देसी गाय विदेशीसे श्रेष्ठ क्यों ? भाग -१
इस आलेखमें हम भारतीय अर्थात् देसी गायोंकी तुलना विदेशी काऊसे नहीं कर रहे हैं । यह केवल एक प्रयास है भारतीय गायोंकी श्रेष्ठता प्रमाणित करनेका । भारतीय देसी गाय धैर्य एवं सहनशीलताका दूसरा नाम है । अनावृष्टिके कारण जब सूखा पड जाता है तब हरी घास उपलब्ध नहीं हो पाती, ऐसी स्थितिमें केवल भारतीय गाय सूखा चारा खाकर भी संतुष्ट रह लेती है । अपनी जीजिविषा (जीनेकी दृढ इच्छा शक्ति) से स्वयं जीवित रहती है और अपने बछडे़/बछियाके लिए भी दूध उपजाती है । देसी गायमें संयमका भी गुण कूट-कूट कर भरा होता है । देसी गाय अपनी आवश्यकताके अनुसार ही चारा खाती है, ऐसा नहीं कि खरलमें जितना चारा है, उसे समाप्त करके ही शांत हो । जबकि विदेशी गायकी भोजन मात्रा(खुराक) देसी गायसे बहुत अधिक है । वे खाती ही रहती हैं । खा-खाकर उनका पेट ही क्यों न फट जाए, वे संतुष्ट नहीं होतीं !
वात्सल्यमयी देसी गायकी विशेषता है कि यह जितना स्नेह अपने बछडे/बछियासे करती है, उतना ही प्यार अपने स्वामी/सेवकसे भी करती हैं । गौसेवक जैसे ही इसके पाससे निकलता है, यह चारा खाना छोडकर उसके पास दौडकर चली जाती है । सेवक जब भी प्रेमपूर्वक इसे सहलाता है, इसकी पीठ और गल-कंबलपर हाथ फेरता है, तो यह भी अपना दुलार लुटानेके लिए तत्पर हो जाती है । प्रायः देखनेमें आता है कि जब कोई प्रेमसे इसकी सेवा करता है, तो इसके नेत्रोंसे अश्रु बहने लगते हैं । यह अपनी जीभसे उसके सिर व भुजाओंको चाटती है । देसी गाय इस प्रकारके व्यवहारसे “मां” की उपमाको सार्थक सिद्ध करती है । गौमाता(देसी गाय) के संबंधमें यह तथ्य भी प्रमाणित हो चुका है कि यदि रक्तचाप (high- low ब्लड प्रेशर) एवं त्वचा रोगी देसी गायकी पीठपर प्रतिदिन न्यूनतम आधा घण्टा हाथ फेरें तो उनका रोग ठीक हो जाता है । जबकि विदेशी गायके साथ ऐसा कुछ भी नहीं है ।
मनुष्योंकी भांति सभी प्राणियों एवं वनस्पतियोंका भी आभामण्डल(ऑरा) होता है । देसी गायका आभामण्डल अन्य प्राणियोंसे कहीं अधिक उज्ज्वल एवं सात्त्विक होता है । इसके समीप आनेसे कोई भी इससे सकारात्मक रूपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता; किन्तु इस प्रकारकी अनुभूतियां विदेशी काऊके पास जाकर नहीं होतीं, क्योंकि विदेशी गायमें संवेदना बहुत कम होती है । उसमें आनुवांशिक रूपसे ही स्नेह-भाव नहीं होता । उसकी आंखोंमें भी मातृत्त्व भाव नहीं दिखता । उसे छूनेसे भी कोई शारीरिक लाभ भी नहीं मिलता । चूंकि विदेशोंमें सम्बन्धोंकी अधिक गरिमा नहीं होती है और विदेशी गायभी उसी परम्परासे है अतः उससे भारतीय गाय जैसी भावानाओंकी अपेक्षा करना मूर्खता ही है ।
सौन्दर्यके दृष्टिकोणसे भी देखें, तो भारतीय गाय संसारकी सभी गायोंसे अधिक सुन्दर है । देसी गायके नेत्रोंका आकर्षण दैवीय है । इसके नेत्रोंको ध्यानसे देखनेपर प्रतीत होता है जैसे सृष्टि रचियताने इसकी आंखोंमें कुदृष्टिसे रक्षण हेतु काजल डाल दिया हो । वहीं विदेशी गायको देखनेसे सात्त्विक भाव नहीं जागता । अनगढ(बेडौल) शरीर और सौन्दर्यबोध जगानेके गुणकी अनुपलब्धता ; यह विशेषता होती है विदेशी गायकी ।
देसी गायकी स्मरण-शक्ति भी अद्भुत होती है । इसे चरनेके लिए कहीं भी कितनी ही दूर ले जाओ, संध्याको यह स्वतः घर पहुंच जाती है । सभी देसी गाय एकत्रित होकर समूहमें चरनेके लिए जाती हैं । विदेशी गायोंकी तरह एक पूर्व दिशामें चली जाए, दूसरी पश्चिम में, ऐसा देसी गाय नहीं करती ! सभी अनुशासनका पालन करती हैं । सेवकके निर्देशको शीघ्र समझ ग्रहण कर लेती हैं । जबकि विदेशी गायमें ऐसा कोर्इ अनुशासन नहीं होता । उनमें एक्यभाव(यूनिटी) भी नहीं होता है । देसी गायकी पीठपर “सूर्यकेतू” नाडी पार्इ जाती है । सूर्यकी किरणें पडनेसे यह नाडी सक्रीय हो जाती है । यह स्नायु(नाडी) गायके शरीरमें स्वर्णक्षार (सोनेके कण) धूपसे सोखकर पहुंचाती है । इसलिए देसी गायका दूध पीला होता है । जबकि विदेशी गायकी पीठपर सूर्यकेतू नाडी नहीं होती है । देसी गायका दूध रोग मिटाता है जबकि विदेशी गायका दूध(???) रोग उत्पन्न करता है ।
ऐसी असंख्य विशेषताएं हैं जो भारतीय गायोंकी श्रेष्ठताको सिद्ध करती हैं
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