गाय और धर्म
ब्रह्मदेश (म्यांमार) के लोकनीति नामक महाचतुरंगबल कृत बौद्ध ग्रंथ मे लिखा है कि जो गौ मांस खाता है वह अपनी माँ का मांस खाता है।
’मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं’ तुलसीदास जी ने रामचरित मानस मे यह त्रेता युग का लक्षण बताया है।
बुंदेलखण्ड का ‘गौ चारण महोत्सव’ कार्तिक मास, शुक्ला पक्ष की देवोत्थान एकादशी को मनाया जाता है।
मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के खास पीर मौलवी कुतुबुद्दीन ने फतवा दिया कि हदीश मे कहा गया है कि जाबेह उल बकर (गाय की हत्या करने वाला) कभी नही बख्शा जाएगा।
गौ रक्षा के लिए स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित सभा का नाम गौ कृष्यादि रक्षिणी था।
’स्वार्थपरता की हद तक जाने वाले इंसान की क्रूरता की वजह से ही आज गाय दुर्दशा मे जीने को लाचार हुई है।’ ये उद्गार पूज्य प्रवर्तक संत श्री रूपचन्द्र जी म. सा. रजत के है।
माता दुर्गा के नौ रूपो मे शैलपुत्री व गौरी का वाहन गाय है।
’गोरोचना विष का विनाश करती है’ अग्नि पुराण मे यह तथ्य धन्वन्तरि ने सुश्रुत को बताया।
’गौ आधारित कृषि अन्न श्रेष्ठ होता है’ यह वर्णन कृषि पराशर ग्रंथ मे है।
सब जलो मे श्रेष्ठ जल गौ मूत्र और सब रसो मे श्रेष्ठ रस गौ रस है।
स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी राजा पुरूरवा के पास गई तो उसने अमृत की जगह गाय का घी पीना स्वीकार किया।
’गौ मांसाहार व्यक्ति साक्षात् राक्षस है। मांसाहारी व्यक्ति जंगम कब्रिस्तान है’ यह बात स्वामी रामतीर्थ ने कही है।
अखिल भारत कृषि गौ सेवा संघ का प्रारम्भ संत बिनोबा भावे की प्रेरणा से हुआ।
आचार्य श्री राम शर्मा ने 24 वर्ष तक केवल दूध पीकर गायत्री मन्त्र का जाप करते हुए विश्व में सर्वाधिक सुसाहित्य सृजन कर विश्व कल्याण किया है।
’धेनू: सदनम् रमणीयम्’ अर्थात् गाय सम्पति का भण्डार है। यह वाक्य अथर्ववेद का है।
भगवान राम को प्रेम से बेर खिलाने वाली भक्त शबरी द्वापर युग मे श्रीकृष्ण की प्रिय गाय पद्म गंधा के रूप मे जन्म लिया।
वीर तेजाजी ने मेर लुटेरो से गाय छुङाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
गौ- ग्रास दान मंत्र –
सौरभेयी जगत्पूज्या नितस विष्णु पदे स्थित।
सर्व देवमयी ग्रांसमया दत्तं प्रतीक्षिताम्॥
अर्थात् सुरभी पुत्री गो जाति संपूर्ण जगत के लिए पूज्य है। यह सदा विष्णु पद मे स्थित है और सर्वदेवमयी है। मेरे दिये ग्रास को देखे और स्वीकार करे।
सौरभेयी जगत्पूज्या नितस विष्णु पदे स्थित।
सर्व देवमयी ग्रांसमया दत्तं प्रतीक्षिताम्॥
अर्थात् सुरभी पुत्री गो जाति संपूर्ण जगत के लिए पूज्य है। यह सदा विष्णु पद मे स्थित है और सर्वदेवमयी है। मेरे दिये ग्रास को देखे और स्वीकार करे।
गो नवरात्रि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष मे प्रतिपदा से नवमी तक के दिन और नवमी से पूर्व का दिन गोपाष्टमी है।
’दूध से बढकर कोई जीवन बढाने वाला आहार नही है’ ऐसा कश्यप संहिता मे उल्लेख है।
गाये मनुष्यो की बन्धु है और मनुष्य गायो के बन्धु है। जिस घर मे गाय नही है, वह घर बन्धु शून्य है। यह पद्म पुराण मे कहा गया है।
गाय की कुर्बानी इस्लाम धर्म का नियम नही है। ऐसा उल्लेख फतबे हुमायूनी मे आता है।
’सर्वे देवा गवामड्गे तीर्थानि तत्पदेषु च’ (गौ के शरीर मे समस्त देवता निवास करते है और उसके पैरो मे समस्त तीर्थ निवास करते है) यह उक्ति ब्रह्मवैवर्त पुराण मे है।
भविष्य पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय पांच गाये उत्पन्न हुई थी। नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला क्रमशः महर्षि जमदग्नि, भारद्वाज, वशिष्ठ, असित और गौतम को दी गई।
शंकर के अवतार माने जाने वाले सुरभि सुत वृषभ का नाम नील है।
गो ब्राह्मण हितार्थाय देशस्य च हिताय च।
तव चैवाप्रमेयस्य वचनं कुर्तुमुद्यतः॥
अर्थात् गौ ब्राह्मण एवं समस्त राष्ट्र के हित के लिए मै आप जैसे अनुपम प्रभावशाली महात्मा के आदेश का पालन करने को सब प्रकार से तैयार हूँ।
यह वाक्य श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र से कहा।
तव चैवाप्रमेयस्य वचनं कुर्तुमुद्यतः॥
अर्थात् गौ ब्राह्मण एवं समस्त राष्ट्र के हित के लिए मै आप जैसे अनुपम प्रभावशाली महात्मा के आदेश का पालन करने को सब प्रकार से तैयार हूँ।
यह वाक्य श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र से कहा।
’यही देहु आज्ञा तुर्क गाहै खपाऊँ।
गऊ घातका दोष जग सिउ मिटाऊँ॥
माँ दुर्गा से गौ रक्षा की माँग का यह वर्णन चण्डी दी वार मे है।
गऊ घातका दोष जग सिउ मिटाऊँ॥
माँ दुर्गा से गौ रक्षा की माँग का यह वर्णन चण्डी दी वार मे है।
प्राण निकलते समय कष्ट के निवारण के लिए जो गौ दान किया जाता है उसे उत्क्रान्ति धेनु दान कहते है।
पृथ्वी को धारण करने वाले सप्त तत्व गाय, वेद, ब्राह्मण, सुसंस्कारी पतिव्रता स्त्रियाँ, सत्यवादी, निष्काम दूसरोँ के हितार्थ कर्म करने वाले और दानशील है।
गोकर्ण पीठ दक्षिण भारत का पवित्र तीर्थ स्थान है जो गाय के कान से प्रकट होने वाले महापुरुष के नाम पर है।
धर्म जागरण नवसंकल्प है यह लेख
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