकर पीलायें । 
तो कफ निकल जायेगा और शान्ति मिलेगी । 
५. आँख में जलन होने पर गाय के दूध रूप को तर करके उसके उपर फिटकरी का बारीक चूर्ण डालकर आँख पर रखें और पट्टी बाँध दें । 

७. धतुरा अथवा कनेर के विष पर एक गिलास दूध में दो चम्मच शक्कर मिलाकर पीलायें । 

८. मैनसिल के जहर में एक गिलास दूध लेकर उसमें शहद मिलाकर तीन दिन तक सुबह -शाम पीलायें । 
९. जीर्णज्वर में गाय के एक गिलास दूध में एक चम्मच घी ५ ग्राम सोंठ का चूर्ण ,एक छुआरा,और १०ग्राम काली दाख मिलायें ।उसमें आधा गिलास पानी डालकर गरम करे ।जब 
पानी जल जाय ,तब ठण्डा करके पीलायें । 

१०- मधुमेह व मूत्र रोगों में गाय का दूध गर्म करके और एक गिलास दूध में स्वादानुसार गुड़ तथा एक चम्मच घी डालकर सुबह -शाम पीलायें । 

११. काँच का चूर्ण यदि पेट में चला जाये तो उपर से गाय का दूध गर्म करके पीलायें । 

१२ . आधा शीशी दर्द में गाय के दूध का मावा बनाकर खिलाये या गाय के दूध की खीर बनाकर उसमें ५ ग्राम बादाम के बारीक टुकड़े डालकर खिलाये । 

१३. संखिया ,नीला थोथा,बछनाग,मुर्दा संख इत्यादि के विष पर ,जब तक उलटी न हो जाय ,तब तक फीका या मीठा मिला हुआ गाय का गुनगुना दूध पिलाते रहें । 

१४. बलवीर्य की वृद्धि ,गाय के एक गिलास दूध को गर्म करके उसमें एक चम्मच घी व २० ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह- शाम पियें ।इससे बढ़कर पथ्य,तेज और बल वृद्धि करने वाला अन्य कोई योग नहीं हो सकता । 

१५. प्रवाहिका (दस्त) तथा रक्त पित्त होने पर एक गिलास दूध में एक गिलास पानी मिलाकर उबाले ।जब पानी जल जाये तब उस दूध को प्रवाहिका व रक्त पित्त के रोगी को पीलायें तो रोग दूर हो जायेगा । 

2 पञ्चगव्य चिकित्सा

पञ्चगव्य चिकित्सा 

१. सिरदर्द में गा़़़य के एक गिलास दूध में एक इलायची पकाकर पीने से लाभ होता है ।तथा गौदूग्ध और चूने का पानी सेवन करने से मूत्रकृच्छ (Dysurea) में आराम होता है । 

२. स्त्रियों के स्तन में दूध बढ़ाने के लिए सतावरचूर्ण एक चम्मच खाकर ,एक गिलास गर्मगौदूग्ध मे मिश्री दो चम्मच मिलाकर पीते रहने से महिलाओं में दूग्ध वृद्धि होती है । 

३. हृदयरेग में अर्जुनछालचूर्ण एक चम्मच खाकर,एक गिलास गर्म गौदूग्ध में गौघृत एक चम्मच तथा स्वादानुसार गुड़ मिलाकर खाते रहने से लाभ होता है । 

४. Abortion-बार-बार गर्भच्युित होना में महिलाओं को अश्वगन्धाचूर्ण ,एक चम्मच गर्म व मीठे गौदूग्ध के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है । 

५. महिलाओं में रक्तप्रदर (योनि से अत्यधिक रक्त गिरना) में एक चिकनी सूपारी को पानी के साथ पिसकर ,एक चम्मच गौघृत में मिलाकर एक गिलास शक्करमिश्रीत गौदूग्ध के साथ लाभ होने तक सेवन करना चाहिए । 

६. महिलाओं के बन्ध्यारोग (बांझपन) में अश्वगन्धा क्वाथ चार चम्मच ,गौघृत एक चम्मच मिलाकर शक्कर मिश्रीत गर्मगौदूग्ध के साथ आराम आने तक सेवन करना चाहिए । 

७. कर्णशूल (कानदर्द ) में आम के दो पत्ते व सेहुड़ के दो पत्ते लेकर उन पर गाय के घी का लेप कर आग पर सेंककर उसका रस निचोड़ कर कान में डालने से लाभ होता है । 

८. सभी प्रकार के वायुदोषों में पाँच ग्राम हरडे़चूर्ण ,एक चम्मच गौघृत को मिलाकर ,गौदूग्ध के साथ पीने से कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगता है । 

९. शिरोत्पात ( Ciliary Congestion ) रोग में एक चम्मच गौघृत व तीन चम्मच शहद मिलाकर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर होता है । 

१०. नेत्रपुष्प (शुक्लफूला ) रोग में गौघृत में पुनर्नवा की जड़ को घिसकर आँखों में अंजन करने से रोग नष्ट होता है । 

११. कर्णशूल ( Otalgia ) में मदार (काला अर्क ) के पीले पत्तों पर गौघृत लगाकर उन्हे आग में तपाकर हाथों से रस निकाल लें दो-दो बूंद कान में डालते रहने से रोग ठीक होता है । 

१२. व्रणकाय( Insects Bugs ) (घाव) में हींग व नीम की छाल समान मात्रा में मिलाकर, पीसकर उसमें थोड़ा गौघृत मिलाकर लेप करने से नष्ट हाेता है । 

१३. नकसीर( Epistaxis )में ४-५ आॅवलो को ,दो चम्मच गौघृत भूनकर काॅजी में पीसकर सिर पर लेप करने से नासारक्त बंद होता है । 

१४. बादी बवासीर रोग मे थोडे से कूचला को गौघृत में घिसकर मस्सों पर लगाने से दर्द में तुरन्त लाभ होता है । 

१५. शीतपित्त में ५ ग्राम नीमपत्र,एक चम्मच गाय के घी में भूनकर दो आॅवले मिलाकर खाने से कुछ ही दिनों में शीतपित्त ,फोडे,घाव,रक्तविकार में लाभ होता है । 

1 पञ्चगव्य चिकित्सा

पञ्चगव्य चिकित्सा 

१. सिरदर्द में होने पर गाय के दूध में सोंठ घिसकर उसका लेप मस्तक पर करें ।इससे दर्द में अत्यन्त लाभ होगा । 
२. थकावट होने पर थके हुए मनुष्य को एक गिलास गाय का दूध पिलाने से उसकी थकावट तुरन्त दूर हो जायेगी । 

३. मूत्रावरोध यानि पेशाब रूक जाने से पेट में वायु बढ़ जाये ,तो गाय के आधा गिलास दूध में आधा गिलास पानी डालकर पिलाना चाहिए । 

४. हिचकी बार- बार आर ही हो ,तो गाय का गर्म - गर्म दूध पीलायें । 

५. पाण्डुरोग ,क्षयरोग ,और संग्रहणी में लोहे बर्तन में गरम किया हूआ दूध सात दिन तक पिलाएें और हल्का सुपाच्य भोजन करायें । 

६. चेचक अथवा छोटी माता के कारण बालक को जो बूखार। हो ,तो तुरन्त दूहे हुए ( धारोष्ण) दूध में थोड़ा -सा घी और मिश्री मिलाकर पीलायें । 

७. रक्तपित में २०० मिली लीटर दूध में एक लीटर पानी डालकर गर्म करे ।जब सारा पानी जल जाय ,तब दूध को पिलाये ।दो - तीन दिन में ही बिमारी जाती रहेगी । 

८. पित्तविकार रोजाना १०० मिलीग्राम लीटर गाय के दूध में ५-७ ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर उसका मावा बनायें उस मावे में १०-१५ ग्राम पिसी हुई मिश्री मिलाकर रात को सोने से पहले ७ दिन तक खिलाए ।मावा खानें के बाद पानी न पीयें । 

९. रात्रि में सोने से पहले एक कप दूध का सेवन रक्त के नवनिर्माण में सहायक होता है ।एंव विषैले पदार्थ को निष्क्रिय करता है ।तथा प्रात:काल हल्के गर्म दूध का सेवन पाचनक्रिया को संयोजित करने में सहायता करता है । 

१०. गर्म दूध में मिश्री और कालीमिर्च मिलाकर लेने से सर्दी-जुकाम ठीक हो जाता है ।और गौदूग्ध में सबसे कम कोलेस्ट्राल (१४ग्राम /१००ग्राम ) होने के कारण मधुमेह के रोगियों को वसारहित दूध सेवन की सलाह दी जाती है । 

