पवित्र गाय के विषय में हिन्दू पाखंड
बहुत समय नहीं हुआ जब आश्रम आए कुछ मेहमानों के साथ एक शाम आग तापते हुए अच्छी-ख़ासी रोचक चर्चा हुई थी। हम भारत में उन्हें हुए अनुभवों के बारे में बात कर रहे थे और तभी एक, जर्मनी से आई एक डॉक्टर ने यह प्रश्न जड़ दिया: मैंने पढ़ा है कि भारत में गायों को पवित्र माना जाता है लेकिन शहर में लोगों को मैं पैदल देखती हूँ तो पाती हूँ कि बहुत से लोग चमड़े के जूते पहने हुए हैं और इसके अलावा वे चमड़े के बेल्ट और चमड़े के बैग भी निःसंकोच इस्तेमाल करते हैं। वे इन दोनों बातों का तालमेल किस तरह बिठा पाते हैं?
इसका उत्तर दरअसल मुझे सिर्फ एक पंक्ति में देना पड़ा: लोग बड़े पाखंडी हैं। यह सच है, इसके अलावा आप इसे क्या कहेंगे? भारत आए किसी पर्यटक को इसे और किस तरह समझाएँगे?
हिन्दू धर्म कहता है कि गाय पवित्र है। यह सही है। लेकिन आपको सिर्फ बाहर निकलकर इधर-उधर नज़रें भर घुमाना है और आपको हर तरफ गायों की दुरवस्था देखने को मिल जाएगी: आवारा, शहर भर में घूमती हुई, हर तरह का, जो मिल जाए, कचरा और कूड़ा-कर्कट खाती हुई, अक्सर प्लास्टिक और दूसरी खतरनाक अखाद्य वस्तुएँ खाती हुई। वे अक्सर मरियल सी और बीमार होती हैं। यह सब एक पवित्र गाय भुगतती है और लोग देखते रहते हैं! क्यों और कैसे?
या क्या गाएँ तभी तक पवित्र हैं जब तक वे दूध देती हैं या आपकी चाकरी करती हैं? क्योंकि देखने में यही आता है: दूध देने वाली गाएँ, जब बच्चे पैदा नहीं कर पातीं और इसलिए दूध देना बंद कर देती हैं तो उन्हें बाहर निकालकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है और वही गाएँ सड़क पर भटकती दिखाई देती हैं।
सिर्फ केरल और पश्चिम बंगाल को छोड़कर भारत के लगभग सभी राज्यों में गौहत्या गैरकानूनी है लेकिन साथ ही भारतीय चमड़ा व्यवसाय बहुत विशाल है। उसका “कुल व्यापार 5 बिलियन डॉलर्स का है और उससे होने वाली आय भारत की कुल निर्यात आय का लगभग 4% है”। ये दोनों बातें कैसे संभव हैं- गायों का वध भी अवश्य किया जाता होगा तभी चमड़ा व्यवसाय के ये आँकड़े हासिल किए जा सकते हैं! और धार्मिक लोग भी इस चमड़े का इस्तेमाल करते हैं!
आखिर मंदिरों में धड़ल्ले से इस्तेमाल होने वाले तबले पर चढ़ाया जाने वाला और दूसरे वाद्ययंत्रों में इस्तेमाल होने वाला चमड़ा कहाँ से आता है? मैंने इसके बारे में जानकारी हासिल की- बकरी या गाय के चमड़े से। क्या गाने-बजाने वाले यह पूछते हैं कि चमड़ा किस जानवर का है? क्या आप समझते हैं कि मंदिर के पुजारी इस बात की जाँच करते हैं कि उनके मंदिर की पवित्रतम जगहों में प्रवेश पाने वाला वाद्य पूरी तरह पवित्र चमड़े का बना हुआ है?
मुझे इस बात में संदेह है।
मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि सभी हिन्दू शाकाहारी नहीं होते। भारत की लगभग 80% आबादी हिन्दू है। और सिर्फ 30% भारतीय ही शाकाहारी हैं। इसका अर्थ है कि बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू भी मांसाहारी हैं। मैकडोनल्ड्स भारत में चिकन और बकरे के गोश्त से तैयार बर्गर बेच सकता है लेकिन क्या आप समझते हैं कि जब भी कोई हिन्दू सैंडविच में या किसी और खाने में मौजूद मांस का टुकड़ा खाते हैं तो क्या वे इसे सुनिश्चित करने के लिए कि उसमें गाय का मांस नहीं है, किसी से पूछते हैं?
जी नहीं, वे नहीं पूछते।
और इन्हीं सब बातों के चलते मैं कहता हूँ कि वे पाखंडी हैं। आप गायों से प्रेम करने का दिखावा करते हैं, उसकी पूजा करते हैं, यहाँ तक कि उसका पेशाब पीते हैं क्योंकि आप समझते हैं कि उससे आपको कोई अलौकिक दैवी शक्ति प्राप्त हो जाएगी- लेकिन फिर आप उन्हें मरने के लिए सड़कों पर छोड़ देते हैं, उन्हें बूचड़खानों में भेज देते हैं, उनका मांस खाते हैं, उनकी खाल के जूते पहनते हैं और तबलों और वाद्ययंत्रों पर उनका चमड़ा चढ़ाकर अपने पूजाघरों में ले जाते हैं, जिसे वैसे आप अपवित्र मानते हैं!
अंत में मेरे पास हमेशा यह सवाल खड़ा रह जाता है: सिर्फ गाय ही क्यों? गाय की पूजा करो और कुत्ते को लात मारो। गाय की रक्षा करो और सूअर को खा जाओ। क्यों?
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