गौ - चिकित्सा . गर्मी की दवा
###################### गर्मी की दवा ########################
गर्मी अधिक होने से यह बीमारी होती है । बाहर की गर्मी द्वारा यह बीमारी अधिक होती है । जेठ मास की गर्मी से भी यह बीमारी फैलती है , किन्तु क्वार की गर्मी का प्रभाव रहता है ।
पशु का दम घुटने लगता है । वह अस्वस्थ हो जाताहै । भैंस को क्वार में पानी में लौटने की ज़रूरत पड़ती हैं ,क्योंकि , अधिक गर्मी के कारण वह दूध देना कम कर देती है । गर्मी के कारण यह बीमारी पशु को होती है और पशु का दम घुटने लग जाता है । इस गर्मी से बचाने के लिए पशु को छाया में रखना चाहिए ।
१ - औषधि - गाय के दूध से बनी दही १६८० ग्राम , गुड़ या शक्कर ४८० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , गँवार पाठे का गूद्दा निकालकर दही में मथकर शक्कर और पानी मिलाकर रोगी पशु को रोज सुबह , अच्छा होने तक , पिलायें ।
२ - औषधि -गाय का दूध ९६० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , गँवारपाठा का २०० ग्राम गूद्दा निकालकर , एक लीटर दूध में मिलाकर गुनगुना करके गरम होने पर रोगी पशु को रोज़ाना आराम होने तक दिया जाय ।
आलोक-:- रोगी पशु को शीशम की पत्तियों और जलजमनी और हरी घास खिलानी चाहिए और गर्मी से बचाना चाहिए ।
३ - औषधि - अलसी का आटा ९६० ग्राम , पानी १५०० ग्राम , अलसी के आटे को उपर्युक्त मात्रा में पानी मिलाकर रोगी पशु को सुबह- सायं ,अच्छा होने तक देना चाहिए । उपर्युक्त मात्रा केवल एक खुराक की है ।
आलोक -:- कभी- कभी मादा पशु चार महीने ब्यायी हुई होने पर भी गर्मी के कारण दूध देना बन्द कर देती है तो ऐसा होने पर उसे ३४० ग्राम गाय का घी देने से वह दूध देने लगती है। यह मात्रा एक खुराक की है । इसे ४-५ दिन तक देना चाहिए ।
४ - जब गाय का घी न हो तो ३५० ग्राम , अलसी का तैल पिलाना चाहिए । इससे भी मादा पशु दूध देने लग जाती है । यह मात्रा एक खुराक की है ।
गर्मी अधिक होने से यह बीमारी होती है । बाहर की गर्मी द्वारा यह बीमारी अधिक होती है । जेठ मास की गर्मी से भी यह बीमारी फैलती है , किन्तु क्वार की गर्मी का प्रभाव रहता है ।
पशु का दम घुटने लगता है । वह अस्वस्थ हो जाताहै । भैंस को क्वार में पानी में लौटने की ज़रूरत पड़ती हैं ,क्योंकि , अधिक गर्मी के कारण वह दूध देना कम कर देती है । गर्मी के कारण यह बीमारी पशु को होती है और पशु का दम घुटने लग जाता है । इस गर्मी से बचाने के लिए पशु को छाया में रखना चाहिए ।
१ - औषधि - गाय के दूध से बनी दही १६८० ग्राम , गुड़ या शक्कर ४८० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , गँवार पाठे का गूद्दा निकालकर दही में मथकर शक्कर और पानी मिलाकर रोगी पशु को रोज सुबह , अच्छा होने तक , पिलायें ।
२ - औषधि -गाय का दूध ९६० ग्राम , गँवारपाठा का गूद्दा २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , गँवारपाठा का २०० ग्राम गूद्दा निकालकर , एक लीटर दूध में मिलाकर गुनगुना करके गरम होने पर रोगी पशु को रोज़ाना आराम होने तक दिया जाय ।
आलोक-:- रोगी पशु को शीशम की पत्तियों और जलजमनी और हरी घास खिलानी चाहिए और गर्मी से बचाना चाहिए ।
३ - औषधि - अलसी का आटा ९६० ग्राम , पानी १५०० ग्राम , अलसी के आटे को उपर्युक्त मात्रा में पानी मिलाकर रोगी पशु को सुबह- सायं ,अच्छा होने तक देना चाहिए । उपर्युक्त मात्रा केवल एक खुराक की है ।
आलोक -:- कभी- कभी मादा पशु चार महीने ब्यायी हुई होने पर भी गर्मी के कारण दूध देना बन्द कर देती है तो ऐसा होने पर उसे ३४० ग्राम गाय का घी देने से वह दूध देने लगती है। यह मात्रा एक खुराक की है । इसे ४-५ दिन तक देना चाहिए ।
४ - जब गाय का घी न हो तो ३५० ग्राम , अलसी का तैल पिलाना चाहिए । इससे भी मादा पशु दूध देने लग जाती है । यह मात्रा एक खुराक की है ।
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