बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

20 गौ - चिकित्सा .(इल रोग)

गौ - चिकित्सा .इल रोग 


################# इल रोग ################## 

यह रोग अधिकतर शीत ऋतु में और कभी - कभी दूसरी ऋतु में भी होता है । जब पशु घास के साथ एक प्रकार के कीड़े को खा जाते है तो यह रोग उत्पन्न होता है । कभी - कभी भीतर बीमारी के कारण भी यह रोग हो जाता है । 
पशु की जिह्वा के नीचे के भाग में चट्टे पड़ जाते है । उनमें सड़ान पैदा होती है । सड़ान में कई छोटे - छोटे जन्तु ( कीड़े ) उत्पन्न हो जाते है जिससे दुर्गन्ध आने लगती है । ये जन्तु इतने छोटे होते हैं । कि वे ठीक तरह से दिखाई नहीं देते । अगर इसका समय पर ठीक तरह से इलाज न किया जाय, तो यह रोग बड़ता ही जाता है इस रोग के चलते दूधारू पशु कम दूध देने लगते है । 

१ - औषधि - जलजमनी ( बछाँग की जड़ ) ६० ग्राम , गाय का घी २४० ग्राम , बछाँग की जड़ को महीन पीसकर , घी में मिलाकर रोगी पशु को प्रतिदिन , सुबह - सायं एक समय, अच्छा होने तक पिलायें । 

२ - औषधि - फिटकरी ६० ग्राम , मिस्सी काली ६० ग्राम , आबाँहल्दी ६० ग्राम , मकान की झाडन का घूँसा ( झोलू ) ६० ग्राम , सबको पीसकर चलनी से छानकर एक बोतल में भरकर रोगी पशु को दोनों समय, १२-१२ ग्राम , घाव पर लगायें । 

३ - औषधि - सिर के बाल ३ ग्राम , गुड़ १२ ग्राम , दोनों को मिलाकर एक टीकिया बना लें । जिह्वा को उलटकर घाव पर टीकिया रखें। फिर लाल सरिये को टीकिया पर रख दे , जिसकी गर्मी से जन्तु मर जायेंगे और पशु को आराम मालूम होगा ।वह ठीक हो जायेगा । 
यह नुस्खा घाव के अनुसार बनायें, छोटे घाव के लिए कम बाल तथा बड़े घाव के लिए अधिक बाल लें। रोगी पशु को हल्की और बारीक खुराक दी जाय, उसे हरी घास , जौ,जाईं, बरसिम,व सीशम की पत्ती व कोई हरा चारा खिलाना चाहिए । सुखा चारा नहीं देना चाहिए,हरा चारा देने से घाव जल्दी ठीक होता है । सूखा चारा घाव में चुभता है ।और पशु को कष्ट होता है । 
------------------------- @ -------------------------- 

डेंडकी रोग 
=================== 
यह रोग केवल गाय - बैल वर्ग के पशु को ही होता है । यह रोग गर्मी और जाडें में होता है । यह रोग जिह्वा के ऊपर मोटी जिह्वा और साधारण जिह्वा के बीच में पैदा होता है । सूखा , गला घास - दाना खाने के बाद , समय पर पानी न मिलने से यह रोग हो जाता है । 
पशु की जिह्वा पर ज़ख़्म - सा हो जाता है । उस ज़ख़्म से दुर्गन्ध आती है । पशु को लार गिरती है । ज़ख़्म में घास भर जाती है । घास - दाना खाने में कमी हो जाती है । दूधारू पशु के दूध देने में कमी हो जाती है है । 
१ - औषधि - पहले रोगी पशु के ज़ख़्म को , नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से ,दोनों समय ,धोना चाहिए । फिर ज़ख़्म पर २४ ग्राम , दोनों समय ख़ूब रगड़ना चाहिए । इसके अगले दिन ज़ख़्म में ४ बार , पीसा नमक ज़ख़्म में भर दिया जाय । फिर इसके अगले दिन ज़ख़्म में आधा तोला मिस्सी , दोनों समय , चार दिन तक , भर दी जाये । 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें