गौ - चिकित्सा .टयुमर
################# कठामी ( ट्यूमर ) ######################
यह रोग अधिकतर वर्षा और शरद् ऋतु में होता है । पशु यदि रात -दिन खुली जगह में रहते हैं । तो भी यह रोग होजाता है । यह रोग रक्तविकार के कारण होता हैं ।
यह रोग गले , कण्ठ और जबड़े में होता है । गले , कण्ठ और जबड़े पर ज़हर बात से मिली-जुली एक गाँठ उठने लगती है । पहले-पहल गाँठ बहुत छोटी होती है । धीरे- धीरे वह बहुत अधिक बढ़ जाती है । यह गाँठ गोल होती है । इस रोग का समय पर इलाज न होने से गाँठ पककर फूट जाती है । गाँठ का पकना-फूटना , यही क्रम बराबर चलता है और पशु को जीवनभर दु:खी रहना पड़ता है । इस रोग में अक्सर कीड़े नहीं पड़ते है ।
१ - औषधि - गाँठ जब छोटी रहे तभी तुरन्त उसका इलाज करना चाहिए । ईंट के टुकड़े को लाल गरम कर, गिले थैले के टुकड़े में लपेट लें । उसे पानी में डुबा देने से ईंट ठंडी हो जायगी । ईंट से गाँठ को दोनों समय धीरे- धीरे सेंकने से गाँठ नरम होकर बैठ जायेगी । फिर गाँठ पर नारियल के तैल का लेप कर दें ।
औषधि -- आँबाहल्दी १२ ग्राम , फिटकरी १२ ग्राम , काला नमक ९ ग्राम , नयीकन्द ( कडवी नाई ) ९ग्राम , नारियल तैल २४ ग्राम , सबको बारीक पीसकर चलनी से छानकर तैल में मिला लें और लेप को गरम करके गुनगुना होने पर गाँठ पर लगायें ।
२ - औषधि - इस प्रकार का लगभग दो इंच लम्बा और चौड़ा आड़ा दाग लगाना चाहिए । दाग़ दराती या दागनी से लगाये जायँ या बड़ी गरम चिलम से लगाये इससे अवश्य आराम होगा ।
३ - औषधि - कभी-कभी गाँठ बड़ी हो जाती है और बाहर से पकी हुई नही दिखाई देती है । परन्तु अन्दर पकी हुई रहती है । उसके कारण पशु को अत्यन्त कष्ट होता है । आपरेशन द्वारा गाँठ को निकलवा देंना चाहिए और पीप ( मवाद ) को साफ़ करके उस आगे लिखें घोल से धोना चाहिए । नीला थोथा ९ ग्राम , गोमूत्र ८५० ग्राम , नीले थोथे को महीन पीसकर गोमूत्र में मिलाकर घाव को रोज़ सुबह पिचकारी द्वारा धोना चाहिए । नीले थोथे को गोमूत्र में मिलाते ही एक प्रकार की विषैली गैस निकलती है ।
आलोक-:- गोमूत्र यदि न मिले तो बैल , बकरी, का मूत्र भी काम में लें सकते हैं ।
४ - औषधि - नीम की २५० ग्राम ,पत्तियाँ पीसकर १ किलो पानी में उबालकर गुनगुना पानी से घाव को धोया करें ।
५ - औषधि - नीम की पत्तियों के उबलें पानी से गेन्दा के पत्तों का रस लगाया जायें ।
५ - औषधि - नमक २४ ग्राम , पानी ९६० ग्राम , पानी में नमक डालकर उसे गरम कर लें और उसे छानकर गुनगुने पानी से पिचकारी द्वारा घाव धोयें । काला ढ़ाक ( काला पलास ) की छाल को जलाकर , उसे छानकर नारियल , महुवांँ का तैल घाव पर लगायें । नीम की पत्तियाँ के उबले पानी को गुनगुना करके उससे घाव को धोया जाता रहें ।
६ - औषधि - ६ बूँद आँकड़े ( मदार ) का दूध और छह बूँद मीठा तैल इतना सिन्दुर मिलायें कि शहद जैसा मरहम बन जाय । फिर सूजन वाले स्थान पर सुबह - सायं सूजन के निचले भाग में लगभग एक रूपये के बराबर स्थान पर लगायें । २-४ दिन बाद अपने - आप गाँठ पककर पीप निकल जायेगा ।
आलोक-:- उक्त मरहम किसी लकड़ी के सहारे लगाना चाहिए वरना हाथ में छालें पड़ जायेंगे ।