११. अग्निवर्धक व्रण के रोगियों के लिए दूध एक आदर्श आहार है ।५० मिलीलीटर ठण्डे दूध में एक चम्मच चने का सत्तु दो-दो घण्टे पर देने से अल्सर में शीघ्र ही लाभ हो जाता है । 

१२. गाय का धारोष्णदूध मिश्री मिलाकर पीने से मेधाशक्ति बढ़ती है ।आैर आयु बढ़ाने के लिए धारोष्णदूध पीने वाले को नमक कम मात्रा में सेवन करना चाहिए । 

१३. रक्तविकार वाले रोगी के लिए गाय का दूध श्रेयस्कर होता है ।क्योंकि दूग्ध सेवन से सात्त्विक विचार मानसिक शुद्धि एंव बौद्धिक विकास होता है । 

१४. एक कप दूध में २०० मिलीलीटर एरण्डतेल मिलाकर सेवन करने से मलविबन्ध में फ़ायदा हाता है । 

१५. साधारण कब्ज में १० मुन्नकाे को गौदूग्ध में पकाकर दूध सहित सेवन करें ।और गठिया रोग वालों को ५ ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण मिलाकर गरम दूध के साथ सेवन करें । 

शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

गौ वंश जैविक पंचगव्य का प्रयोग एवं महत्व

गौ वंश जैविक पंचगव्य का प्रयोग एवं महत्व

1. पंचगव्य
पंचगव्य , एक कार्बनिक उत्पाद विकास को बढ़ावा देने और संयंत्र प्रणाली में उन्मुक्ति प्रदान करने की भूमिका निभाने की क्षमता है। पंचगव्य नौ उत्पादों अर्थात के होते हैं। गाय के गोबर , गोमूत्र , दूध, दही , गुड़ , घी , केला, टेंडर नारियल और पानी। उपयुक्त रूप से मिलाया जाता है और इस्तेमाल किया, इन चमत्कारी प्रभाव है।
गाय के गोबर - 7 किलो
गाय घी - 1 किलो
सुबह और शाम के समय में ऊपर के दो मुद्दों को अच्छी तरह से दोनों मिक्स और 3 दिन के लिए रखना
गोमूत्र - 10 लीटर
जल - 10 लीटर
3 दिन के मिश्रण गोमूत्र और पानी और नियमित रूप से सुबह और शाम के समय में दोनों के मिश्रण के साथ 15 दिनों के लिए रखने के बाद । 15 दिनों के बाद निम्नलिखित मिश्रण और पंचगव्य 30 दिनों के बाद तैयार हो जाएगा।
गाय के दूध - 3 लीटर
गाय दही - 2 लीटर
टेंडर नारियल पानी - 3 लीटर
गुड़ - 3 किलो
12 नग - वैसे poovan केले ripened ।
2. तैयारी
उपर्युक्त सभी आइटम एक विस्तृत वाला मिट्टी के बर्तन, ठोस टैंक या प्लास्टिक से जोड़ा जा सकता कर सकते हैं ऊपर के आदेश के अनुसार । कंटेनर छाया में खुला रखा जाना चाहिए। सामग्री सुबह और शाम को दोनों दिन में दो बार उभारा जा रहा है। पंचगव्य शेयर समाधान 30 दिनों के बाद तैयार हो जाएगा। ( केयर भैंस उत्पादों मिश्रण करने के लिए नहीं लिया जाना चाहिए। गाय की स्थानीय नस्लों के उत्पादों विदेशी नस्लों की तुलना में शक्ति है कहा जाता है )। यह छाया में रखा है और अंडे और समाधान में कीड़ों के गठन बिछाने से houseflies को रोकने के लिए एक तार की जाली या प्लास्टिक मच्छर नेट के साथ कवर किया जाना चाहिए । गन्ने का रस उपलब्ध नहीं है, तो पानी की 3 लीटर में भंग गुड़ की 500 ग्राम जोड़ें।
भौतिक रसायन और पंचगव्य के जैविक गुण
Chemical             compositionpH                    :    5.45
EC dSm2          :   10.22
Total N (ppm)    :    229
Total P (ppm)    :    209
Total K (ppm)    :    232
Sodium            :    90
Calcium           :    25
IAA (ppm)        :    8.5
GA (ppm)           :    3.5
 Microbial Load
Fungi            :    38800/ml
Bacteria            :    1880000/ml
Lactobacillus        :    2260000/ml
Total anaerobes        :    10000/ml
Acid formers        :    360/ml
Methanogen            :    250/ml
पंचगव्य का भौतिक-रासायनिक गुणों वे लगभग सभी प्रमुख पोषक तत्वों, सूक्ष्म पोषक तत्वों और फसल के विकास के लिए आवश्यक विकास harmones (आई ए ए व जीए ) के अधिकारी हैं कि पता चला। खमीर और लैक्टोबैसिलस की तरह fermentative सूक्ष्मजीवों की प्रबलता कम पीएच , दूध के उत्पाद और उनके विकास के लिए सब्सट्रेट के रूप में गुड़ / गन्ने के रस के अलावा के संयुक्त प्रभाव के कारण हो सकता है।
जनसंख्या गतिशीलता और जीसी विश्लेषण में जैविक पता लगाने के सबूत के रूप में मध्यम से कम पीएच fermentative रोगाणुओं द्वारा कार्बनिक अम्ल के उत्पादन की वजह से था । लैक्टोबैसिलस इस तरह के अपने विकास के अलावा अन्य रोगजनक सूक्ष्मजीवों के खिलाफ प्रभावी रहे हैं जो कार्बनिक अम्ल, हाइड्रोजन पेरोक्साइड और एंटीबायोटिक दवाओं, के रूप में विभिन्न लाभकारी चयापचयों पैदा करता है। जीसी एमएस विश्लेषण फैटी एसिड होता है, alkanes , alconol और एल्कोहल के यौगिकों निम्नलिखित में हुई।
Fatty acids                        Alkanes                Alconol and Alcohols
Oleic acids                        Decane                Heptanol
Palmitic acid                        Octane                Tetracosanol
Myristic                            Heptane                Hexadecanol
Deconore                            Hexadecane            Octadeconol 
                                    
Deconomic                        Oridecane            Methanol, Propanol, Butanol and Ethanol
Octanoic          
Hexanoic          
Octadeconoic          
Tetradeconoic          
Acetic, propionic, butyric, caproic and valeric acids  
Kisanhelp.in खेती और कृषि मुद्दों से संबंधित मुद्दों का सामना कर रहे किसानों को कृषि तकनीक को हिन्दी में  समझने हेतु किसानों की मदद करने वाली वेबसाइट हैं ।   
वाणिज्यिक फसलों पर पंचगव्य के लाभदायक प्रभाव
.आम
अधिक महिला फूलों के साथ घने फूल लाती है
अनियमित या वैकल्पिक असर आदत अनुभवी नहीं है और नियमित रूप से फल के लिए जारी
कमरे के तापमान में 12 दिनों से रखते हुए गुणवत्ता को बढ़ाता है
स्वाद और सुगंध असाधारण रहे हैं
नीबू 
सतत फूल वर्ष दौर सुनिश्चित किया जाता है
फल मजबूत खुशबू के साथ plumpy हैं
शेल्फ जीवन में 10 दिनों के लिए बढ़ा दी है
केला
पुरुष कली निकाल दिया जाता है के बाद सिंचाई के पानी के साथ जोड़ने और छिड़काव के अलावा, 3 % समाधान (100 मिलीलीटर) झुंड के नौसैनिक अंत में बांध दिया गया था । गुच्छा आकार एक समान हो जाता है। एक महीने पहले फसल को देखा गया था। ऊपर और नीचे हाथ के आकार के समान रूप से बड़ा था।
हल्दी
22% से उपज बढ़ाता
अतिरिक्त लंबे उंगलियों
कम जल निकासी नुकसान सुनिश्चित करें
माँ और उंगली rhizomes के अनुपात संकरी
बदले में कीट और रोग भार को कम जो अजगर मक्खी , मकड़ी आदि के अस्तित्व में मदद करता है
माँ / बीज कंद के रूप में प्रीमियम कीमत के लिए बेचा
Curcumin सामग्री enriches
सब्जियां
18 % तक और ककड़ी की तरह कुछ मामलों में उपज बढ़ाने, उपज दोगुनी है
चमकदार और आकर्षक त्वचा के साथ पौष्टिक सब्जियां
विस्तारित शैल्फ जीवन
मजबूत स्वाद के साथ बहुत स्वादिष्ट
 
