गौ आवाहन
आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां गैलोक्यमातरम्।
यस्या: स्मरणमात्रेण र्स्वपापप्रणाशनम्।।
त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
गायत्री त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।
आगच्छ देवि कल्याणि शुभां पूजां गृहाण च।
वत्सेन सहितां त्वाहं देवीमावाहयाम्यहम्।।भावार्थ: जिस गोमाता के मात्र स्मरण करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है, ऐसी तीनों लोकों की माता हे गो देवी ! मैं तुम्हारा आवाहन करता हूं। हे देवी तुम संसार की माता हो, तुम्हीं वसुन्धरा, गायत्री, सावित्री (गीता), गंगा और सरस्वती हो। हे कल्याणमयी देवी ! तुम आकर मेरी शुभ पूजा (सेवा) को ग्रहण करो। हे भारत माँ का गौरव बढ़ाने वाली बछड़े सहित देवस्वरूपा तुम्हारा मैं आवाहन करता हूँ।
गावो मामुपतिष्ठन्तु हेमशंग्य: पयोमुच:।
सुरभ्य: सौरभेय्यश्च सरित: सागरं यथा।।
गा वै पश्याम्यहं नित्यं गाव: पश्यन्तु मां सदा।
गावोऽस्माकं वयं तासां यतो गावस्तो वयम्।।
(महाभारत, अनु.78। 23-24)
‘जैसे नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं, उसी तरह सोने से मढ़े हुए सीगों वाली दुग्धवती, सुरभि और सौरभेयी गौएँ मेरे निकट आवें। मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौएँ मुझ पर कृपा दृष्टि करें। गौएँ मेरी हैं और मैं गौओं का हूँ, जहाँ गौएँ रहें, वहाँ मैं भी रहूँ।
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि अनेकों महापुरुषों, संत-महात्माओं के प्रयासों के बाद भी भारत माता के माथे से गोहत्या का कलंक आज तक नहीं मिट सका और विश्व जीवन का आधार गोवंश करुणा भरी आवाज से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के माध्यम से अपनी दुर्दशा का बखान इस प्रकार कर रही है--
दाँतों तले तृण दाबकर हैं दीन गायें कह रही,
हम पशु तुम हो मनुज, पर योग्य क्या तुमको यही ?
हमने तुम्हें माँ की तरह, है दूध पीने को दिया,
देकर कसाई को हमें, तुमने हमारा वध किया ।।
क्या वश हमारा है भला, हम दीन हैं बलहीन हैं,
मारो कि पालो, कुछ करो तुम हम सदैव आधीन हैं।
प्रभु के यहाँ भी कदाचित् आज हम असहाय हैं,
इससे अधिक अब क्या कहें, हा ! हम तुम्हारी गाय हैं ।।
जारी रहा क्रम यदि यहाँ...यों ही हमारे नाश का,
तो अस्त समझो सूर्य भारत-भाग्य के आकाश का।
जो तनिक हरियाली रही, वह भी न रह पायेगी,
यह स्वर्ण-भारत-भूमि बस, मरघट मही बन जायेगी ।।
कितने शर्म की बात है कि स्वतंत्र भारत में मांस के लिए गोवंश को निर्दयता से काटा जाता है, जबकि वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि भूकंप आने का प्रमुख कारण बूचड़खानों में पशुओं की निर्दयता से हत्या करना है। इतिहास भी गवाह है कि जहाँ पर अधिक बूचड़खाने होते हैं, वहीं भूकंप का भी कहर बरसता है। आज आर्य जाति गाय की करुण पुकार को मूकदर्शक बने सुन रही है, जबकि हम सभी जानते हैं कि गाय हैं तो हम भी हैं। अन्यथा जिस दिन इस संसार में गाय नहीं रहेंगी हम भी नहीं रहेंगे। यह कटु सत्य है। अत: हमें अपने आपको बचाना है, तो गाय को पहले बचाना होगा।
आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां गैलोक्यमातरम्।
यस्या: स्मरणमात्रेण र्स्वपापप्रणाशनम्।।
त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
गायत्री त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।
आगच्छ देवि कल्याणि शुभां पूजां गृहाण च।
वत्सेन सहितां त्वाहं देवीमावाहयाम्यहम्।।भावार्थ: जिस गोमाता के मात्र स्मरण करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है, ऐसी तीनों लोकों की माता हे गो देवी ! मैं तुम्हारा आवाहन करता हूं। हे देवी तुम संसार की माता हो, तुम्हीं वसुन्धरा, गायत्री, सावित्री (गीता), गंगा और सरस्वती हो। हे कल्याणमयी देवी ! तुम आकर मेरी शुभ पूजा (सेवा) को ग्रहण करो। हे भारत माँ का गौरव बढ़ाने वाली बछड़े सहित देवस्वरूपा तुम्हारा मैं आवाहन करता हूँ।
गावो मामुपतिष्ठन्तु हेमशंग्य: पयोमुच:।
सुरभ्य: सौरभेय्यश्च सरित: सागरं यथा।।
गा वै पश्याम्यहं नित्यं गाव: पश्यन्तु मां सदा।
गावोऽस्माकं वयं तासां यतो गावस्तो वयम्।।
(महाभारत, अनु.78। 23-24)
‘जैसे नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं, उसी तरह सोने से मढ़े हुए सीगों वाली दुग्धवती, सुरभि और सौरभेयी गौएँ मेरे निकट आवें। मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौएँ मुझ पर कृपा दृष्टि करें। गौएँ मेरी हैं और मैं गौओं का हूँ, जहाँ गौएँ रहें, वहाँ मैं भी रहूँ।
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि अनेकों महापुरुषों, संत-महात्माओं के प्रयासों के बाद भी भारत माता के माथे से गोहत्या का कलंक आज तक नहीं मिट सका और विश्व जीवन का आधार गोवंश करुणा भरी आवाज से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के माध्यम से अपनी दुर्दशा का बखान इस प्रकार कर रही है--
दाँतों तले तृण दाबकर हैं दीन गायें कह रही,
हम पशु तुम हो मनुज, पर योग्य क्या तुमको यही ?
हमने तुम्हें माँ की तरह, है दूध पीने को दिया,
देकर कसाई को हमें, तुमने हमारा वध किया ।।
क्या वश हमारा है भला, हम दीन हैं बलहीन हैं,
मारो कि पालो, कुछ करो तुम हम सदैव आधीन हैं।
प्रभु के यहाँ भी कदाचित् आज हम असहाय हैं,
इससे अधिक अब क्या कहें, हा ! हम तुम्हारी गाय हैं ।।
जारी रहा क्रम यदि यहाँ...यों ही हमारे नाश का,
तो अस्त समझो सूर्य भारत-भाग्य के आकाश का।
जो तनिक हरियाली रही, वह भी न रह पायेगी,
यह स्वर्ण-भारत-भूमि बस, मरघट मही बन जायेगी ।।
कितने शर्म की बात है कि स्वतंत्र भारत में मांस के लिए गोवंश को निर्दयता से काटा जाता है, जबकि वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि भूकंप आने का प्रमुख कारण बूचड़खानों में पशुओं की निर्दयता से हत्या करना है। इतिहास भी गवाह है कि जहाँ पर अधिक बूचड़खाने होते हैं, वहीं भूकंप का भी कहर बरसता है। आज आर्य जाति गाय की करुण पुकार को मूकदर्शक बने सुन रही है, जबकि हम सभी जानते हैं कि गाय हैं तो हम भी हैं। अन्यथा जिस दिन इस संसार में गाय नहीं रहेंगी हम भी नहीं रहेंगे। यह कटु सत्य है। अत: हमें अपने आपको बचाना है, तो गाय को पहले बचाना होगा।
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