यह रोग अधिकतर वर्षा और शरद् ऋतु में होता है । पशु यदि रात -दिन खुली जगह में रहते हैं । तो भी यह रोग होजाता है । यह रोग रक्तविकार के कारण होता हैं ।
यह रोग गले , कण्ठ और जबड़े में होता है । गले , कण्ठ और जबड़े पर ज़हर बात से मिली-जुली एक गाँठ उठने लगती है । पहले-पहल गाँठ बहुत छोटी होती है । धीरे- धीरे वह बहुत अधिक बढ़ जाती है । यह गाँठ गोल होती है । इस रोग का समय पर इलाज न होने से गाँठ पककर फूट जाती है । गाँठ का पकना-फूटना , यही क्रम बराबर चलता है और पशु को जीवनभर दु:खी रहना पड़ता है । इस रोग में अक्सर कीड़े नहीं पड़ते है ।
१ - औषधि - गाँठ जब छोटी रहे तभी तुरन्त उसका इलाज करना चाहिए । ईंट के टुकड़े को लाल गरम कर, गिले थैले के टुकड़े में लपेट लें । उसे पानी में डुबा देने से ईंट ठंडी हो जायगी । ईंट से गाँठ को दोनों समय धीरे- धीरे सेंकने से गाँठ नरम होकर बैठ जायेगी । फिर गाँठ पर नारियल के तैल का लेप कर दें ।
औषधि -- आँबाहल्दी १२ ग्राम , फिटकरी १२ ग्राम , काला नमक ९ ग्राम , नयीकन्द ( कडवी नाई ) ९ग्राम , नारियल तैल २४ ग्राम , सबको बारीक पीसकर चलनी से छानकर तैल में मिला लें और लेप को गरम करके गुनगुना होने पर गाँठ पर लगायें ।
२ - औषधि - इस प्रकार का लगभग दो इंच लम्बा और चौड़ा आड़ा दाग लगाना चाहिए । दाग़ दराती या दागनी से लगाये जायँ या बड़ी गरम चिलम से लगाये इससे अवश्य आराम होगा ।
३ - औषधि - कभी-कभी गाँठ बड़ी हो जाती है और बाहर से पकी हुई नही दिखाई देती है । परन्तु अन्दर पकी हुई रहती है । उसके कारण पशु को अत्यन्त कष्ट होता है । आपरेशन द्वारा गाँठ को निकलवा देंना चाहिए और पीप ( मवाद ) को साफ़ करके उस आगे लिखें घोल से धोना चाहिए । नीला थोथा ९ ग्राम , गोमूत्र ८५० ग्राम , नीले थोथे को महीन पीसकर गोमूत्र में मिलाकर घाव को रोज़ सुबह पिचकारी द्वारा धोना चाहिए । नीले थोथे को गोमूत्र में मिलाते ही एक प्रकार की विषैली गैस निकलती है ।
आलोक-:- गोमूत्र यदि न मिले तो बैल , बकरी, का मूत्र भी काम में लें सकते हैं ।
४ - औषधि - नीम की २५० ग्राम ,पत्तियाँ पीसकर १ किलो पानी में उबालकर गुनगुना पानी से घाव को धोया करें ।
५ - औषधि - नीम की पत्तियों के उबलें पानी से गेन्दा के पत्तों का रस लगाया जायें ।
५ - औषधि - नमक २४ ग्राम , पानी ९६० ग्राम , पानी में नमक डालकर उसे गरम कर लें और उसे छानकर गुनगुने पानी से पिचकारी द्वारा घाव धोयें । काला ढ़ाक ( काला पलास ) की छाल को जलाकर , उसे छानकर नारियल , महुवांँ का तैल घाव पर लगायें । नीम की पत्तियाँ के उबले पानी को गुनगुना करके उससे घाव को धोया जाता रहें ।
६ - औषधि - ६ बूँद आँकड़े ( मदार ) का दूध और छह बूँद मीठा तैल इतना सिन्दुर मिलायें कि शहद जैसा मरहम बन जाय । फिर सूजन वाले स्थान पर सुबह - सायं सूजन के निचले भाग में लगभग एक रूपये के बराबर स्थान पर लगायें । २-४ दिन बाद अपने - आप गाँठ पककर पीप निकल जायेगा ।
आलोक-:- उक्त मरहम किसी लकड़ी के सहारे लगाना चाहिए वरना हाथ में छालें पड़ जायेंगे ।
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