गौ - चिकित्सा .कलीली
जूँएँ ,कलीली ( गिचोडी ) या जौबे पड़ना
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पशुओं के शरीर पर गन्दगी होने से , गोशाला में गन्दगी से शरीर कलीली , जूँएँ आदि पड़ जाती है और ये जन्तु पशु का ख़ून पीते है और उसके शरीर में पलते रहते है ।
सबसे पहले रोगी पशुओं को नहलाना चाहिए । खर्रा , बुरश , मालिश की जाय ।पशु स्वच्छ ओर साफ़ रखे जायँ । पशुओं को हवादार , रोशनीदार मकान में शुद्ध घास और दाना - पानी खाने - पीने को दिया जाय। काठी की रोज़ अच्छी तरह सफ़ाई की जाय । गवान को रोज़ साफ़ किया जाय ।
१ - औषधि - जिस पशु को उक्त जन्तु पड़ जायँ , उसे नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से रोज ५ दिन तक नहलाने से , सब जन्तु मर जायेंगे । रोगी पशु की नीम के तेल से मालिश की जाय ।
२ - औषधि - अरण्डी का तैल लेकर पशु की मालिश की जाय और उसको चरने के लिए छोड़ दें । तैल की चिकनाई से सब जन्तु गिर जायेंगे तथा कुछ तैल लगने से अन्धे होकर गिर और मर जाते है । यह मालिश ४-५ दिन तक करनी चाहिए ।
३ - औषधि - तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़ा धोने का सोडा १२० ग्राम , चूना २४ ग्राम , नमक १२० ग्राम ,पानी १८ लीटर सबको महीन पीसकर ,पानी में मिलाकर उबालना चाहिए । फिर गुनगुने पानी से रोगी पशु को अच्छा होने तक ,रोज़ाना नहलाना चाहिए ।
४ - दूद्धी बेल की छाल १९२० ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , छाल को बारीक पीसकर , पानी में डालकर , उबाल लिया जाय । फिर उसी गुनगुना पानी से रोगी पशु को रगड़ - रगड़ कर ५ दिन तक नहलाया जाय ।
५ - औषधि - सीताफल की पत्ती २४०,ग्राम , तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़े धोने का सोडा २४ ग्राम , चूना १२ ग्राम , अफ़ीम १२ ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , सबको बारीक पीसकर , पानी में मिलाकर , उबाला जाय । फिर अफ़ीम मिलाकर गुनगुने पानी से रोगी पशु को , थैले द्वारा , रोज़ नहलाया जाय ।
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तिड़ रोग ( पाट फूटना )
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यह सफ़ेद रंग के धागे की तरह एक पतला , लम्बा जन्तु होता है । यह जन्तु पशु के शरीर में रहता है । जब बाहर निकलने की कोशिश करता है तो वही से ख़ून की बूँदें गिरना आरम्भ हो जाती हैं । इस रोग में पशु के किसी भी भाग से अचानक रक्त निकलना शुरू हो जाता है । कुछ समय बाद वह अपने - आप बन्द हो जाता है । यह रोग अधिकतर गर्मी के दिनों में हो जाता है ।
१ - औषधि - कोष्ट १ नग , गाय का घी १२० ग्राम , कोष्ट को महीन पीसकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को ७ दिन तक , रोज़ सुबह पिलाया जाय ।
२ - औषधि - प्याज़ २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , दोनों को मिलाकर रोगी पशु को ७ दिन तक पिलाया जायें ।
३ - औषधि - मालती ( डीकामाली ) ३० ग्राम , पानी २४० ग्राम , मालती को महीन पीसकर ,कपडछान करके पानी में मिलाकर , रोगी पशु को रोज़ सुबह ८ दिन तक पिलाया जाय ।
४ - औषधि - सीताफल ( शरीफ़ा ) की जड़ १० तोला या १२० ग्राम रोटी के साथ , सुबह - सायं १५ दिन तक देनी चाहिए ।
टोटका -:-
# - टिड्डी ( तिड़ जन्तु ) को पकड़कर उसे रोटी के साथ मिलाकर रोगी पशु को दो बार खिलाया जाय ।
# - पशु के रोग स्थान को रूई से साफ़ करके तुरन्त अजवायन का तेल लगा देना चाहिए । किन्तु ध्यान रहे कि अजवायन तैल लगाते समय अन्य भाग मे न लग जाय नहीं तो छालें पड़कर खाल उतर जायेगी ।
# - धतुरा की जड़ ३० ग्राम को लेकर रोटी में दबाकर रोगी पशु को , ८ दिन तक खिलायें ।
# - रोगी पशु के रोगस्थान पर सरिये के टुकड़े को लाल गरम करके तत्काल लगा के दाग देना चाहिए ।
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पशुओं के शरीर पर गन्दगी होने से , गोशाला में गन्दगी से शरीर कलीली , जूँएँ आदि पड़ जाती है और ये जन्तु पशु का ख़ून पीते है और उसके शरीर में पलते रहते है ।