आम तौर पर पंचगव्य 30% स्तर ( पानी की 100 लीटर में 3 लीटर पंचगव्य ) में पत्ते का स्प्रे के रूप में सभी फसलों के लिए सिफारिश की है।
खुराक
स्प्रे प्रणाली
3% समाधान की जांच उच्च और कम सांद्रता की तुलना में सबसे अधिक प्रभावी हो पाया था। पानी की हर 100 लीटर पंचगव्य से तीन लीटर सभी फसलों के लिए आदर्श है। 10 लीटर क्षमता की बिजली स्प्रेयर 300 मिलीग्राम / टैंक पड़ सकता है। बिजली स्प्रेयर के साथ छिड़काव करते हैं, तलछट फ़िल्टर किए जा रहे हैं और हाथ संचालित स्प्रेयर के साथ छिड़काव करते समय, उच्च ताकना आकार के साथ नोक इस्तेमाल किया जाना है।
फ्लो सिस्टम
पंचगव्य का समाधान या तो ड्रिप सिंचाई या प्रवाह सिंचाई के माध्यम से प्रति हेक्टेयर 50 लीटर में सिंचाई के पानी के साथ मिलाया जा सकता है
बीज / अंकुर उपचार
पंचगव्य का 3% समाधान बीज लेना या बोने से पहले अंकुरों डुबकी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। 20 मिनट के लिए भिगोने के लिए पर्याप्त है। गन्ने की हल्दी, अदरक की rhizomes और सेट लगाने से पहले 30 मिनट के लिए भिगो जा सकता है।
बीज भंडारण
पंचगव्य समाधान के 3% सुखाने और उन्हें भंडारण से पहले बीज डुबकी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
दौरा
पूर्व फूल चरण
15 दिन में एक बार, दो स्प्रे फसलों की अवधि पर निर्भर करता है
फूल और फली सेटिंग मंच
एक बार में 10 दिन, दो स्प्रे
फल / फली परिपक्वता चरण
फली परिपक्वता के दौरान एक बार
जैस्मीन
असाधारण खुशबू और खुशबू कली कीड़ा की कोई घटना साल भर में सतत फूल
अमरूद
हायर टीएसएस शेल्फ जीवन 5 दिनों के लिए बढ़ा दी है
पंचगव्य का प्रभाव
पत्ता
पंचगव्य के साथ छिड़काव पौधों सदा ही बड़ा पत्तियों का उत्पादन और सघन चंदवा का विकास। संश्लेषक प्रणाली अधिकतम चयापचयों और photosynthates के संश्लेषण, सक्रिय करने के लिए बढ़ाया जैविक दक्षता के लिए सक्रिय है।
तना
ट्रंक मजबूत और परिपक्वता के लिए अधिकतम फल ले जाने में सक्षम हैं जो पक्ष शूटिंग, पैदा करता है। शाखाओं में बंटी अपेक्षाकृत अधिक है।
जड़ें
पक्ष विपुल और घना है। इसके अलावा वे एक लंबे समय के लिए नए सिरे से रहते हैं। गहरी परतों में फैला हुआ है और बढ़ने की जड़ों को भी मनाया गया। ऐसे सभी जड़ों पोषक तत्वों और पानी का अधिकतम सेवन मदद करते हैं।
प्राप्ति
भूमि संस्कृति का अकार्बनिक सिस्टम से जैविक खेती करने के लिए परिवर्तित किया जाता है, सामान्य परिस्थितियों में उपज अवसाद हो जाएगा। पंचगव्य की प्रमुख विशेषता भूमि पहले ही साल से जैविक संस्कृति के लिए अकार्बनिक सांस्कृतिक प्रणाली से बदल जाती है जब सभी फसलों की उपज स्तर को बहाल करने की इसकी क्षमता है। फसल न केवल सब्जियां, फल और अनाज की शेल्फ जीवन को बढ़ाता है, लेकिन यह भी स्वाद में सुधार सभी crops.It में 15 दिनों से उन्नत है। कम करने या महंगा रासायनिक आदानों की जगह तक, पंचगव्य उच्च लाभ सुनिश्चित करता है और ऋण से जैविक किसानों को मुक्त।
सूखा साहस
एक पतली तेल फिल्म के पत्तों पर गठन किया है और इस तरह पानी के वाष्पीकरण को कम करने, उपजा है। पौधों द्वारा विकसित गहरी और व्यापक जड़ों लंबे शुष्क अवधि सामना करने के लिए अनुमति देते हैं। दोनों कारकों के ऊपर 30% से सिंचाई पानी की आवश्यकता को कम करने के लिए और सूखे साहस सुनिश्चित करने के लिए योगदान करते हैं।
