गौ - चिकित्सा .छोटीबिमारी
गौ - चिकित्सा .छोटीबिमारी ।
अन्य छोटी - छोटी बिमारियाँ
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#################### पशु को चक्कर आना #########################
पशुओं को वर्षा - ऋतु के आरम्भ में नया , गन्दा पानी पी लेने के कारण चक्कर का रोग हो जाता है ।
पशु अचानक चक्कर खाकर गिर जाता है । चक्कर खाते समय रोगी पशु पीछे - पीछे हटता जाता है और चक्कर खाकर गिर पड़ता है । वह बेहोश हो जाता है , आँखें घुमाता हैं और काँपने लगता हैं ।
१ - औषधि - चक्करदार चींटी , जो ज़मीन पर चक्करदार बिल बनाती है , उस जगह के बिल के चक्करवाली मिट्टी ३० ग्राम , पानी २४० ग्राम , उक्त मिट्टी को पानी में घोलकर छान लें और रोगी पशु को चार - चार घन्टे बाद उक्त मात्रा में आराम होने तक देते रहें ।
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चमारी चढ़ना
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१ - औषधि -- पहले उस स्थान को नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से धोना चाहिए। आमचूर का तैल ४८ ग्राम , सिंगदराद पत्थर २४ ग्राम , सिंगदराद को महीन पीसकर गरम तैल में मिलाकर गरम करें और गुनगुना होने पर रोगी पशु को रोग - स्थान पर , दिन में २ बार, अच्छा होने तक , लगायें ।
२ -- औषधि - नील ९ ग्राम , देशी साबुन ४८ ग्राम , दोनों को मिलाकर करके गुनगुना होने पर पशु को , रोगग्रस्त स्थान पर दोनों समय अच्छा होने तक लगायें ।
३ - औषधि - मेंहदी १२ ग्राम , आमचूर का तैल ४८ ० ग्राम , मेहंदी को महीन पीसकर कपड़े से छानकर तैल में मिलाकर गरम कर लें । गरम करते समय हिलाते रहना चाहिए । गुनगुना होने पर रोगग्रस्त स्थान पर, दोनों समय , अच्छा होने तक , लगायें ।
४ - औषधि - रोगग्रस्त स्थान पर रतनजोत ( बधरेंडी ) का दूध २ तोला ( २४ ग्राम ) रोज , दोनों समय , अच्छा होने तक लगायें । कभी - कभी अधिक दिनों तक इस रोग का इलाज न करने से उसमें माँस के अंकुर निकल आते हैं । उनको काटकर दागनी से दाग लगा देना चाहिए ।
५ - औषधि - पारिभद्र, (गधापलास , इण्डियन कोरल ट्री,एथटिना इ्ण्डिका ) की गीली लकड़ी लाकर और उसके काँटे को साफ़ करके आग में जला देना चाहिए । फिर रोगग्रस्त स्थान पर गाय का घी लगाकर जली हुई लकड़ी को ख़ूब घिसना चाहिए , ताकि रोग - स्थान काला पड़ जाय ।
अन्य छोटी - छोटी बिमारियाँ
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#################### पशु को चक्कर आना #########################
पशुओं को वर्षा - ऋतु के आरम्भ में नया , गन्दा पानी पी लेने के कारण चक्कर का रोग हो जाता है ।
पशु अचानक चक्कर खाकर गिर जाता है । चक्कर खाते समय रोगी पशु पीछे - पीछे हटता जाता है और चक्कर खाकर गिर पड़ता है । वह बेहोश हो जाता है , आँखें घुमाता हैं और काँपने लगता हैं ।
१ - औषधि - चक्करदार चींटी , जो ज़मीन पर चक्करदार बिल बनाती है , उस जगह के बिल के चक्करवाली मिट्टी ३० ग्राम , पानी २४० ग्राम , उक्त मिट्टी को पानी में घोलकर छान लें और रोगी पशु को चार - चार घन्टे बाद उक्त मात्रा में आराम होने तक देते रहें ।
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चमारी चढ़ना
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१ - औषधि -- पहले उस स्थान को नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से धोना चाहिए। आमचूर का तैल ४८ ग्राम , सिंगदराद पत्थर २४ ग्राम , सिंगदराद को महीन पीसकर गरम तैल में मिलाकर गरम करें और गुनगुना होने पर रोगी पशु को रोग - स्थान पर , दिन में २ बार, अच्छा होने तक , लगायें ।
२ -- औषधि - नील ९ ग्राम , देशी साबुन ४८ ग्राम , दोनों को मिलाकर करके गुनगुना होने पर पशु को , रोगग्रस्त स्थान पर दोनों समय अच्छा होने तक लगायें ।
३ - औषधि - मेंहदी १२ ग्राम , आमचूर का तैल ४८ ० ग्राम , मेहंदी को महीन पीसकर कपड़े से छानकर तैल में मिलाकर गरम कर लें । गरम करते समय हिलाते रहना चाहिए । गुनगुना होने पर रोगग्रस्त स्थान पर, दोनों समय , अच्छा होने तक , लगायें ।
४ - औषधि - रोगग्रस्त स्थान पर रतनजोत ( बधरेंडी ) का दूध २ तोला ( २४ ग्राम ) रोज , दोनों समय , अच्छा होने तक लगायें । कभी - कभी अधिक दिनों तक इस रोग का इलाज न करने से उसमें माँस के अंकुर निकल आते हैं । उनको काटकर दागनी से दाग लगा देना चाहिए ।
५ - औषधि - पारिभद्र, (गधापलास , इण्डियन कोरल ट्री,एथटिना इ्ण्डिका ) की गीली लकड़ी लाकर और उसके काँटे को साफ़ करके आग में जला देना चाहिए । फिर रोगग्रस्त स्थान पर गाय का घी लगाकर जली हुई लकड़ी को ख़ूब घिसना चाहिए , ताकि रोग - स्थान काला पड़ जाय ।
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