सबसे पहले रोगी पशुओं को नहलाना चाहिए । खर्रा , बुरश , मालिश की जाय ।पशु स्वच्छ ओर साफ़ रखे जायँ । पशुओं को हवादार , रोशनीदार मकान में शुद्ध घास और दाना - पानी खाने - पीने को दिया जाय। काठी की रोज़ अच्छी तरह सफ़ाई की जाय । गवान को रोज़ साफ़ किया जाय ।
१ - औषधि - जिस पशु को उक्त जन्तु पड़ जायँ , उसे नीम के उबले हुए गुनगुने पानी से रोज ५ दिन तक नहलाने से , सब जन्तु मर जायेंगे । रोगी पशु की नीम के तेल से मालिश की जाय ।
२ - औषधि - अरण्डी का तैल लेकर पशु की मालिश की जाय और उसको चरने के लिए छोड़ दें । तैल की चिकनाई से सब जन्तु गिर जायेंगे तथा कुछ तैल लगने से अन्धे होकर गिर और मर जाते है । यह मालिश ४-५ दिन तक करनी चाहिए ।
३ - औषधि - तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़ा धोने का सोडा १२० ग्राम , चूना २४ ग्राम , नमक १२० ग्राम ,पानी १८ लीटर सबको महीन पीसकर ,पानी में मिलाकर उबालना चाहिए । फिर गुनगुने पानी से रोगी पशु को अच्छा होने तक ,रोज़ाना नहलाना चाहिए ।
४ - दूद्धी बेल की छाल १९२० ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , छाल को बारीक पीसकर , पानी में डालकर , उबाल लिया जाय । फिर उसी गुनगुना पानी से रोगी पशु को रगड़ - रगड़ कर ५ दिन तक नहलाया जाय ।
५ - औषधि - सीताफल की पत्ती २४०,ग्राम , तम्बाकू २४० ग्राम , कपड़े धोने का सोडा २४ ग्राम , चूना १२ ग्राम , अफ़ीम १२ ग्राम , पानी १४४०० ग्राम , सबको बारीक पीसकर , पानी में मिलाकर , उबाला जाय । फिर अफ़ीम मिलाकर गुनगुने पानी से रोगी पशु को , थैले द्वारा , रोज़ नहलाया जाय ।
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तिड़ रोग ( पाट फूटना )
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यह सफ़ेद रंग के धागे की तरह एक पतला , लम्बा जन्तु होता है । यह जन्तु पशु के शरीर में रहता है । जब बाहर निकलने की कोशिश करता है तो वही से ख़ून की बूँदें गिरना आरम्भ हो जाती हैं । इस रोग में पशु के किसी भी भाग से अचानक रक्त निकलना शुरू हो जाता है । कुछ समय बाद वह अपने - आप बन्द हो जाता है । यह रोग अधिकतर गर्मी के दिनों में हो जाता है ।
१ - औषधि - कोष्ट १ नग , गाय का घी १२० ग्राम , कोष्ट को महीन पीसकर , घी में मिलाकर , रोगी पशु को ७ दिन तक , रोज़ सुबह पिलाया जाय ।
२ - औषधि - प्याज़ २४० ग्राम , गाय का घी १२० ग्राम , दोनों को मिलाकर रोगी पशु को ७ दिन तक पिलाया जायें ।
३ - औषधि - मालती ( डीकामाली ) ३० ग्राम , पानी २४० ग्राम , मालती को महीन पीसकर ,कपडछान करके पानी में मिलाकर , रोगी पशु को रोज़ सुबह ८ दिन तक पिलाया जाय ।
४ - औषधि - सीताफल ( शरीफ़ा ) की जड़ १० तोला या १२० ग्राम रोटी के साथ , सुबह - सायं १५ दिन तक देनी चाहिए ।
टोटका -:-
# - टिड्डी ( तिड़ जन्तु ) को पकड़कर उसे रोटी के साथ मिलाकर रोगी पशु को दो बार खिलाया जाय ।
# - पशु के रोग स्थान को रूई से साफ़ करके तुरन्त अजवायन का तेल लगा देना चाहिए । किन्तु ध्यान रहे कि अजवायन तैल लगाते समय अन्य भाग मे न लग जाय नहीं तो छालें पड़कर खाल उतर जायेगी ।
# - धतुरा की जड़ ३० ग्राम को लेकर रोटी में दबाकर रोगी पशु को , ८ दिन तक खिलायें ।
# - रोगी पशु के रोगस्थान पर सरिये के टुकड़े को लाल गरम करके तत्काल लगा के दाग देना चाहिए ।
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