पशुओं के स्वास्थ्य के लिए 5. पंचगव्य
पंचगव्य कई सूक्ष्म जीवों, बैक्टीरिया, कवक, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, अमीनो एसिड, विटामिन, एंजाइमों, कारकों सूक्ष्म पोषक एंटीऑक्सीडेंट और प्रतिरक्षा कारकों को बढ़ाने के तत्वों का पता लगाने को बढ़ावा देने के ज्ञात और अज्ञात विकास के रहने वाले एक अमृत है।
जानवरों और मनुष्य द्वारा मौखिक रूप से लिया है, जब पंचगव्य में रहने वाले सूक्ष्म जीवों प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित और किया जाता सूक्ष्मजीवों के खिलाफ एंटीबॉडी के बहुत उपज। यह वैक्सीन की तरह कार्य करता है। शरीर की यह प्रतिक्रिया पशुओं और मनुष्यों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार बीमारी को रोकने के लिए मदद करता है और रोग इलाज। यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देती है और शबाब पुनर्स्थापित करता है। पंचगव्य में मौजूद अन्य कारकों के शरीर में जहर के apetite, पाचन और आत्मसात और उन्मूलन में सुधार होगा। कब्ज पूरी तरह से ठीक हो जाता है। इस प्रकार पशुओं और मनुष्यों के बालों और त्वचा की चमक के साथ चुस्त और स्वस्थ हो जाते हैं। वजन लाभ प्रभावशाली हैं।
सुअर
उम्र और वजन के आधार पर 50 मिलीग्राम / सुअर - पंचगव्य 10 एमएल की दर से पीने के पानी या फ़ीड के साथ मिलाया गया था। सूअरों स्वस्थ और रोग मुक्त हो गया। वे एक तेज दर से वजन प्राप्त की। वजन रूपांतरण अनुपात करने के लिए फ़ीड काफी वृद्धि हुई है। यह फ़ीड लागत को कम करने और वृद्धि की वजह से वजन करने के लिए बहुत अच्छा रिटर्न पाने के लिए सुअर पालन के मालिकों में मदद की।
बकरी और भेड़
बकरी और भेड़ स्वस्थ बन गया है और उम्र के आधार पर प्रति दिन प्रति पशु 20 मिलीलीटर पंचगव्य के लिए 10 मिलीलीटर प्रशासित करने के बाद एक छोटी अवधि में अधिक वजन प्राप्त की।
गायों
दिन प्रति गाय प्रति 100 मिलीलीटर की दर से पशु चारा और पानी के साथ पंचगव्य मिश्रण करके, गायों की वृद्धि हुई दुग्ध उत्पादन, वसा की मात्रा और एसएनएफ के साथ स्वस्थ हो जाते हैं। गर्भाधान की दर में वृद्धि हुई। बरकरार रखा नाल, स्तन की सूजन और पैर और मुंह रोग अतीत की बातें हो गया। अब गाय की त्वचा अधिक बालों के साथ चमकदार है और अधिक सुंदर लग रहा है। इसके बजाय जताया से पहले धान की पुआल (घास) पर यूरिया के छिड़काव की, कुछ किसानों जताया दौरान परत के बाद 3 प्रतिशत पंचगव्य का समाधान, परत छिड़काव किया और यह विक्षोभ की अनुमति दी। गायों unsprayed घास स्टॉक की तुलना में ऐसी घास को प्राथमिकता दी।
पोल्ट्री
प्रति दिन प्रति पक्षी 1 मिलीलीटर की दर से फ़ीड या पीने के पानी के साथ मिश्रित करते हैं, पक्षियों को रोग मुक्त और स्वस्थ हो गया। वे लंबी अवधि के लिए बड़ा अंडे रखी। विवाद करनेवाला मुर्गियों में वजन बढ़ाने के प्रभावशाली था और चारा-वजन रूपांतरण अनुपात में सुधार हुआ।
मछली
पंचगव्य मछली तालाबों में ताजा गोबर के साथ दैनिक लागू किया गया था। यह इस प्रकार मछली के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ रही है, तालाब में शैवाल, मातम और छोटे कीड़े के विकास में वृद्धि हुई। केवल एहतियात ताजा पानी लगातार अंतराल पर तालाबों में जोड़ा जाना चाहिए। अन्यथा, शैवाल, मातम और अन्य जीवों के विकास के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन उपलब्ध के लिए मछली के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। वैकल्पिक रूप से, यांत्रिक आंदोलनकारियों भी पानी में ऑक्सीजन सामग्री को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। दस महीने के समय में प्रत्येक मछली 2 से 3 किलोग्राम का वजन करने के लिए वृद्धि हुई। छोटे फिंगरलिंग्स के कम मृत्यु दर और विपणन मछली के बढ़े हुए वजन के साथ, मत्स्य पालन और अधिक लाभदायक हो गया।
मानव स्वास्थ्य के लिए 6. पंचगव्य
शरीर एक से अधिक और एक आधे साल के लिए एलोपैथिक उपचार तहत किया गया था सब कुछ खत्म हो सोरायसिस के साथ एक औरत। वह क्षेत्र में उपयोग के लिए पंचगव्य तैयार करने के लिए हुआ है और उसकी बांह की कलाई के साथ सामग्री हलचल। 15 दिनों के बाद, उसके सामने हाथ में सोरायसिस पूरी तरह से ठीक हो गया। उसे अपने अंतर्ज्ञान के बाद, वह सारे शरीर में और हर किसी के आश्चर्य करने के लिए पंचगव्य लिप्त; सोरायसिस 21 दिनों में गायब हो गया।
खुराक
फ़िल्टर्ड पंचगव्य की 50 मिलीलीटर पानी, टेंडर नारियल पानी या फलों का रस के 200 मिलीलीटर के साथ मिलाया जाता है और सुबह में खाली पेट में मौखिक रूप से लिया। यह रोगों के सभी प्रकार के लिए है।
एड्स / एचआईवी
एड्स / एचआईवी रोगियों को खो भूख और पाचन आ गया और वजन पर डाल दिया। वे बेहतर सोया। उनका बुखार, खांसी, दस्त और त्वचा के घावों एक महीने के इलाज के भीतर गायब हो गया। उनमें से अधिकांश अब खेतों में काम कर रहे हैं और दूसरों को अपने व्यवसायों का पीछा कर रहे हैं। रक्त परीक्षण अभी भी सकारात्मक रहे हैं, वे एड्स के कोई लक्षण नहीं दिखा रहे हैं और एक सामान्य स्वस्थ जीवन जी।
सोरायसिस
सोरायसिस में, यह बहुत प्रभावी है और घावों छह महीने के भीतर गायब हो जाते हैं। एक्जिमा और अन्य एलर्जी त्वचा विकारों में, चिकित्सा और भी तेज है।
मस्तिष्क संबंधी विकार
आक्षेप और पार्किंसनिज़्म तरह मस्तिष्क संबंधी बीमारियों से पीड़ित रोगियों को दी जाती है, यह आक्षेप में हमलों की आवृत्ति को कम करने में मदद की और पार्किंसनिज़्म में हाथ और सिर के झटकों कम कर दिया। वे नियमित रूप से दवाओं को कम करने में सक्षम थे।
मधुमेह
दिन प्रति फ़िल्टर्ड पंचगव्य की 50 मिलीलीटर एक खाली पेट पर सुबह जल्दी में लिया गया था, जब वह रक्त शर्करा को कम करने और विरोधी मधुमेह दवाओं की मात्रा को कम करने के लिए रोगियों को सक्षम होना चाहिए। एक महीने के भीतर गायब हो गया पैर में सामान्य कमजोरी, अपच, कब्ज और जलन की तरह शिकायतों। वे सक्रिय और स्वस्थ हो गया।
फेफड़े का क्षयरोग
यह नियमित रूप से टीबी विरोधी दवाओं के अतिरिक्त दिया जा सकता है। बुखार एक सप्ताह के भीतर गायब हो गया और खांसी दो सप्ताह के भीतर नियंत्रित किया गया था। भूख सुधार हुआ है और मरीजों के शरीर के वजन प्राप्त की। विरोधी टीबी के इलाज की अवधि एक माह से कम हो गया था।
गठिया
यह पूरी तरह से जोड़ों का दर्द, सूजन और कठोरता से राहत मिलती है। गठिया के दो महीने के भीतर ठीक हो जाता है। अब भी स्वस्थ लोगों को और अधिक स्वस्थ और ऊर्जावान बनने के लिए इसे ले जाओ।