मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

गाय हमारी माता, पर इंसान को लालच भाता

गाय हमारी माता, पर इंसान को लालच भाता

प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का गोदान अगर किसी ने पढ़ा हो तो आजादी के तुंरत बाद सामाजिक और राजनीतिक चित्रण के साथ ही गौ के दान का जो मार्मिक चित्रण एक मेहतो के जीवन में इस उपन्यास के माध्यम से दिखाया गया है पढ़ते ही बनता है। आज गौमांस को लेकर सियासी रोटियों 7b039b014e5248df93ebeb216e3का जोड़-तोड़ जमकर हो रहा है। निसंदेह गाय एक ऐसा पशु है जो महज मवेशी न होकर हिन्दू धर्म में आस्था, श्रद्धा और प्रेम का द्योतक है। मां का दूध जीवनदायी है लेकिन किसी भी ऐसी परिस्थिति में जब बच्चे को मां का दूध उपलब्ध न हो तो दूसरा दूध गाय का ही होता है जो नवजात को दिया जाता है। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके लोकतंत्र को भी विश्व में किसी भूमिका की आवश्कता नहीं है।
अपने धर्म और आस्था के साथ-साथ दूसरे के धर्म के प्रति भी सम्मान इस देश की एकता और अखंडता की कुंजी रही है। बावजूद इसके जिस तरह का सियासी रंग देकर गौमांस के मुद्दे को हवा दी जा रही है वह वास्तव में बेहद निंदनीय है। परंतु इन सब के बीच एक पहलु ऐसा भी है जिस पर शायद ही कभी गंभीरता से मनन किया गया हो। मनुष्य का स्वार्थ निजी हितों की उस प्रकाष्ठा पर जा पहुंचा है जहां शायद मानवता का होना या न होना कोई मायने ही नहीं रखता। कुछ ऐसे सवाल आज भी यक्ष प्रश्नों की भांति यथावत खड़े हैं जिन पर जवाब नदारद हैं। मसलन अगर गाय इतनी ही पूजनीय है तो दूध न देने की सूरत में उसे आवारा और लाचार बना कर सड़कों पर कूड़ा खाने के लिए क्यों छोड़ दिया जाता है।
हमारी गौशालाएं क्यों आर्थिक स्तर पर इतनी क्षीण हो चुकी हैं कि छोड़े गए आवारा जानवरों जिनमें गाय प्रमुख है स्थान और भोजन देने में असक्षम है। दिलचस्प होगा यहां पर यह बताना कि जिस तरह से भ्रूण हत्या के दम पर आज लड़कियों का अनुपात पूरी तरह से बिगड़ चुका है वैसी ही मानसिकता इंसान पशुओं के प्रति भी रखता है। आज बैलों की जगह ट्रैक्टर ले चुके हैं ऐसे में बछड़े के प्रति इंसानी प्रेम तो कब का जा चुका है। हां यह जरूर है कि बछड़ी के गाय बनने और गाय के दूध देने का सफर वह किसी घर के आंगन में जरूर गुजारती है परंतु दूध न देने की स्थिति में उसे लावारिस बना कर छोड़ दिया जाता है। गौमांस पर विरोध न्यायोचित है क्योंकि यह सीधे तौर पर किसी धर्म विशेष की आस्था का सवाल है। परंतु क्या इस बात का जवाब हमारे पास है कि उन लाखों गायों का क्या जो देश भर में न केवल पालीथिन और जूठन खाकर पेट भरती हैं बल्कि सड़क हादसों का भी एक बड़ा सबब बनती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें